डेस्क. वर्ल्ड की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनॉमी, बेहिसाब आर्मी, जिसके बेड़े में असलहों का भंडार. इसके बाद भी चाइना छोटे से देश ताइवान पर हमला करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. ऐसा नहीं है कि इरादा नहीं है. हालिया तनाव के बाद कई बार ऐसी आशंका हुई कि चीन अब तो हमला कर ही देगा. लेकिन, चीन अपने मित्र देश रूस और उसके पावरफुल राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिल की पतली हालत देखकर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. जी हां, करीब सालभर होने को आ रहे रूस-यूक्रेन युद्ध का अब तक नतीजा ही नहीं निकल सका है. जबकि शुरुआत में माना जा रहा था कि रूस को महीना नहीं लगेगा यूक्रेन को धूल चटाने में.
ये हम ही नहीं कह रहे हैं बल्कि एक खुफिया रिपोर्ट में भी दावा किया गया है, जिसके मुताबिक चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने फिलहाल के लिए ताइवान पर हमला करने का इरादा टाल दिया है. दरअसल, अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने खुफिया रिपोर्ट के आधार पर दावा किया है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग फिलहाल ताइवान पर हमला करने से डर रहे हैं. सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस की हालत देखते हुए चीन को अब अपनी क्षमता पर फिलहाल संदेह हो रहा है.
दावे में ये भी बताया गया है कि चीन अब ताइवान पर हमला करने का इरादा तात्कालिक रूप से ही नहीं, बल्कि अगले करीब चार साल के लिए टाल दिया है. यानी अब चीनी प्रधानमंत्री ने अपनी सेना को साल 2027 तक ताइवान पर हमले के लिए तैयार रहने के लिए कहा है. इसका मतलब ये है कि इस बीच वह हमला करता है तो उसे मुंह की खानी पड़ सकती है. या फिर लंबे समय तक के लिए उसे बेवजह उलझना पड़ सकता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध का अभी ये हाल
चीन जिस चीज को प्रमाण के तौर पर देख रहा है वह है रूस और यूक्रेन का युद्ध. हालिया स्थिति की बात करें तो संघर्ष अब भी जारी है. कई शहरों में रूस के सैनिकों ने तबाही मचाने की कोशिश की, लेकिन वहां की जनता ने एकजुटता का परिचय देते हुए बर्बाद हुई जगहों को फिर आबाद करा दिया. इस तरह यूक्रेन अब भी रूस के आगे झुकने को तैयार नहीं है. जबकि माना ये भी जा रहा है कि अमेरिका व यूरोपियन संघ की ओर से अब भी उसे अंदरखाने भरपूर सहयोग मिल रहा है. अब रूस भी उससे मुकाबला करते हुए थक चुका है.
ताइवान भी अकेला नहीं
जहां तक चीन-ताइवान की बात करें तो ताइवान भी कोई अलग-थलग नहीं है. वह छोटा सा देश होने के बाद भी सैन्य व अन्य मामलों में सक्षम तो है ही, अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी उसके पीछे खड़ा हुआ है. ऐसे में चीन को ये फैसला लेने में 10 बार सोचना पड़ रहा है.
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