23 March Rammanohar Lohia
डेस्क. महान समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया को कौन नहीं जानता. वे अपना जन्मदिन 23 मार्च 1910 को मानते थे, लेकिन वे अपना जन्मदिन कभी नहीं मनाते थे. इसके पीछे एक बड़ा कारण था जो देश के इतिहास से जुड़ा हुआ है. यही नहीं, उनका बचपन बेहद उथल-पुथल भरा रहा था, जिसके चलते वे किसी भी महिला को कभी बदसूरत नहीं मानते थे. हर महिला उनके लिए बेहद सुंदर होती थीं. वे उनकी ममता और प्यार को देखते थे, जिससे चेहरे की खूबसूरती बौनी हो जाती थी. इसके पीछे भी एक बड़ी वजह थी.
बता दें कि राममनोहर लोहिया उन गिने-चुने महान नेताओं में से हैं, जिन्होंने न सिर्फ देश की आजादी में अपना योगदान दिया, बल्कि आजादी के बाद भी देश की राजनीति और समाज को दशा और दिशा देने में भूमिका निभाई. उन्हें गांधीजी का सानिध्य बचपन में ही मिला था जब वे अपने पिता हीरालाल लोहिया के साथ कांग्रेस की सभाओं व अधिवेशन में जाते थे. उनका समाजवाद आम लोगों से जुड़ा हुआ था. विचारधारा के पक्के तो थे ही, उसे प्रस्तुत भी ऐसे करते थे कि विरोधी भी उनके कायल हो जाते थे.
23 मार्च को लोहिया इसलिए नहीं मनाते थे अपना जन्मदिन (23 March 1910 Lohia Birthday)
राममनोहर लोहिया का जन्म 1910 में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में हुआ था, लेकिन तारीख को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं थी. ऐसे में स्कूल के दिनों में उनकी जन्मतिथि 23 मार्च लिखवा दी गई. इस तरह यह तिथि ही उनकी जन्मतिथि बन गई. लेकिन, जब वे 21 वर्ष की अवस्था में थे तभी देश में एक बड़ी घटना हुई. 23 मार्च 1931 को महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी की सजा दी थी. इस घटना से लोहियाजी बुरी तरह से आहत हुए थे. फिर उन्होंने कभी भी अपना जन्मदिन नहीं मनाया.
लोहिया जी के लिए हर महिला थी खूबसूरत (Ugly Lady for Lohia)
बता दें कि राममनोहर लोहिया जब महज ढाई साल के थे, तभी उनकी मां चंद्री का निधन हो गया था. ऐसे में उनकी चाची ने उनका पालन-पोषण किया. तब उन्हें पड़ोस में रहने वाली एक नाइन और एक सुनारिन महिला का भी भरपूर प्यार मिला. इन सभी का उनके जीवन पर गहरा असर हुआ और वे महिलाओं के ममत्व को ही जीवनभर तरजीह देते रहे और उनकी डिक्शनरी में बदसूरत महिला जैसा शब्द ही नहीं था. उनके साथ रहने वाले उनके मित्र भी इसके लिए भलीभांति परिचित थे.
पं. नेहरू से ऐसे हुई मुलाकात फिर बढ़ी दूरी (Lohia and Nehru)
राममनोहर लोहिया की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल और फिर मुंबई में हुई थी. पहली बार पं. जवाहरलाल नेहरू से उनकी मुलाकात उनके गांव में ही तब हुई थी जब नेहरू किसान आंदोलन के सिलसिले में उनके गांव पहुंचे थे. लोहिया परिवार का मेहमान बनकर ही पं. नेहरू ने उनके व आसपास के गांवों के किसानों को एकजुट किया था. तभी से लोहिया उनसे प्रभावित हो गए थे. 1935 में जब पं. नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो लोहिया को उन्होंने महासचिव नियुक्त किया था. हालांकि 1946-47 के आसपास पं. नेहरू और लोहियाजी के बीच मतभेद बढ़ने लगा और फिर दोनों के रास्ते अलग हो गए.
लोहिया जी ने लंदन नहीं बर्लिन को चुना उच्च शिक्षा के लिए (Lohia in Barlin)
प्रारंभिक शिक्षा के बाद राममनोहर लोहिया ने आगे की पढ़ाई के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को चुना. वहां से स्नातक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद आमतौर पर उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले भारतीय लंदन को चुनते थे. लेकिन, लोहिया जी ने जर्मनी की राजधानी बर्लिन को चुना. वहां उन्होंने दो वर्ष के भीतरह से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल कर ली. तब जर्मन भाषा में ऐसे सिद्धहस्त हो गए कि उनके प्रोफेसर जोम्बार्ट भी आश्चर्य में पड़ गए थे. हालांकि उनकी पढ़ाई एक तरफ थी. देश लौटने के बाद इसे साइड में कर वे आजादी के आंदोलन से दोबारा जुड़ गए.
लोहिया और जयप्रकाश नारायण साथ भागे थे जेल से (Lohia and Jayprakash Narayan)
राममनोहर लोहिया भारत छोड़ो आंदोलन के समय जेल गए थे. तब जेल में ही उनकी मुलाकात महान विचारक व राजनीतिज्ञ जयप्रकाश नारायण से हुई. साथ-साथ रहते हुए वे काफी घनिष्ट हो गए. उनकी विचारधारा भी एक थी. समाजवाद के रास्ते से ही दोनों देश और देशवासियों को तरक्की की राह पर ले जाना चाहते थे. जेल से दोनों ने साथ-साथ भागने का फैसला किया और वे इसमें कामयाब भी हुए. फिर अंत तक दोनों साथ रहे. हालांकि 12 अक्टूबर 1967 में महज 57 वर्ष की आयु में लोहिया जी का निधन हो गया.
राममनोहर लोहिया के विचार (Thoughts of Rammanohar Lohia)
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