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झीरम घाटी हत्याकांड की आरोपी 20 लाख की इनामी नक्सली का आत्मसमर्पण

 Newsbaji  |  Nov 15, 2024 12:53 PM  | 
Last Updated : Nov 15, 2024 12:53 PM
झीरम मामले में शामिल महिला नक्सली ने तेलंगाना के वारंगल में सरेंडर किया है.
झीरम मामले में शामिल महिला नक्सली ने तेलंगाना के वारंगल में सरेंडर किया है.

रायपुर. छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित झीरम घाटी हत्याकांड में शामिल 20 लाख की इनामी नक्सली मंजुला उर्फ निर्मला ने 15 नवंबर 2024 को तेलंगाना के वारंगल में आत्मसमर्पण कर दिया. मंजुला, जो दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमिटी और साउथ सब डिविजन ब्यूरो की सदस्य रही है, ने वारंगल के पुलिस कमिश्नर के समक्ष अपने हथियार डाल दिए.

मंजुला कुख्यात नक्सली नेता कोडी कुमार स्वामी उर्फ आनंद और कोडी वेंकन्ना उर्फ गोपन्ना की बहन है. मंजुला 1994 में माओवादी संगठन में शामिल हुई थी और लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियों की वांछित सूची में थी. बता दें कि 25 मई 2013 का दिन छत्तीसगढ़ के राजनीतिक इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है. इस दिन, झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था.

इस हमले में वरिष्ठ कांग्रेस नेता नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार सहित 30 नेताओं और कार्यकर्ताओं की निर्ममता से हत्या कर दी गई थी. यह हमला राज्य में राजनीतिक और सुरक्षा दोनों स्तरों पर भारी विफलता का प्रतीक बन गया.

जांच और रहस्यों के बीच फंसा मामला
झीरम घाटी हत्याकांड के बाद से अब तक विभिन्न जांच एजेंसियों और सरकारों ने मामले को सुलझाने की कोशिश की है, लेकिन यह घटना अब तक रहस्यों में डूबी हुई है. घटना की जिम्मेदारी 27 मई 2013 को केंद्र सरकार ने एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) को सौंपी थी. बावजूद इसके, हमले के साजिशकर्ताओं और इसके पीछे की मंशा का अब तक खुलासा नहीं हो सका है. घटना की जांच में सुरक्षा चूक और आपराधिक षड्यंत्र पर विशेष ध्यान दिया गया, लेकिन कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया.

मंजुला का आत्मसमर्पण: उम्मीद की किरण?
मंजुला का आत्मसमर्पण सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी सफलता मानी जा रही है. वह झीरम घाटी हत्याकांड में सक्रिय भूमिका निभाने वाली प्रमुख नक्सली नेताओं में से एक थी. पुलिस को उम्मीद है कि उसके बयान और जानकारी से इस हत्याकांड के अनसुलझे पहलुओं को समझने और मुख्य साजिशकर्ताओं तक पहुंचने में मदद मिलेगी. मंजुला के सरेंडर से नक्सली संगठन पर भी मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ सकता है.

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