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छत्तीसगढ़ में किडनी की बीमारी से मौतों का सिलसिला जारी, अब तक 79 लोगों की हो चुकी मौत, सरकारी दावें फेल

 Newsbaji  |  Jun 11, 2022 07:55 PM  | 
Last Updated : Jan 06, 2023 10:18 AM

छत्तीसगढ़। प्रदेश के गरियाबंद जिले में किडनी की बीमारी से लोगों की मौतें थमने का नाम नहीं ले रही है। किडनी रोग से प्रभावित सुपेबेड़ा गांव के एक और मरीज ने दम तोड़ दिया है। 54 साल के शिक्षक तुकाराम क्षेत्रपाल ने बीती रात अंतिम सांस ली। उनको पेरीटोनियल डायलिसिस के लिए रायपुर एम्स में भर्ती कराया गया था। तुकाराम की इस मौत को मिलाकर सुपेबेड़ा में किडनी की गंभीर बीमारी से मरने वालों की संख्या अब 79 हो गई है।

उस गांव के ग्रामीणों ने बताया कि, सुपेबेड़ा के पास ही तिरलीगुड़ा के स्कूल में पदस्थ तुकाराम क्षेत्रपाल को किडनी की बीमारी का पता 2017 में चला था। तबसे इलाज चल रहा था। इसके बावजूद उनकी तबीयत बिगड़ती ही गई। पिछले महीने उनकी स्थिति ज्यादा गंभीर हो गई थी। उन्हें एम्स ले जाया गया, वहां से पता चला कि उनके खून में यूरिया की मात्रा दो गुना और क्रिटिनीन की मात्रा 9 गुना बढ़ गई है। करीब 15 दिन पहले उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था। वहां उनका पेरीटोनियल डायलिसिस किया जा रहा था। लेकिन बीती रात 9 बजे के करीब एम्स में ही उन्होंने अंतिम सांस ली।

तुकाराम अपने पीछे परिवार में पत्नी और बेटा छोड़ गए हैं। हाल ही में उन्होंने बेटे की शादी की थी। करीब दो महीने पहले सुपेबेड़ा के ही 47 वर्षीय पुरंदर आडिल की मौत हुई थी। उन्हें भी रायपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल ने उन्हें रेफर कर दिया तो परिजन उन्हें घर लाए जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। गांव के ही सोनवानी जी का कहना है, पिछले कुछ सालों से शायद ही कोई महीना बचता हो जिसमें उनके गांव के किसी न किसी व्यक्ति की किडनी के रोग से मौत न हुई हो। ग्रामीण इस रोग को लेकर काफी डरे हुए है।

32 ग्रामीण अभी भी गंभीर बीमार
ग्रामीणों के मुताबिक, गांव में किडनी रोग के लक्षणों वाले सैकड़ो लोग हैं। 32 ऐसे मरीज हैं, जिनमें बीमारी कंफर्म हो चुकी है। उनका इलाज विभिन्न अस्पतालों से चल रहा है। कई परिवारों की आर्थिक स्थिति भी बीमारी की वजह से बेहद खराब होती जा रही है।

दशकों से गांव के लोग किडनी की बीमारी से परेशान
जिले के देवभोग ब्लॉक स्थित सुपेबेड़ा और आसपास के कुछ गांवों में किडनी की बीमारी से ग्रामीणों की मौतें हो रही है। एक दशक से ग्रामीण उसका रिकॉर्ड रख रहे हैं। उनके मुताबिक, अब तक 105 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। सरकारी रिकॉर्ड में यह संख्या 79 ही है। शुरुआती उपेक्षा के बाद सरकार जागी तो बीमारी की वजह तलाशने की कोशिश शुरू हुई।

जानकारी के मुताबिक, सुपेबेड़ा और आसपास के गांवों के पेयजल में भारी धातुएं हैं। उसकी वजह से किडनी खराब हो रही है। सरकार ने गांव में एक ऑर्सेनिक रिमूवल प्लांट लगा दिया। वह भी काम का नहीं निकला। 2019 में राज्यपाल अनुसूईया उइके और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव खुद गांव पहुंचे। हर तरह के सहयोग का वादा किया। तेल नदी से पेयजल की योजना बनी लेकिन यह वादा अब तक अधूरा है। वहीं दूसरी तरफ इस बीमारी से लोगों की मौतों का सिलसिला जारी है।

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