कभी प्रेम किया!
प्रेम पर सुंदर प्रसंग! वैष्णव आचार्यों में रामानुजाचार्य प्रेम और भक्ति परंपरा के प्रमुख हस्ताक्षर हैं. रामानुज की शिष्य परम्परा में ही रामानन्द हुए, जिनके शिष्य कबीर, रैदास और सूरदास थे. एक दिन की बात है, एक राजकुमार रामानुज के पास आए, कहने लगे मुझे ईश्वर का मार्ग बता दें. रामानुज बहुत देर तक चुप रहे. राजकुमार ने कई बार संकेत किया. वहीं खड़े वजीर,अन्य लोगों की तरफ इशारा भी किया. उसे लगासंभव है, रामानुज उसकी बात समझ न पा रहे हों. राजकुमार ने फिर कहा- मैं कुछ भी करने को तैयार हूं. कोई भी कीमत चुकाने को तैयार. बस मेरे प्रश्न का उत्तर दे दें...
रामानुज ने बड़े प्रेम से पूछा- बस एक बात का उत्तर बताओ, कभी किसी को प्रेम किया!
राजकुमार ने कहा- मैं तो बचपन से ही बड़ा धार्मिक व्यक्ति हूं. प्रेम इत्यादि के चक्कर में कभी नहीं पड़ा. बचपन से ही मैं गुरु की खोज में लगा हूं. तरह-तरह के गुरु मिले, लेकिन बात नहीं बनी.
रामानुज उदास हो गए. उन्होंने फिर पूछा, 'कभी किसी से तो किया होगा प्रेम, भाई/ बहन/मां/पिता/मित्र किसी से तो किया होगा? तुम्हारे जीवन में कभी प्रेम की पुलक उठी कि नहीं?
राजकुमार ने फिर वही उत्तर दिया,' मैं परमात्मा की बात करता हूं और तुम प्रेम की बात उठाते हो. मैं कहां जाना चाहता हूं. तुम मुझे किस ओर ले जाना चाहते हो. मैं ईश्वर की खोज में निकला हूं मुझे प्रेम से क्या लेना देना!'
कहते हैं, रामानुज की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने कहा, 'मैं तुम्हारा किसी भी प्रकार सहयोग नहीं कर पाऊंगा. मैं असमर्थ हूं'. जिसके मन में प्रेम का अंकुर नहीं, उसके लिए परमात्मा तो दूर, जीवन का पौधा उगाना भी मुश्किल. तुम अपात्र हो. क्योंकि जीवन की सबसे बड़ी पात्रता प्रेम है. जीवन से निकटता के लिए प्रेम न्यूनतम योग्यता है. किसी भी चीज को पाने, हर यात्रा पर निकलने के लिए सबसे कोमल, अनिवार्य क्षमता. प्रेम से दूरी, जीवन से हाथ छूटने जैसी है.
इस हिंसक समय में प्रेम से बड़ी पात्रता खोजना मुश्किल है. दूसरों के प्रति क्रूरता, हिंसा, जरूरी नहीं किसी खास जगह प्रदर्शित की जाए. घर के बंद कमरे में, अपने सहकर्मियों के बीच, बस में सफर करते हुए, सड़क पर दौड़ते वाहन को जरा सी चोट लगने पर जिस एक चीज़ से हम सबसे ज्यादा परेशान होते हैं, वह प्रेम की कमी है! दूसरों की और हमारी परेशानी का कारण अलग-अलग नहीं. दोनों का कारण एक है. दोनों ओर प्रेम कम है.
प्रेम को अक्सर हम सबसे पीछे रखते हैं. हम जब भी कोई सूची बनाते हैं, किसी ओर बढ़ना चाहते हैं, प्रेम को किस जगह देखते हैं? अपनी प्राथमिकता की सूची खुद तैयार कीजिए. बस इतना ध्यान रखना होगा कि जहां हम प्रेम को रखेंगे, बहुत संभव है, वहीं हमारा परिवार, बच्चे, मित्र और सहकर्मी भी रखें! प्रेम की कमी सबको एक जैसा दुखी, परेशान करती है. हम जितनी कमी करेंगे, हमारे प्रति भी उतनी ही कमी होती जाएगी.जीवन की शुभकामना सहित....
-दया शंकर मिश्र
(Disclaimer: लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेख डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध लेखक की किताब 'जीवन संवाद' से लिया गया है.)
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