बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने गुरुवार को परसा कोल ब्लाक भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। इस दौरान आधी रात की गई पेड़ों की कटाई पर कड़ा रुख अपनाया और इस पर राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है। गौरतलब है कि याचिकाओं में लगाए गए स्टे आवेदन और संशोधन आवेदन पर बहस होनी थी। पर चीफ जस्टिस की खण्डपीठ जहां सामान्य रूप से यह मामले सुने जाते हैं, उनके उपलब्ध न होने के कारण जनहित याचिका पर जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके.चन्द्रवंशी के डिवीजन बेंच में सुनवाई के लिए भेजा गया। मामले की अगली सुनवाई 04 मई को होगी।
गुरुवार को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव श्रीवास्तव और अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने पक्ष रखते हुये बताया कि वैसे तो याचिकाओं में कोल बेयरिंग एक्ट को भी चुनौती दी गई है। परन्तु उस एक्ट को संवैधानिक मानकर भी यदि चला जाये तो अधिग्रहित की गई जमीन किसी निजी कंपनी को खनन के लिये नहीं दी जा सकती।
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम और राजस्थान कालरी (अडानी) की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता निर्मल शुक्ला ने कहा कि पेड़ों की कटाई कम्पनी ने नहीं वन विभाग ने की है और खदान को सभी तरह की वन पर्यावरण अनुमति प्राप्त है। इस स्तर पर खण्डपीठ ने यह पूछा कि यदि भूमि अधिग्रहण निजी कंपनी के हाथ जाने के कारण अवैध साबित होता है, तो इन कटे हुए पेड़ों को क्या पुर्नजीवित किया जा सकता है।
परसा ईस्ट-केते-बासेन परियोजना को वर्ष 2019 में ही फारेस्ट क्लीयरेंस मिल चुका है। राज्य सरकार की हरी झंडी मिलने के बाद पेड़ों की कटाई के लिए मार्किंग शुरू करने का भी ग्रामीणों ने विरोध किया था। ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए वन विभाग द्वारा रात को सॉ मशीन लगाकर बड़ी संख्या में पेड़ों को कटवा दिया। इसके बाद लोगों ने जंगल में डेरा डाल दिया है। अफसर कुछ भी कहने से बच रहे हैं। अनुमान के अनुसार करीब 1 लाख पेड़ काटे जाएंगे।
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