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राहुल गांधी ने रायपुर में बताया भारत जोड़ो यात्रा का एक्सपीरिएंस, कहा- मुझे घमंड था...

 Newsbaji  |  Feb 26, 2023 02:34 PM  | 
Last Updated : Feb 26, 2023 02:34 PM
राहुल गांधी ने महाधिवेशन में भारत जोड़ो यात्रा का अनुभव साझा किया.
राहुल गांधी ने महाधिवेशन में भारत जोड़ो यात्रा का अनुभव साझा किया.

रायपुर. कांग्रेस के रायपुर में चल रहे राष्ट्रीय महाधिवेशन में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने भाषण में भारत जोड़ो यात्रा के अनुभव साझा किए. इसमें उन्होंने भौतिक यात्रा की बातें तो बताई ही, उनके अंदर चल रही यात्रा पर भी दिल खोलकर अपनी बातें रखीं. इसमें उन्होंने कहा कि यात्रा शुरू करने से पहले मुझे घमंड था, लेकिन अहंकार भी जाता रहा. इसके लिए उन्होंने यात्रा के शुरुआती चरण में केरल से जुड़ी यादें साझा की.

राहुल गांधी ने बताया कि केरल में जब मैं बोट में बैठा था. पूरी टीम के साथ रोइंग कर रहा था तब मेरे शरीर में भयंकर दर्द था. तस्वीर में मैं मुस्कुरा रहा था लेकिन दर्द से रो रहा था. मुझे घमंड था कि 10-12 किलोमीटर चल लेता हूं तो 20 किलोमीटर चलने में कोई दिक़्क़त नहीं आएगी. कॉलेज के दिनों में मुझे घुटने में दर्द थी.

लेकिन फिर मैंने सोचा कि सिर्फ़ 25 किलोमीटर नहीं. 3,500 किलोमीटर चलना है. पहले 10-15 दिनों में मेरा अहंकार ग़ायब हो गया. भारतमाता ने मैसेज दिया. कन्याकुमारी से कश्मीर चलने निकले हो तो अपने दिल से अहंकार निकालो वरना मत चलो. मुझे उनकी बात सुननी पड़ी. मुझमें इतनी शक्ति नहीं थी कि इस बात को ना सुनुं.

अब सुनिए यात्रा की आगे की कहानी उन्हीं की जुबानी...
चार महीने तक कन्याकुमारी से श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा हमने की. हमारे साथ लाखों लोग चले. बारिश, गर्मी, बर्फ में हम सब एक साथ चले. बहुत कुछ सीखने को मिला. पंजाब में एक मैकेनिक आकर मुझसे मिला. मैंने उसका हाथ पकड़ा और सालों की उसकी तपस्या, सालों का दर्द जैसे ही मैंने उसका हाथ पकड़ा. उसके हाथों से मैंने उसकी बात पहचानी. एक ट्रांसमिशन जैसा हो जाता था. शुरुआती दौर में लोगों से उनकी समस्याओं को पूछता था लेकिन एक दो महीने बाद कुछ पूछने की ज़रूरत महसूस नहीं होती थी. उनका दर्द एक सेकंड में समझ आ जाती थी. मेरे बग़ैर कुछ कहे वो लोग भी समझ जाते थे.

पहले मैं किसान से मिलता था तब उसे मैं अपना ज्ञान समझाने की कोशिश करता था. खेती, मनरेगा जैसी थोड़ी बहुत जो जानकारी है उसे बताता था. फिर मैंने इसे बंद कर दिया. आहिस्ते आहिस्ते मैंने सन्नाटे में लोगों को सुनने लगा. जब मैं जम्मू कश्मीर पहुँचा. मैं ख़ुद चुप हो गया.

1977 की बात है. जब चुनाव आया. मैं छह साल का था. मैं मां के पास गया. उनसे पूछा कि क्या हुआ? मां ने कहा हम घर छोड़ रहे हैं. तब तक मैं सोचता था कि वह घर हमारा था. मैंने माँ से पूछा कि हम घर क्यों छोड़ रहे हैं. तब पहली बार बताया कि यह हमारा घर नहीं है. ये सरकारी है. अब हमें जाना होगा. मैंने पूछा कि कहाँ जाना है? उन्होंने मुझे बताया कि नहीं मालूम कहा जाना है. 52 साल हो गये मेरे पास आज तक घर नहीं है. इलाहाबाद में हमारा जो घर था वह आज हमारा नहीं है. घर से अजीब सा रिश्ता होता है. मैं 12 तुगलग लेन में रहता हूँ लेकिन उसे मैं घर नहीं मानता.

जब मैं कन्याकुमारी से निकला तब मैंने सोचा कि मेरी क्या ज़िम्मेदारी है? मैंने थोड़ी देर सोचा. फिर दिमाग़ में एक आइडिया आया. मेरे ऑफिस के लोगों को मैंने बुलाया और कहा कि देखिए यहां हज़ारों लोग चल रहे हैं. धक्का लगेगा, लोगो को चोट लगेगी. हमे एक काम करना है कि मेरे सामने और आजु बाजू बीस पच्चीस फुट ख़ाली जगह है जिसमें हिंदुस्तान के लोग हमसे मिलने आएंगे अगले चार महीने के लिये यह हमारा घर है.

यह घर हमारे साथ चलेगा. मैंने सबसे कहा कि इस घर में जो भी आएगा. अमीर हो, ग़रीब हो, बुजुर्ग हो, बच्चा हो, देश के बाहर का हो वाईके जानवर ही क्यों ना हो उसे ये लगना चाहिए कि आज वह अपने घर आया है. जब वह जाये तो उसे लगना चाहिये कि वह अपने घर को छोड़कर जा रहा है.

जैसे मैंने ये किया, जिस दिन किया उस दिन से यात्रा बदल गई. जादू से बदल गई. लोग मुझसे राजनीतिक बात नहीं कर रहे थे. इस देश की महिलाओं ने मुझसे क्या कहा ये मैं बता भी नहीं सकता, युवाओं के दिल का दर्द मैं बता नहीं सकता. कितना बोझ उठा रहे है. बिलकुल रिश्ता बदल गया.

एक दिन सुबह सुबह हम चल रहे थे. साइड में एक महिला भीड़ में खड़ी थी. मैंने उसे बुलाया. मैंने उसका हाथ पकड़ा. मुझे लगा कि कुछ ना कुछ ग़लत है. जैसे मैं प्रियंका का हाथ पकड़ता हूं वैसे ही मैंने पकड़ा. उसने मुझसे कहा- भैया मैं आपसे मिलने आई हूँ. मैंने पूछा क्या बात है? उसने कहा मेरा पति मुझे पीट रहा है. मैंने पूछा कब उसने कहाँ अभी पीट रहा था. मैं भागकर यहाँ आई हूँ. मैंने कहा पुलिस को बुलाये उसने कहा नहीं. फिर कहा मैं वापस जा रही हूँ. फिर से पीटने. ऐसी लाखों महिलाएँ हैं इस देश में. उस घर को हमने आहिस्ते आहिस्ते जम्मू कश्मीर तक ले गए.

मेरा परिवार सालों पहले वहां से आया. मैंने सोचा कि अजीब सी बात है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक एक छोटे से घर को ले जा रहा हूँ और अपने छोटे से घर लौट रहा हूँ. कश्मीर में घुसते समय वैली से पहले बर्फ है, धूप है. हज़ारों लोग हमारे साथ चल रहे थे. एक लड़का मुझसे पूछता है कि राहुल जी जब कश्मीर के लोगों को दुख होता है. हमारे दिल में चोट लगती है तो बाक़ी हिंदुस्तान के लोगों को ख़ुशी क्यों मिलती है? मैंने कहा कि ग़लतफ़हमी में हो. ऐसी कोई बात नहीं है. मैं दावे से कह सकता हूँ कि करोड़ों लोगों के दिल में ऐसी भावनाएँ नहीं है. उसने मेरी आंख में आंख मिलाकर कहा राहुल जी आपने मुझे खुश कर दिया.

बातचीत करते मैं देख रहा था चारों ओर तिरंगा था. हम वैली में घुसे. बादल छा गया. धूप ग़ायब हो गई. पुलिस ने कहा कि दो हज़ार लोग आयेंगे. वहां घुसते ही देखा कि चालीस हज़ार लोग वहाँ आये. पुलिस वालों ने जैसे ही चालीस हज़ार लोगों को देखा रस्सी छोड़कर भाग गए. सब ग़ायब हो गये. मैं देख रहा था कि हिंदुस्तान के सबसे आतंक ग्रस्त राज्य में हर तरफ़ तिरंगा था. हमारे साथ सिर्फ़ 125 लोग थे. हज़ारों कश्मीरियों ने तिरंगा उठा रखा था. कश्मीरी युवाओं के हाथों तिरंगा था. सीआरपीएफ़ के लोग मुझसे कह रहे थे कि हमने ऐसा कभी नहीं देखा.

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