डेस्क. Singol Top Facts: सेंगोल यानी राजदंड. तमिल की प्राचीन परंपरा में शामिल इस सेंगोल की चर्चा तब और ज्यादा शुरू हुई जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में इसे लेकर जाने की बात कही. हालांकि इसका इतिहास देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को मिले सेंगोल और उससे भी पहले चोल राजाओं में सत्ता के हस्तांतरण से जुड़ा हुआ है. किसकी सलाह पर पं. नेहरू ने सेंगोल को संसद भवन में स्थापित किया, पहले सेंगोल का क्या हुआ, नए सेंगोल के निर्माण की क्या कहानी है हम सब बताने वाले हैं. कुछ विस्तार से तो कुछ बिंदुवार फैक्ट्स के साथ.
राजाजी के सुझाव पं. नेहरू को मिला सेंगोल
राजाजी के नाम से प्रसिद्ध और देश के पहले भारतीय गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी ने ये सुझाव पंडित नेहरू को दिया. बताया कि चोल राजा सत्ता के हस्तांतरण के मौके पर सेंगोल एक से दूसरे हाथ में देते थे. चूंकि देश आजाद हो रहा है और अंग्रेजों के हाथों से भारतीय हाथों में सत्ता आ रही है तो कुछ अनूठा किया जाए. नेहरूजी ने इसे सहर्ष स्वीकार किया. तब सेंगोल को प्रतीक के रूप में अंतिम ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन से नेहरू के हाथों में लेने की योजना को साकार किया गया.
धर्म, सच्चाई और निष्ठा यानी सेम्मई से बना शब्द
शब्द सेंगोल तमिल से आया है. इस शब्द की उत्पत्ति तमिल के ही शब्द सेम्मई से हुई है, जिसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा. बता दें कि तब सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था.
ऐसी होती है बनावट
सेंगोल का निर्माण सोने से किया जाता है. इसमें सबसे ऊपरी भाग यानी शीर्ष में नंदी विराजमान होते हैं. पहले सेंगोल को तमिल कारीगरों ने प्राचीन परंपरा के अनुरूप ही डिजाइन किया था. वर्तमान सेंगोल को भी उन्हीं कारीगरों के वंशज ज्वेलर्स ने पुन: तैयार किया है. लेकिन, इस बार इसे चांदी से बनाकर उस पर सोने की परत चढ़ाई गई है.
पहले सेंगोल को कैसे किया स्थापित
जब इस परंपरा को स्वतंत्र भारत में अपनाया गया तो सबसे पहले सेंगोल को माउंटबेटन को दिया गया. फिर इसे पुजारी को दिया गया. पुजारी ने सेंगोल को गंगाजल से पवित्र किया. इसके बाद इसे पं. नेहरू को सौंपा गया था. पं. नेहरू इसे लेकर संसद भवन पहुंचे थे.
यहां है पहला सेंगोल
पं. नेहरू को मिले सेंगोल को बाद में संग्रहालय में रखने का फैसला किया गया. तब इसे इलाहाबाद संग्रहालय में रखवाया गया. हालांकि लंबे समय बाद ऐसा किया गया था तो औपचारिकता पूरी करने वालों को भी इसके बारे में अच्छे से ज्ञान नहीं था. उन्होंने संग्रहालय में ये कहकर सेंगोल को दिया कि यह एक गोल्डन वॉकिंग स्टिक है, जो पंडित नेहरू को प्रदान की गई थी. इसके बाद लोग इसे भूल चुके थे.
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