रायपुर। आज अक्षय तृतीया के दिन प्रदेश में माटी पूजन महाभियान की शुरुआत हुई। इसकी शुरुआत सीएम भूपेश बघेल कृषि विवि रायपुर से की। इस अभियान में जैविक खाद, वर्मी कम्पोस्ट और गौमूत्र के उपयोग को बढ़ावा देने के साथ लोगों को रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा उद्देश्य खेती-किसानी की लागत को कम कर खेती को अधिक फायदेमंद बनाना है।
इस तरह छत्तीसगढ़ में सतत् और टिकाऊ खेती के विस्तार का एक नया अध्याय शुरू हुआ। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि अक्षय तृतीया का दिन बहुत शुभ माना गया है। शादी-ब्याह के लिए भी इस दिन मुहूर्त नहीं देखा जाता, क्योंकि यह दिन अक्षय माना गया है। इस दौरान कई बाल-विवाह के मामले भी सामने आते हैं, जिससे समाज को मुक्त करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। अक्षय तृतीया से नई फसल के लिए तैयारी शुरू होती है। मिट्टी के गुड्डे-गुड़ियों की शादी की परम्परा से हमारे पुरखों ने इस त्यौहार को धरती से जोड़ा है, जिससे हम जीवन के आधार माटी को जीवंत मानकर उसका आदर सम्मान करें।
अपनी माटी और धरती को बचाना जरूरी
सीएम ने कहा कि पिछले दशकों में खेतों में रसायन और कीटनाशकों के अधिक उपयोग से धरती की उर्वराशक्ति नष्ट हो रही है। इससे हमारे अनाज विषैले होते जा रहे हैं, जिसका हमारे साथ-साथ पशुओं के स्वास्थ पर भी बुरा असर हो रहा है। उन्होंने कहा कि अब अपनी स्वस्थ परम्पराओं की ओर लौटने का समय है। अपनी माटी और धरती को अभी यदि नहीं बचाया गया तो बहुत देर हो जाएगी।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि वेद-पुराण में भी धरती से अनुमति लेने की बात है। किसान उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। जमीन को संभाल कर रखना है। इस जमीन ने रासायनिक खाद को एक समय तक पचाया, लेकिन अब अधिक हो गया तो वह फसलों में आ गया। उसका असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। सीधी सी बात है हम धरती की सेवा करेंगे तो मानव समाज की सुरक्षा होगी। उन्होंने कहा कि सिर्फ धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, गउ माता की जय हो, कहने से गउ माता की जय नहीं होगी। उसके लिए गउ माता की सेवा करनी होगी, चारे, पानी, इलाज और छाया का इंतजाम करना होगा।
यदि हम धरती माता की सेवा करेंगे तो धरती माता भी हमारा ध्यान रखेंगी। 68 लाख क्विंटल गोबर हमने खरीदा, अब हम गौमूत्र भी खरीदेंगे। जैविक खेती प्रकृति, धरती माता और पशुधन की सेवा है, जो मानव समाज को भी सुरक्षित रखेगी। आज पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग से चिंतित है, मैं पूरी दुनिया से कहना चाहता हूं कि हमने इससे निपटने की तैयारी शुरू कर दी है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना 1987 में हुई थी। आज 35 साल में लगभग 110 तरह के बीज हमारे विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तैयार किए हैं। लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि हमारे छत्तीसगढ़ के किसानों ने 23 हज़ार क़िस्म के बीज तैयार किया है, यह बताता कि हमारे किसान भी वैज्ञानिक सोच रखते थे।
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