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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के राजभवन को नोटिस भेजने को असंवैधानिक बताते हुए दायर हुई याचिका, फैसला भी सुरक्षित

 Newsbaji  |  Feb 09, 2023 06:54 PM  | 
Last Updated : Feb 09, 2023 06:54 PM
हाईकोर्ट ने याचिका पर फैसला सुरक्षित कर लिया है.
हाईकोर्ट ने याचिका पर फैसला सुरक्षित कर लिया है.

बिलासपुर. आरक्षण के मामले में राज्यपाल द्वारा बिल पर हस्ताक्षर नहीं करने की बात को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई थी. इस पर हाईकोर्ट राजभवन के नाम नोटिस जारी किया गया है. वहीं अब राजभवन के सचिवालय से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा ही जारी नोटिस को असंवैधानिक बताया गया है. अब इस मामले में कोर्ट ने फैसले को सुनवाई के लिए सुरक्षित रख लिया है.

दरअसल, राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में आरक्षण को लेकर प्रदेश में विभिन्न वर्गों के आरक्षण में बढ़ोतरी कर कुल आरक्षण को 76 प्रतिशत करते हुए नया आरक्षण संशोधन विधेयक तैयार किया गया है. विधानसभा का विशेष सत्र आयोजित कर इसे पास भी कराया गया. फिर इसे राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए राजभवन भेजा गया. राज्यपाल अनुसुईया उईके ने इसमें अब तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं. इसके कारण मामला अटका हुआ है.

पिछले दिनों राज्य सरकार और हाईकोर्ट के वकील  हिमांक सलुजा ने अलग-अलग दो याचिकाएं दायर की. इस पर दोनों ही मामलों की एक साथ सुनवाई की गई. इसमें याचिकाओं में उठाए गए सवालों के संदर्भ में जवाब पेश करने के लिए हाईकोर्ट की ओर से राजवभवन के सचिवालय को नोटिस जारी किया गया.

संविधान के आर्टिकल का दिया हवाला
अब मामला इसलिए गर्म हो गया है, क्योंकि राजभवन की ओर से ही हाईकोर्ट द्वारा नोटिस भेजे जाने पर सवाल उठाया गया है और याचिका दायर की गई है. इसमें कहा है कि आर्टिकल 361 के तहत किसी भी प्रकरण में राष्ट्रपति या राज्यपाल को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता है। अंतरिम राहत पर बहस के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. आपको बता दें कि राज्यपाल सचिवालय की ओर से पूर्व असिस्टेंट सालिसिटर जनरल और सीबीआई एवं एनआईए के विशेष लोक अभियोजक बी. गोपा कुमार ने तर्क पेश किया.

इसके अलावा ये भी कहा गया है कि आरक्षण विधेयक बिल राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा गया है। लेकिन, इसमें समय सीमा तय नहीं है कि कितने दिनों में बिल पर निर्णय लेना है. याचिका के साथ ही अंतरिम राहत की मांग कर कहा गया है कि प्रथम दृष्टया याचिका पर राजभवन को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता। ऐसे में इसे निरस्त करने की बात कही गई है.

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