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JK लक्ष्मी सीमेंट फैक्ट्री प्रबंधन ने मजदूर की मौत दबाने किया था कांड, बाद में आगजनी, दोषमुक्ति का ये बना आधार

 Newsbaji  |  Jun 26, 2023 01:04 PM  | 
Last Updated : Jun 26, 2023 01:04 PM
2013 में जेके लक्ष्मी सीमेंट फैक्ट्री में मजदूर की मौत के बाद हुआ था उपद्रव.
2013 में जेके लक्ष्मी सीमेंट फैक्ट्री में मजदूर की मौत के बाद हुआ था उपद्रव.

दुर्ग. छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में नंदिनी क्षेत्र स्थित जेके लक्ष्मी सीमेंट फैक्ट्री में 10 साल पहले हुई आगजनी की घटना के मामले में सत्र न्यायालय ने आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है. बता दें कि ये घटना तब सामने आई थी जब एक मजदूर की मौत हो गई थी. तब प्रबंधन ने मामले को दबाने के लिए उसकी लाश को 25 फीट गहरे गड्ढे में दबा दिया था. इसके खिलाफ प्रदर्शन के दौरान ही आग लगने की घटना हुई थी. आखिरकार एक तर्क पेश किया गया और फिर कोर्ट ने मजदूरों को बरी कर दिया.

ऐसे हुई थी विवाद की शुरुआत
बता दें कि अप्रैल 2013 में ही सारा वाकया हुआ था. दरअसल 2 अप्रैल 2013 को तरुण बंजारे नाम के एक कर्मचारी की मौत की फैक्ट्री में काम करते समय दुर्घटना में हुई थी. कंपनी के लोगों ने मामले को दबाने उसकी लाश को गड्ढा करके 25 फीट नीचे दफन कर दिया था. इसकी जानकारी जैसे ही ग्रामीणों को हुई, वे गुस्से में फैक्ट्री के अंदर घुस गए. मामला बढ़ता ही गया.

4 अप्रैल को उपद्रव के बीच लगी थी आग
विवाद चल ही रहा था कि 4 अप्रैल 2013 को ग्रामीण फैक्ट्री में घुसे थे. जमकर उपद्रव हुआ था. इसी दौरान फैक्ट्री में आग लगी थी. तब जेके लक्ष्मी के तत्कालीन एमडी डीके मेहता ने घटना में करोड़ो रुपये के नुकसान का दावा किया था.


मजदूरों ने आरोप ऐसे खारिज किया
आग लगने की घटना का जिम्मेदार प्रदर्शनकारियों पर लगाया गया, तब उन्होंने कहा कि उनके द्वारा आग नहीं लगाई गई थी. बल्कि आग बीमा का लाभ लेने के लिए फैक्ट्री के लोगों ने खुद लगाई थी.

मौत के मामले में मिली सजा
इधर, मजदूर तरुण बंजारे की मौत और फिर उसकी लाश को ठिकाने लगाने के मामले को श्रम न्यायालय देख रहा था. पूरे प्रकरण की सुनवाई के दौरान कोर्ट में साबित हुआ था कि फैक्ट्री प्रबंधन की लापरवाही से ही उसकी मौत हुई थी. तब कोर्ट ने इस मामले में सजा भी सुनाया था.

वकील का तर्क- पुलिस ने फंसाया
इधर, अग्निकांड मामले में तत्कालीन कलेक्टर व एसपी को भी मौके पर पहुंचना पड़ा था. कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा भी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई कि वे उन्हें मारना चाहते थे और आग में झोंकना चाहते थे. प्रकरण दुर्ग कोर्ट में लगता रहा और जज बदलते रहे, सुनवाई धीमी गति से आगे बढ़ती रही. आखिरकार 10 साल बाद फैसला आया है. दरअसल, बचाव पक्ष के वकील ने कई तर्क पेश किए, जिनमें से एक ये भी था कि पुलिस निर्दोष ग्रामीणों को फंसाने के लिए 52 लोगों के खिलाफ नामजद और 200 से अधिक के खिलाफ मामला दर्ज किया है. इसमें हत्या का प्रयास, बलवा, आगजनी समेत कई सामान्य धाराएं भी लगाई गई थीं. आखिरकार मजदूरों व ग्रामीणों के पक्ष में फैसला आया है और वे दोषमुक्त हो गए हैं.

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