रायपुर. छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री और कभी मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार रहे सरगुजा से कांग्रेस के कद्दावर नेता टीएस सिंहदेव प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं. इसके साथ ही उनके समर्थकों में जश्न का माहौल है. जहां तक उनके राजनीतिक सफर की बात करें तो नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने शुरुआत की थी. इसके साथ ही उनका कद भी बढ़ता चला गया.
बता दें कि सरगुजा राजघराने से ताल्लुक रखने वाले टीएस सिंहदेव उर्फ टीएस बाबा का पूरा नाम त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव है. उनका जन्म 31 अक्टूबर 1952 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था. शुरुआती शिक्षा ग्वालियर के सिंधिया स्कूल से हासिल की तो उच्च शिक्षा दिल्ली के हिंदू कॉलेज से पूरी की. पीजी उन्होंने भोपाल के हमीदिया कॉलेज से की है.
नपा अध्यक्ष से शुरू की राजनीतिक पारी
टीएस बाबा ने अंबिकापुर की छोटी सी नगरपालिका में अध्यक्ष निर्वाचित होकर राजनीतिक पारी शुरू की थी. फिर उन्होंने लगातार कांग्रेस पार्टी के लिए काम किया. अविभाजित मध्य प्रदेश के दौर में भी उन्हें कई पदों पर जिम्मेदारी मिली. छत्तीसगढ़ की स्थापना के बाद जब अजीत जोगी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने तो सिंहदेव को राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद 15 साल तब बीजेपी का शासनका रहा. विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी का उपाध्यक्ष बनाया.
चुने गए विधायक, फिर बने नेता प्रतिपक्ष
सिंहदेव ने जिस वक्त राजनीतिक सफर शुरू किया, तब भी वे विधानसभा चुनाव के लिए क्षेत्र में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे, लेकिन तब अंबिकापुर विधानसभा सीट आरक्षित थी. परिसीमन के बाद सीट सामान्य हुई और वे 2008 में विधायक चुने गए. क्षेत्र में बेहतर काम और सक्रियता का नतीजा था कि 2013 के विधानसभा चुनाव में बड़े अंतर से उन्हें पुन: जीत मिली. तब उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया.
प्रभावी घोषणा-पत्र ने पार्टी को दिलाई कामयाबी
15 सालों तक सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस पार्टी की वापसी में कई लोगों की अहम भूमिका रही है. इसमें टीएस सिंहदेव की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. यही वजह है कि वे सीएम पद के भी प्रबल दावेदार थे. दरअसल, जहां नेता प्रतिपक्ष रहकर उन्होंने दमदार तरीके से विधानसभा में उपस्थिति दर्ज कराई और सरकार को घेरने का काम किया, बल्कि प्रदेश में भी माहौल बनाया, फिर 2018 के चुनाव में उन्हें जन घोषणा-पत्र समिति का अध्यक्ष बनाया गया. हर वर्ग को साधने के लिए उन्होंने इसे बेहद प्रभावी बनाया. इसका व्यापक असर प्रदेश की जनता में हुई और पार्टी ने सरकार बनाई.
सीएम की चल रही थी बात, मिला स्वास्थ्य व पंचायत
जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो वे सीएम पद के प्रबल दावेदार थे. लगातार 3 दिनों तक दिल्ली के कांग्रेस भवन में मंथन हुआ. आखिरकार सीएम का पद भूपेश बघेल के पाले में आया. उन्हें स्वास्थ्य और पंचायत विभाग के दायित्व से संतोष करना पड़ा. लेकिन, बाद में उन्होंंने पंचायत विभाग से इस्तीफा देकर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी.
ढाई-ढाई साल के फार्मूले पर गर्म रही राजनीति
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार की स्थापना के बाद से ही चर्चा इस बात की होती रही कि ढाई-ढाई साल के फार्मूले के अनुसार मुख्यमंत्री का पद मिला हुआ है. ऐसे में जब कांग्रेस ने ढाई साल का सफर पूरा किया तो चर्चा का बाजार गर्म रहा. सिंहदेव के दिल्ली प्रवास और बारी-बारी से सीएम के समर्थकों और सिंहदेव समर्थक विधायकों के दिल्ली प्रवास के दौरान प्रदेश की राजनीति गर्म रही. अब जाकर सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री के पद से नवाजा गया है.
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