रायपुर. प्रदेश के पहले मुखिया स्व. अजीत जोगी का पार्टी में रहते हुए कांग्रेस संगठन के मुखिया से बैर जगजाहिर रहा है. बेटे अमित जोगी को आगे बढ़ाने और फिर कई मामलों में उन्हें बचाने के दौर में ये बढ़ता भी चला गया. अंतत: उन्हें अलग पार्टी भी बनानी पड़ी. नई पार्टी जकांछ का भी कांग्रेस से ही संघर्ष था. यही काम अब उनके बेटे अमित जोगी कर रहे हैं. भूपेश बघेल से टकराने सीधे उनके गढ़ में पहुंचे हैं. अजीत जोगी की पार्टी अब उनके निधन के बाद पहचान के संकट के दौर से भी गुजर रहा है. जोगी के खास सिपहसालार अमित से छिटकते चले गए. अब जब पाटन से अमित जोगी ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया है तो इसके कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं.
बीजेपी और कांग्रेस के सीधे मुकाबले में किसे फायदा होगा और किसको नुकसान उठाना पड़ेगा या तो चर्चा इस बात पर हो रही है, या फिर इन सबसे परे होकर इसे अमित जोगी के राजनीतिक कॅरियर में अस्तित्व बचाने के इस बुरे दौर में खुद को नेशनल मीडिया में हाइप दिलाने की उनकी कवायद माना जा रहा है. उनके खुद के जीतने की संभावना चर्चा या बहस से कोसों दूर है.
जातीय पैठ की बात अब बेमानी
था कोई दौर जब किसी भी दल के कोई भी परंपरागत वोटर क्यों न हो, अजीत जोगी का प्रभाव कुछ जाति वर्ग में अलग से पड़ ही जाता था. विशेषकर सतनामी समाज के साथ कुछ अन्य वर्ग शामिल रहा है. अब इस बारे में अमित जोगी के संदर्भ में बात करें तो इसे बेमानी ही माना जा रहा है. जो पार्टी खुद अस्तित्व के संकट से गुजर रहा हो वहां कोई भी समाज या वर्ग क्यों इस पर दिलचस्पी लेगा यह सोचने वाली बात है.
बीजेपी के छिटके वोटर्स के बीच नुकसान कांग्रेस को ही, पर कितना...
बीजेपी को कैडर बेस पार्टी माना जाता है. बूथ लेवल तक उनकी पैठ होती है. लेकिन, कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में और फिर उसके बाद उनके वोटों पर कितनी सेंध लगाई है यह जगजाहिर है. खुद विजय बघेल को लेकर कहा जा रहा है कि बीजेपी ने उन्हें बलि का बकरा बनाया है. अब जो कैडर के लिहाज से बीजेपी के वोटर रह गए हैं वही विजय को वोट देंगे और कुछ जो मोदी के प्रभाव में हैं वो. अब इन वोटर्स पर सेंध तो अमित जोगी लगाने से रहे. नुकसान वे जातीय वोट के जरिए कांग्रेस और भूपेश बघेल का ही करेंगे. लेकिन, इस हालात में कितना करेंगे इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.
2008 के नतीजे के बरक्स 2023
1993 से 2003 तक लगातार जीतते आ रहे भूपेश बघेल को पहली बार किसी ने पटखनी दी थी, वे खुद विजय बघेल थे. 2003 में भी उनका मुकाबला एनसीपी कैंडिटेट के रूप में भूपेश बघेल के खिलाफ ही था और इस बार बीजेपी से प्रत्याशी थे. उस एक विजय को याद करते हुए बीजेपी ने दुर्ग सांसद विजय को एक बार फिर पाटन से अपना प्रत्याशी बनाया है. इस फैसले को लेकर जानकारों का कहना है कि तब डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी ने जनता के बीच एक अलग पैठ बनाई थी.
विजय की जीत में कहीं न कहीं उसका असर था. अब जब परिस्थितियां बदल गई हैं. पूर्व मंत्री और कांग्रेस संगठन में तीसरी कतार के नेता के रूप में पहचाने जाने वाले भूपेश बघेल को हराना और बात थी. प्रदेश के मुखिया और गैरभाजपा शासित राज्य के रूप में रोलमॉडल बनने वाले भूपेश बघेल की बात और. पाटन इलाके की सड़कों की चौड़ाई देखकर क्षेत्र के विकास के रूप में स्थानीय असर भी सीएम बघेल का प्रभाव डालता दिख रहा है.
खैर, नतीजा क्या निकलता है ये तो वक्त ही बताएगा. बहरहाल भूपेश-विजय के चाचा-भतीजे की लड़ाई के बीच अमित जोगी को एक फायदा जरूर हो रहा है. इस हाईप्रोफाइल सीट के जरिए उनका नाम पर चल रहा है. चर्चा में ही सही, अस्तित्व कायम है.
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