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बीएसपी को लोहा दिलाएगा और बस्तर को देशभर से रेलवे के जरिए सीधे जोड़ेगा रावघाट प्रोजेक्ट, समझें आसान भाषा में

 Newsbaji  |  May 05, 2023 05:06 PM  | 
Last Updated : May 05, 2023 05:26 PM
रावघाट प्रोजेक्ट भिलाई स्टील प्लांट व बस्तर की जनता के लिए फायदेमंद.
रावघाट प्रोजेक्ट भिलाई स्टील प्लांट व बस्तर की जनता के लिए फायदेमंद.

रायपुर. छत्तीसगढ़ में विपक्ष की भूमिका निभा रही बीजेपी के सांसद समेत अन्य दिग्गज नेता जब चुनावी दौर में केंद्र में अपनी सरकार के रेलमंत्री से छत्तीसगढ़ के किसी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की बात करें तो इससे उस प्रोजेक्ट की अहमियत समझी जा सकती है. रावघाट रेल प्रोजेक्ट को लेकर कुछ इसी तरह की कवायद बीजेपी के नेता कर रहे हैं.

चाह रहे हैं कि रेलमंत्री घोषणा कर दें और बात आगे बढ़े. फिर श्रेय बीजेपी को मिलेगा. बात करें इस प्रोजेक्ट की तो यह बस्तर के वनांचल की बड़ी आबादी और भिलाई स्टील प्लांट के लिए वरदान साबित होगी. ऐसे में पूरे लोकेशन के साथ समझना महत्वपूर्ण होगा कि इससे क्या हासिल होने वाला है और वर्तमान में इसकी क्या स्थिति है.

कहां स्थित है रावघाट
दरअसल, रावघाट बस्तर संभाग में नारायणपुर यानी अबूझमाड़ क्षेत्र से लगे इलाके में है जहां पहाड़ियों की एक बड़ी श्रृंखला है. यह नारायणपुर से लेकर कांकेर तक फैली हुई है.

पहाड़ी के नीचे लौह अयस्क का भंडार
रावघाट पहाड़ी के नीचे दबा है आयरन ओर यानी लौह अयस्क का भंडार. यह इतनी मात्रा में है कि भिलाई स्टील प्लांट को लंबे समय तक यह अयस्क उपलब्ध करा सकती है. जबकि बीएसपी को इसकी सख्त जरूरत है.

बीएसपी को क्यों चाहिए रावघाट का लोहा
भिलाई स्टील प्लांट को अभी बालोद जिले के दल्ली राजहरा की पहाड़ियों से आयरन ओर मिल रहा है. लेकिन, यह तेजी से समाप्त होता जा रहा है. एक अनुमान है कि अगले पांच सालों में दल्ली राजहरा की खदानों में लौह अयस्क समाप्त हो जाएगा. तब तक नई व्यवस्था नहीं हुई तो बीएसपी में तालाबंदी की नौबत आ जाएगी.

बीएसपी के लिए क्यों जरूरी है रेल
भिलाई स्टील प्लांट तक आयरन ओर लाने के लिए हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से एक लाइन दल्लीराजहरा तक ले जाई गई है. मालगाड़ियों के जरिए आयरन ओर की सप्लाई वहां से बीएसपी तक होती है. जब रावघाट से लेकर बचेली, किरंदुल और बैलाडीला की पहाड़ियों का आयरन ओर चाहिए तो इसके लिए रावघाट तक रेललाइन बेहद आवश्यक है.

अभी रेलवे लाइन की स्थिति क्या है
1. हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग

वर्तमान में इस पूरे इलाके में दो रेल नेटवर्क काम कर रहा है. एक है हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग जो इस इलाके में व्हाया रायपुर-भिलाई-दुर्ग-राजनांदगांव से गुजरता है. इसी मार्ग में भिलाई के पास से एक लाइन दल्लीराजहरा तक गई है.

2. किरंदुल-विशाखापत्तनम
एक लाइन दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल से शुरू होकर ओडिशा के कोरापुट होते हुए विशाखापत्तनम तक जाती है. इस मार्ग पर किरंदुल, बचेली, बैलाडीला, दंतेवाड़ा, गीदम, जगदलपुर आदि प्रमुख शहर व महत्वपूर्ण जगह स्थित हैं.

बस्तर में रेल की वर्तमान स्थिति
बस्तर जैसे बड़े आदिवासी अंचल में एकमात्र किरंदुल विशाखापत्तनम लाइन है जो कुछ ही स्थानों को कवर करता है. जबकि हावड़ा-मुंबई मार्ग से दल्ली राजहरा तक आई लाइन बस्तर में प्रवेश से पहले ही समाप्त हो जाती है.

बस्तर को क्यों चाहिए रेल
बस्तर जैसे वनांचल इलाके में सस्ते साधन का बेहद अभाव है. यहां बड़े शहरों को जोड़ते हुए लग्जरी बसें और फिर कुछ छोटी बसें चलती हैं. रेलवे लाइन यदि इन क्षेत्रों से होकर गुजरे तो बहुत सारा आदिवासी वनांचल कवर होगा और वहां की आबादी को सस्ते साधन के रूप में रेल सुविधा मिलेगी.

अब जानते हैं प्रस्तावित रावघाट रेलवे प्रोजेक्ट को
इस प्रोजेक्ट में किरंदुल-विशाखापत्तनम रेलमार्ग को हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से जोड़ा जाएगा. लेकिन, इसमें मदद पहले से निर्मित रेलमार्ग करेगा. जी हां, एक ओर रावघाट से दल्ली राजहरा तक 95 किलोमीटर की रेललाइन तैयार की जाएगी. इससे रावघाट की पहाड़ियां हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से सीधे जुड़ जाएंगी. दूसरा हिस्सा है किरंदुल-विशाखापत्तनम रेलमार्ग से रावघाट को जोड़ना. इसके लिए जगदलपुर से रावघाट तक 140 क‍िलोमीटर लंबी लाइन बिछाई जाएगी. इस तरह कुल 235 किलोमीटर की रेललाइन बिछते ही बस्तर की बड़ी आबादी को रेल सुविधा और बीएसपी को निर्बाध आयरन ओर मिलने लगेगा.

प्रोजेक्ट का ये है इतिहास
बता दें कि 235 किलोमीटर का ये प्रोजेक्ट हाल फिलहाल की बनाई योजना नहीं है. बल्कि बस्तर की बड़ी आबादी को रेल सुविधा देने के लिए वर्ष 1993 से ही योजनाएं बन रही हैं, लेकिन अब तक यह शुरू नहीं हो पाया था. लेकिन, अब दोबारा सक्रियता बढ़ाई गई है. उम्मीद की जा रही है कि अब रेलमार्ग पूरा होकर ही दम लिया जाएगा.

दल्ली राजहरा से जुड़ रहा रावघाट
वर्तमान में दल्ली राजहरा से रावघाट तक 95 किलोमीटर लंबे रेलमार्ग को बनाने के लिए सारी बाधाओं को दूर कर काम शुरू किया जा चुका है. लेकिन, जगदलपुर से रावघाट तक 140 किलोमीटर को लेकर जमीन अधिग्रहण से लेकर कई और मसले हैं, जिन्हें सुलझाने की कवायद की जा रही है.

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