बिलासपुर. छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में एक 20 वर्षीय युवक ने खुद को एक व्यक्ति की जैविक संतान साबित करने और पिता की संपत्ति पर अधिकार की मांग करते हुए याचिका दायर की है. इस मामले की सुनवाई हाई कोर्ट ने अपनी डिवीजन बेंच में मंजूर कर ली है, जो न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति रजनी दुबे के सामने हो रही है. यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें एक युवक अपनी वैधता और संपत्ति के अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है.
फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती
याचिकाकर्ता ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी, जहां पहले उसकी याचिका को समय सीमा का हवाला देकर खारिज कर दिया गया था. हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बच्चों के अधिकारों को समय सीमा के आधार पर सीमित नहीं किया जा सकता. इस याचिका के पीछे युवक का दावा है कि वह एक पुरुष और महिला का जैविक बेटा है, जो उनकी संपत्ति में अधिकार का हकदार है.
सामाजिक बहिष्कार का झेल रहे दंश
याचिकाकर्ता ने अपनी मां के साथ होने वाले समाजिक बहिष्कार का भी जिक्र किया है. उसका कहना है कि शादी से पहले मां बनने के कारण उनकी मां को समाज से बाहर कर दिया गया, और तब से आज तक वह समाज से अलग-थलग जीवन जी रही हैं. इसके साथ ही, उनके पास आय का कोई स्थायी स्रोत भी नहीं है, जिससे जीवनयापन में कठिनाइयां हो रही हैं.
संपत्ति का मांगा अधिकार
युवक ने याचिका में अपने पिता की संपत्ति में अधिकार की मांग की है. उसने बताया कि 2017 में वह बीमार हुआ था और आर्थिक मदद के लिए अपने पिता के पास गया, लेकिन पिता ने उसे अपनी संतान मानने से इनकार कर दिया. युवक ने आरोप लगाया कि उसके पिता ने उसकी मां से शादी का वादा कर संबंध बनाए थे, जिससे वह गर्भवती हुईं, लेकिन बाद में उन्होंने उसे छोड़ दिया.
हाई कोर्ट में याचिका स्वीकार
हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए युवक को पिता की संपत्ति में वैध अधिकार प्राप्त करने की मंजूरी दे दी है. अदालत ने स्पष्ट किया कि वैध संतान के तौर पर वह अपने पिता की संपत्ति के सभी लाभों का हकदार है. इस फैसले से युवक और उसकी मां को न्याय की उम्मीद जगी है.
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