रायपुर. किसानों की कर्जमाफी, अलग-अलग न्याय योजनाओं में लाभार्थियों के खाते में नकदी जमा, बोनस की राशि, बेरोजगारी भत्ता. ये वे जनकल्याणकारी योजनाएं हैं जिनसे छत्तीसगढ़ के विभिन्न वर्ग को सीधा लाभ पहुंच रहा है. लेकिन, उसी तेजी से राज्य पर कर्ज भी बढ़ा है. वर्तमान में हालात ये है कि अभी राज्य सरकार को इसके एवज में लिए कर्ज का 6000 करोड़ रुपये सालाना ब्याज ही चुकाना पड़ रहा है.
छत्तीसगढ़ में आय के साधनों की कमी नहीं है. विभिन्न करों के अतिरिक्त राज्य के विद्युत उपक्रमों से बिजली उत्पादन, शराब की बिक्री, वनोपज आदि से राजस्व की प्राप्ति होती है. दूसरी ओर, विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं और शासन के संचालन में खर्च भी होते हैं. जब खर्च ज्यादा होते हैं तो सरकार को विभिन्न बैंकों से कर्ज लेना पड़ता है. इसके एवज में एक निश्चित राशि का ब्याज भी देना पड़ता है.
जब कर्ज और ब्याज की राशि आय से ज्यादा हो तो यह चिंता का विषय रहता है. कुछ इसी तरह की हालत वर्तमान में छत्तीसगढ़ की है. यहां भी साल दर साल कर्ज बढ़ता जा रहा है और उसी के मुकाबले कर्ज भी लगातार बढ़ रहा है. यही वजह है कि इनकी भरपाई के लिए नए-नए कर्ज भी लेने पड़ रहे हैं.
14,600 करोड़ रुपये है कर्ज
वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार पर 14 हजार 600 करोड़ रुपये का कर्ज है. ये कर्ज विभिन्न बैंकों से लिए गए हैं ताकि विभिन्न योजनाओं की पूर्ति के लिए पैसे की व्यवस्था की जा सके. वहीं इन सभी कर्ज का ब्याज मिलाकर 6000 करोड़ रुपये का ब्याज देना पड़ रहा है.
2018 और 2023 में कर्ज
अन्य चुनावी राज्यों में भी यही स्थिति
छत्तीसगढ़ में ही कर्ज बढ़ा हो ऐसा भी नहीं है. अन्य राज्यों में भी इसी तरह की स्थिति है. अब सिर्फ चुनावी राज्यों की बात करें तो मध्यप्रदेश सरकार पर 52 हजार 511 करोड़ रुपये का कर्ज है. राजस्थान में यह कर्ज 58 हजार 212 रुपये का कर्ज है.
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