रायपुर. भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव यानी रामनवमी की धूम मची हुई है. इन सबके बीच कुछ परंपराएं ऐसी हैं जो जनमानस के बीच आज भी अस्तित्व में बनी हुई हैं. कुछ साल पहले तक की बात है जब ये पूरी तरह जीवंत थीं. तब चौमासे के आषाढ़, सावन और भादो महीने में मानस गायन होता था. मजे की बात ये है कि भगवान श्रीराम की स्तुति कर वरुण देव और इंद्रदेव को प्रसन्न करते थे. यही तो लोकपरंपरा है, जिसमें आपसी एकता के साथ देवताओं में भी एकत्व का भाव परिलक्षित होता था. गांवों में ये आज भी दिख जाती हैं जब किसी घर के एक कमरे में दोहों और चौपाइयों के बीच टीका करते हुए मानस गायन गाया जाता है. उद्देश्य यही कि खेती संवर जाए और इस साल भी सुख-समृद्धि आए. मान्यता है कि इसका असर अच्छी फसल के रूप में और संपन्नता के रूप में परिलक्षित होता है.
अखंड रामायण भी है खास
भगवान श्रीराम के ननिहाल यानी दक्षिण कोसल छत्तीसगढ़ में श्रीराम के पूजन की परंपरा प्राचीनकाल से रही है. मानस गान में वाद्ययंत्रों की संख्या, टीकाकार और गायन करने वाले एक व्यक्ति मिलाकर सीमित संख्या में आयोजन सफल बनाया जाता है. जहां तक अखंड रामायण पाठ की बात करें तो इसका लंबा दौर चलता है, जिसके लिए ज्यादा से ज्यादा मानस प्रेमियों व गायन करने वालों की आवश्यकता होती है. ऐसे में अलग-अलग टोलियां डेढ़ से दो घंटे तक गायन करती हैं और फिर अगली टोली की बारी आती है.
ताकि न टूटे वाचन की कड़ी
बता दें कि अखंड रामायण में पूरा ध्यान श्रेष्ठ गायन करने के साथ ही इस पर भी दिया जाता है कि गायन की कड़ी बीच में न टूटे. इसमें एक ओर के लोग पहले मुखड़े के दोहों को गाकर शुरुआत करते हैं. इसके बाद बारी-बारी से अगली चौपाइयों, दोहों, सोरठों व छंदों को बिना रुके गाया जाता है. नीचे जमीन पर दरी बिछाकर और सामने रामचरितमानस को रखकर गायन किया जाता है. इस दौरान शब्दों के उच्चारण के साथ-साथ दोहे, श्लोक, छंद व सोरठे को अलग-अलग लय के साथ गाने पर विशेष ध्यान दिया जाता है. वाचन की कड़ी न टूटे इसलिए दोनों ओर के लोग पक्तियाें पर बराबर नजर बनाए रखते हैं.
रामचरित मानस एक, गायन शैलियां अनेक
आजकल जिस तरह से किसी एक गाने को कई कलाकारों, संगीतकारों द्वारा अलग-अलग तरीके से कंपोज करने का चलन आ गया है. इससे कवर सॉन्ग के रूप में म्यूजिक का नया दौर आ गया है. लेकिन, छत्तीसगढ़ की लोकपरंपरा में भी कई ऐसे बेनाम कला मर्मज्ञ रहे होंगे, जिनके चलते मानसगान की कई शैलियां विकसित हो चुकी हैं. किसी ने रामचरित मानस को खुद की बनाई शैली में गाया और जब यह औरों को पसंद आ गया तो वह भी इसे अपना लिया. इस तरह आज भी उस समय तैयार हुईं कई अलग-अलग शैलियां आज के मानस गायन में परिलक्षित होते हैं.
भगवान श्रीराम का छत्तीसगढ़ से ये संबध
जहां तक छत्तीसगढ़ से भगवान श्रीराम के नाते की बात करें तो सबसे प्रमुख तो ये है कि उनका ननिहाल ही दक्षिण कोसल रहा है, जहां के रायपुर जिले के आरंग नगर में सम्राट भानुमंत की बेटी के रूप में माता कौशल्या ने जन्म लिया था. दूसरा ये कि 14 वर्षों के वनवासकाल में भी श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ माता सीता को खोजते हुए पूरे छत्तीसगढ़ के वन प्रांतरों को पार करते हुए आगे बढ़े थे. उनके उसी मार्ग को आज श्रीराम वनगमन पथ के रूप में सरकार विकसित करने जा रही है. फिर महर्षि वाल्मीकि का आश्रम भी छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध तुरतुरिया धाम के पास रहा है, जहां माता सीता ने अपना समय व्यतीत किया. जहां लव और कुश अवतरित हुए. इसी धरा पर माता सीता ने भू समाधि ली थी.
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