रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि, इस सरकार ने सदन का विश्वास पूरी तरह से खो दिया है। उन्हें पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। चर्चा के दौरान भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने विश्व आदिवासी दिवस के औचित्य पर सवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा, यह राजनीतिक छुट्टी है। इसके बाद सदन में बवाल हो गया। हंगामे के बीच सदन की कार्यवाही 10 मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी।
दरअसल, अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में बोलते हुए संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त का जिक्र कर दिया। उन्होंने कहा, आदिवासी सम्मान से जुड़े इस दिवस को सरकार ने सार्वजनिक अवकाश घोषित किया। इसपर भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने कहा कि, विश्व आदिवासी दिवस उन देशों के लिए घोषित किया गया था जहां आदिवासी समुदाय संकटग्रस्त हैं। हमारे देश की इतिहास-परंपरा से इसका कोई लेना-देना नहीं है। चंद्राकर ने कहा, यह शुद्ध रूप से राजनीतिक छुट्टी है। इस बयान के बाद कांग्रेस के लगभग सभी आदिवासी विधायक विरोध में खड़े हो गए। उनका कहना था, ऐसा करके अजय चंद्राकर आदिवासी समुदाय का अपमान कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी इसका विरोध किया। उन्होंने कहा, अजय चंद्राकर की यही भाषा हो गई है। किसी को आइटम गर्ल बोल दिया। किसी को चियरलीडर्स बोल दिया। यह ठीक नहीं है। हंगामे के बीच विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने सदन की कार्यवाही को 10 मिनट के लिए स्थगित कर दिया।
प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करते हुए भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि, इस सरकार ने पिछले तीन सालों में कुछ भी नहीं किया। जिन वादों के सहारे इनको सत्ता मिली थी। उसको भी पूरा नहीं कर रही है। वहीं कांग्रेस विधायक मोहन मरकाम ने कहा, सत्ता में आने के बाद सरकार ने किसानों की कर्जमाफी, अधिग्रहीत जमीन वापस करने, 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदने जैसे बड़े काम किए हैं। सरकार आम लोगों के हक में काम कर रही है।
कर्मचारियों के नियमितिकरण का मुद्दा
सदन में इससे पहले प्रश्नकाल में अनियमित और संविदा कर्मचारियों के नियमितिकरण का मामला उठा। भाजपा विधायक विद्यारतन भसीन के सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया कि, नियमितिकरण के लिए दिसम्बर 2019 में अधिकारियों की एक समिति बनाई गई थी। विभागों, मंडलों, आयोगों और प्राधिकरणों से अनियमित कर्मचारियों की जानकारी मंगाई गई है। कई विभागों से जानकारी मिल चुकी है। कुछ विभागों में जानकारी जुटाई जा रही है। कई मामले अदालतों में चल रहे हैं। मई 2019 में महाधिवक्ता से इसपर अभिमत भी मांगा गया था, जो अब तक नहीं मिला है।
मुख्यमंत्री यह भी बताया कि, कोरोना की वजह से यह प्रक्रिया पूरी करने में दिक्कत हुई है। अब हालात सामान्य हो रहे हैं। जल्दी ही इस काम को पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद भाजपा विधायक भड़क गए। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि, यह कैसे हो सकता है कि दो-तीन साल में महाधिवक्ता कार्यालय से अभिमत तक नहीं आया। शिवरतन शर्मा ने सरकार पर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाया। विधायक सौरभ सिंह ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का 2006 का एक निर्णय है जिसके तहत नियमितीकरण हो ही नहीं सकता। सरकार लोगों को गुमराह कर रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, आप देखते रहिए अभिमत भी आएगा और नियमितीकरण भी होगा। इसके बाद विपक्ष के विधायकों ने सीट से खड़े होकर सवाल उठाने शुरू कर दिए। हंमामे के बीच सदन की कार्यवाही को 10 मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी।
सुपेबेड़ा के मामले में घिरी सरकार
भाजपा विधायक डमरुधर पुजारी के सवाल पर लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गुरु रुद्र कुमार घिर गए। उन्होंने कहा कि, जन घोषणापत्र में सुपेबेड़ा को लेकर कोई वादा ही नहीं था। 02 फरवरी 2019 को सुपेबेड़ा प्रवास के दौरान स्वास्थ्य मंत्री और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ने तेल नदी से वहां के आठ गांवों को समूह पेयजल योजना की घोषणा की थी। 13 अगस्त 2021 को उसकी प्रशासकीय स्वीकृति में फिल्टर प्लांट को भी सम्मिलित किया गया। अगस्त 2021 में निविदा आमंत्रित की गई थी। बाद में न्यूनतम निविदाकार की ओर से इसकी वैधता तिथि बढ़ाने से असहमति जताने पर नई निविदा जारी करने का फैसला हुआ है। इसकी कार्यवाही अभी प्रक्रिया में है। इस जवाब से असंतुष्ट विपक्ष ने सदन में जमकर हंगामा कर किया।
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