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फार्मेसी काउंसिल रजिस्ट्रार ने सदस्य व IMA चेयरमैन को पद से हटाने का दिया था आदेश, HC ने लगाई रोक

 Newsbaji  |  Dec 06, 2024 02:12 PM  | 
Last Updated : Dec 06, 2024 02:12 PM
हाईकोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला.
हाईकोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला.

बिलासपुर. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फार्मेसी काउंसिल रजिस्ट्रार के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के चेयरमैन और फार्मेसी काउंसिल के सदस्य डॉ. राकेश गुप्ता को पद से हटाने का निर्देश दिया गया था. डॉ. गुप्ता ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जस्टिस एनके चंद्रवंशी की सिंगल बेंच ने सुनवाई के बाद रजिस्ट्रार के आदेश को प्रावधानों के विपरीत बताते हुए उसके क्रियान्वयन पर रोक लगा दी.

डॉ. राकेश गुप्ता ने अपनी याचिका में बताया कि वह वर्ष 2020 से छत्तीसगढ़ फार्मेसी काउंसिल के नामित सदस्य हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि रजिस्ट्रार अश्वनी गुरदेकर ने नियमों का उल्लंघन करते हुए उन्हें तीन बैठकों में अनुपस्थित रहने का हवाला देकर पद से हटा दिया. याचिका में स्पष्ट किया गया कि फार्मेसी काउंसिल एक्ट के तहत किसी सदस्य को हटाने का अधिकार रजिस्ट्रार को नहीं है. इसके लिए सामान्य सभा की बैठक बुलाकर बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए था.

ये है मामला
डॉ. गुप्ता के वकील संदीप दुबे ने कोर्ट में तर्क दिया कि फार्मेसी काउंसिल के एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि रजिस्ट्रार के पद पर एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त चिकित्सा अधिकारी को नियुक्त किया जाना चाहिए. लेकिन राज्य सरकार ने इन प्रावधानों की अनदेखी करते हुए स्वास्थ्य विभाग में स्टोर कीपर के पद पर कार्यरत तृतीय श्रेणी के कर्मचारी अश्वनी गुरदेकर को रजिस्ट्रार नियुक्त कर दिया. यह नियुक्ति न केवल नियमों के खिलाफ है, बल्कि सामान्य सभा के अधिकारों में हस्तक्षेप भी है.

सामान्य सभा के अधिकारों पर हस्तक्षेप
कोर्ट में प्रस्तुत किया गया कि सामान्य सभा में काउंसिल के किसी भी सदस्य को हटाने का निर्णय बहुमत से लिया जाना चाहिए. रजिस्ट्रार का यह कदम सामान्य सभा के अधिकारों में हस्तक्षेप है और उनके क्षेत्राधिकार से बाहर है. काउंसिल के कुल 15 सदस्यों में से छह इलेक्टेड और छह नामित सदस्य होते हैं. सभी महत्वपूर्ण निर्णय सभा की बैठक में लिए जाते हैं.

होगी समीक्षा
सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार के विवादित आदेश और उसके क्रियान्वयन पर रोक लगाते हुए स्पष्ट किया कि फार्मेसी काउंसिल एक्ट और प्रावधानों का पालन करना अनिवार्य है. यह मामला काउंसिल में नियुक्तियों और निर्णय प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाता है. कोर्ट के इस आदेश के बाद राज्य शासन और फार्मेसी काउंसिल के कामकाज की समीक्षा होने की संभावना है.

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