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छत्तीसगढ़: नई कोयला खदानों में सड़क से ढुलाई पर रोक, हर जगह रेललाइन नहीं, बड़ा सवाल- व्यवस्था कैसे होगी?

 Newsbaji  |  Jan 09, 2023 02:28 PM  | 
Last Updated : Jan 09, 2023 02:28 PM

रायपुर। केंद्र सरकार ने अब पर्यावरण प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए नया निर्णय लिया है। इसके तहत कोयले की नई खदानों से कोयला ढुलाई सड़क मार्ग के बजाय रेलवे या फिर कन्वेयर बेल्ट लगाकर ही की जा सकेगी। इस महीने के अंत तक नए कोल ब्लॉकों का आवंटन होना है, जिसके तहत छत्तीसगढ़ में 28 नई खदानें शुरू होंगी। वहां इसी नियम के तहत ही कोयला निकालने और ढुलाई का काम करना होगा। इसमें बड़ा सवाल कन्वेयर बेल्ट की व्यवस्था को लेकर है, क्योंकि इसमें कहीं अधिक लागत आएगी जिसका व्यय करना किसी जोखिम से कम नहीं होगा।

हालांकि नए नियम में ये छूट दी गई है कि खदान से नजदीकी रेलवे साइडिंग तक ही एक निश्चित अवधि के लिए सड़क परिवहन किया जा सकेगा। आपको बता दें कि प्रदेश में सड़क मार्गो से कोयला और कोल डस्ट परिवहन से प्रदूषण की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के साथ ही पर्यावरण एक्टिविस्ट इसका लगातार विरोध कर रहे हैं। 

केंद्र सरकार की ओर से कोल ब्लॉक आवंटन की शुरुआत से लेकर अब तक प्रदेश में सैकड़ों नई कोल माइंस खुल चुकी हैं। वहां से बड़े पैमाने पर कोयले को सड़क मार्ग से ढोकर रेलवे साइडिंग  या कोलवाशरी तक पहुंचाया जाता है। वहीं कोलवाशरी से कोल डस्ट लोडिंग के लिए भेजा जाता है। इन सब प्रक्रिया के दौरान भारी वाहनों में कोयले या कोल डस्ट को बिना ढंके ही परिवहन किया जाता है। 

इससे डस्ट व कोयला उड़कर लोगों के घरों और खेतों तक पहुंचता है। यह लोगों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करने के साथ ही फसलों को भी प्रभावित और प्रदूषित कर रहा है। ऐसे में इस सख्त नियम को कारगर तो माना जा रहा है, लेकिन इसकी पेचिदगियां इसके लागू होने पर सवाल खड़े कर रही हैं। दरअसल, किसी भी कंपनी को कोल ब्लॉक लेने के बाद आसपास रेल सेवा नहीं मिली और कन्वेयर बेल्ट की आवश्यकता हुई तो ये अतिरिक्त खर्च का वहन वह कैसे करेगी।

तब क्या बैंक सपोर्ट जैसी सुविधा उन्हें मिलेगी। यदि हां तो क्या यह स्थायी होगा और समय पर नहीं लग पाया तो कंपनियों को होने वाली हानि को रोकने के लिए क्या उपाय रहेगा। दरअसल, ये सवाल इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यदि ये सुविधाएं नहीं मिलीं तो कंपनियां अवैध तरीके से सड़क परिवहन के लिए मजबूर तो नहीं होंगी। फिर इस कानून का सख्ती से पालन कैसे और किस स्तर पर सुनिश्चित की जाएगी। इसे लेकर पर्यावरणविद् भी चिंता जता रहे हैं।

हर जगह रेललाइन नहीं
प्रदेश में कई जिले और क्षेत्र अब भी रेललाइन से अछूते हैं। जहां नई खदानें शुरू की जा रही हैं वहां भी इसी तरह की स्थिति है। ऐसे में जब नई खदानों को स्वीकृति मिलती है तो बिना रेललाइन के और बिना कन्वेयर बेल्ट की व्यवस्था किए वहां काम आखिर कैसे शुरू हो पाएगा। इसका जवाब भी फिलहाल नहीं तलाशा गया है।

पुरानी खदानों के लिए क्या व्यवस्था है
पर्यावरण एक्टिविस्ट आलोक शुक्ला का कहना है कि पर्यावरण प्रदूषण को यदि रोकना है तो  पहला तो कोयले की उत्पादन को ही न्यूनतम करना होगा, न कि उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान हो। दूसरा ये कि पहले से जो संचालित कोयला खदाने हैं, वहां सड़क मार्ग से कोयले के परिवहन को पूरी तरह रोकना चाहिए, क्योंकि उससे पर्यावरण को नुकसान होने के साथ ही सड़क दुर्घटनाएं भी काफी बढ़ रही हैं। एनजीटी का आदेश नए कोयला खदानों में माइनिंग को लेकर है, उसमें भी पूरी तरह से शुरुआती दौर से रोक नहीं है। उनका मानना है कि एक्जस्टिंग कोल माइनिंग के कोयले परिवहन को बंद करवाना चाहिए, पहले जो समस्या है उसको दूर करें।

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