छत्तीसगढ़. उत्तर प्रदेश के अयोध्या में रामलला को उनके ननिहाल छत्तीसगढ़ के धान-बीज का चावल प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा। क्यों कि छत्तीसगढ़ उनका ननिहाल माना जाता है। उनकी माता कौशल्या का जन्म स्थान छत्तीसगढ़ के चंद्रखुरी का है। अयोध्या स्थित पुरारी सीड्स कंपनी ने 110 क्विंटल बीज का सौदा इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर से 3 लाख 50 हजार रुपए में किया है। इस बीज को अयोध्या एवं उसके आसपास के क्षेत्रों के खेतों में बोया जाएगा। बताया जा रहा है कि रामलला के विशेष भोग प्रसाद के लिए 110 क्विंटल बीज को अयोध्या में लगभग 1200 एकड़ खेत में बोया जाएगा।
चावल से तैयार होगा विशेष भोग
कृषि महाविद्यालय रायपुर के डॉ. विवेक त्रिपाठी ने बताया कि 110 क्विंटल छत्तीसगढ़ देवभोग बीज अप्रैल के अंत तक अयोध्या सप्लाई होगा। पुरारी सीड्स कंपनी अयोध्या के संचालक रामगोपाल तिवारी ने बताया कि बारिश के मौसम में किसान यहां देवभोग धान का उत्पादन करेंगे। इस धान के चावल से अयोध्या मंदिर में रामलला के लिए विशेष भोग तैयार किया जाएगा। राज्य सरकार का दावा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में किसानों के हित में अनेक योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में तीर्थ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना के अंतर्गत उन स्थानों का विकास कर रही है। जहां वनवास काल के दौरान भगवान राम की स्मृतियां जुड़ी हैं।
चार राज्यों में बोया जाएगा देवभोग चावल-केन्द्रीय कृषि मंत्रालय
छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक उत्पादन देने वाली धान की प्रजाति स्वर्णा और छत्तीसगढ़ में धान की एक पुरानी प्रजाति जीराशंकर को प्लांट ब्रीडिंग के बाद इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने देवभोग नाम का यह धान विकसित किया है। स्वर्णा प्रजाति को आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित किया था। देवभोग का चावल पतला, सुगंधित और मुलायम चावलों की प्रजाति में गिनती की जाती है। इसका धान 135-140 दिन में पकता है और उत्पादन 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आता है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इसे छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में बोने की अनुशंसा की है।
बड़े पैमाने पर होती है खेती
छत्तीसगढ़ में बड़ी मात्रा में किसान देवभोग धान की बुवाई करते हैं। रायपुर और इससे जुड़े दुर्ग जिले में पाटन क्षेत्र, धमतरी जिले में देवभोग का उत्पादन होता है। इन क्षेत्रों के किसानों से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कंपनियां जुड़ रही हैं। पहले इस किस्म के धान का पौधा 130-150 सेंटीमीटर तक होता था। बाद में कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के साथ संयुक्त रूप से परियोजना चलाई। जिसमें परमाणु विकिरण के कारण पौधे की लंबाई 110 सेंटीमीटर तक सीमित करने के साथ ही उत्पादकता बढ़ाने में भी सफलता पाई।
200 किस्में विकसित कर चुका है विश्वविद्यालय
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर ने अब तक विभिन्न फसलों की 200 से भी अधिक किस्में विकसित की जा चुकी हैं। साल 1987 से अब तक 40 किस्मों के धान ही इसमें शामिल हैं। धान की किस्मों में महामाया, पूर्णिमा, दंतेश्वरी, बम्लेश्वरी, दुबराज, दुबराज सेलेक्शन-1, विष्णुभोग सेलेक्शन-1, बादशाह भोग, तरुणभोग आदि शामिल है।
भिलाई की स्मृति नगर चौकी पर पथराव, पुलिस ने 14 लोगों पर दर्ज किया मामला
शबरी पार छत्तीसगढ़ दाखिल हो रहे नक्सली का एनकाउंटर, एक जवान भी घायल
Copyright © 2021 Newsbaji || Website Design by Ayodhya Webosoft