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एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान में पानी का सैलाब, हैवी गाड़िया भी डूबीं, काम रुका

 Newsbaji  |  Aug 09, 2024 11:58 AM  | 
Last Updated : Aug 09, 2024 11:58 AM
कोरबा की कोयला खदानों में बारिश का पानी भर गया है.
कोरबा की कोयला खदानों में बारिश का पानी भर गया है.

कोरबा. गुरुवार की रात हुई तेज बारिश ने शहर की निचली बस्तियों में तबाही मचा दी है. पानी भर जाने के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, और कई परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ी है. इसके साथ ही, कोयला खदानों में काम भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है. कोरबा स्थित एसईसीएल के कुसमुंडा खदान में सुबह की पाली में कर्मचारियों को काम पर पहुंचने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. खदान के प्रवेश द्वार पर पानी भर गया था, जिससे कर्मचारियों को अंदर जाने में परेशानी हुई.

कुसमुंडा खदान में जलभराव की वजह से उत्पादन में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. 65 प्रतिशत से अधिक उत्पादन में गिरावट आई है, जो पिछले चार सालों में सबसे बड़ी गिरावट है. इस खदान के इतिहास में ऐसे जलभराव के कारण पहले भी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. कुछ साल पहले, एक ऐसी ही घटना में खदान के अधिकारी जितेंद्र नागरकर की दर्दनाक मौत हो गई थी, जब वह जलजले में बह गए थे. इस घटना ने कोयला खदानों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए थे, लेकिन इसके बावजूद सुरक्षा उपायों में कोई खास सुधार नहीं हुआ.

गेवरा खदान में भी स्थिति चिंताजनक है. ओवरबर्डन से मिट्टी और पत्थरों का एक बड़ा हिस्सा बारिश के कारण एक जलजले की तरह बहकर निजी ट्रांसपोर्ट कंपनी के कैंप ऑफिस में घुस गया. इस हादसे में कई डंपर और लोडर दब गए हैं, जिससे कंपनी को भारी नुकसान हुआ है. हालांकि, राहत की बात यह है कि इस दुर्घटना में किसी भी प्रकार की जनहानि नहीं हुई है, लेकिन वित्तीय नुकसान बहुत बड़ा है.

पिछले कुछ समय से कोरबा जिले में भारी बारिश का सिलसिला जारी है, और इससे न सिर्फ जनजीवन प्रभावित हुआ है, बल्कि खदानों में कामकाज भी ठप हो गया है. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे हालात में प्रशासन और खदान प्रबंधन को सुरक्षा उपायों पर खास ध्यान देना चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को टाला जा सके. खदानों के आस-पास के क्षेत्र में जलनिकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण यह समस्याएं बार-बार सामने आ रही हैं, और प्रशासन की लापरवाही को भी उजागर कर रही हैं.

इसके अलावा, कुछ साल पहले कुसमुंडा खदान में ऐसी ही एक दुर्घटना में अधिकारी जितेंद्र नागरकर की मौत हो गई थी. वह एक निरीक्षण के दौरान खदान में फंस गए थे और जलजले के कारण उन्हें समय पर बाहर नहीं निकाला जा सका था. यह घटना सुरक्षा उपायों में गंभीर खामियों को उजागर करती है, और आज भी खदान में काम करने वाले कर्मचारियों को जोखिम का सामना करना पड़ता है.

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