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चारागाह में भ्रष्टाचार के बाद वन विभाग का एक और कारनामा- 10 लाख भुगतान कर बनाया "अदृश्य देवगुड़ी"

 Newsbaji  |  Aug 09, 2023 12:17 PM  | 
Last Updated : Aug 09, 2023 12:36 PM
बीजापुर वन विभाग में देवगुड़ी के नाम पर भ्रष्टाचार उजागर हुआ है.
बीजापुर वन विभाग में देवगुड़ी के नाम पर भ्रष्टाचार उजागर हुआ है.

न्यूजबाजी लगातार

मुकेश चंद्राकर/बीजापुर. पामेड़ अभ्यारण्य के धरमारम रेंज में ना सिर्फ चारागाह विकास में भ्रष्टाचार हुआ है बल्कि इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान के इस हिस्से में वर्ष 2020 में 10 लाख रुपए की  लागत से बनने वाली देवगुड़ी के निर्माण में भी खुलकर भ्रष्टाचार किया गया. उपनिदेशक आईटीआर समेत विधायक के नाम पंचायत और ग्रामीणों के हवाले से की गई लिखित शिकायत से मामला प्रकाश में आया है. इसमें तत्कालीन परिक्षेत्र अधिकारी विनोद तिवारी को भ्रष्टाचार के इस  खेल का रणनीतिकार बताया जा रहा है.

हालांकि कैमरे के सामने तिवारी ने भ्रष्टाचार के आरोपों को सिरे से खारिज करते निर्माण को प्रमाणित करने फोटोग्राफ्स सह संबंधित दस्तावेज उपलब्ध होने की बात कही है. पंचायत की शिकायत और तत्कालीन परिक्षेत्र अधिकारी के दावे की पुख्ता सच्चाई जानने जमीनी पड़ताल की गई तो धरमारम रेंज के कवरगट्टा परिसर में वर्ष 2020 में देवगुड़ी निर्माण की बात झूठी निकली है.

हालांकि सूचना के अधिकार से जो दस्तावेज हाथ लगे है उनमें निर्माण सामग्री क्रय संबंधी बाउचर और मजदूरी भुगतान की सूची मात्र शामिल है, जिसमें निर्माण सामग्री खरीदी पर 7 लाख 40 हजार 708 रुपए और श्रमिक भुगतान पर 2 लाख 89 हजार 283 रुपए व्यय दर्शाए गए हैं. कुल 10 लाख 29 हजार 991 रुपए से देवगुड़ी का निर्माण कराया जाना बताया गया है.

तस्दीक करने संवाददाता ने प्राप्त बिलों की छायाप्रति के आधार पर विक्रेता फर्म से संपर्क किया तो मटेरियल बेचना बताया गया, लेकिन कवरगट्टा के बाशिंदों के कथनानुसार 4 साल पहले गांव में वन विभाग द्वारा किसी तरह का निर्माण नहीं कराया गया है. विश्वस्त सूत्रों की मानें तो कवरगट्टा चूंकि घोर माओवाद प्रभावित इलाका है. जहां नक्सलियों की इजाजत के बिना कोई भी काम संभव नहीं.

रेंज के अफसर-कर्मियों ने दुरूह परिस्थितियों के अलावा नक्सली भय का भरपूर फायदा उठाया. उन्हें पूरा यकीन था कि यहां विभाग का कोई आला अफसर कभी भी निरीक्षण के लिए नहीं पहुंचेगा, लेकिन पंचायत सरपंच और ग्रामीणों को जब देवगुड़ी बनने की जानकारी मिली तो उन्होंने अपने स्तर पर पड़ताल शुरू की, लेकिन काफी खोजबीन के बाद भी गांव में दूर-दूर तक कोई देवगुड़ी नहीं मिली.

अंततः इसे लेकर आरटीआई दाखिल किया गया और जब जानकारी हाथ लगी तो दस्तावेज देख पंचायत के होश उड़ गए. पंचायत ने सवाल उठाया कि जब देवगुड़ी बनी ही नहीं तो पैसे कैसे निकल गए. पैसे गबन करने जितने दस्तावेज प्रस्तुत किए, श्रमिकों के नाम भुगतान दर्शाए गए, सभी फर्जी है. बहरहाल धरमारम परिक्षेत्र में साल 2020 में चारागाह विकास के नाम पर भ्रष्टाचार के बाद देवगुड़ी के नाम खुला भ्रष्टाचार से लोगों के होश उड़े हुए हैं, पंचायत की नजरें अब विभाग पर है कि पूरे मामले को लेकर आगे क्या ठोस कदम उठाती है?

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