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पेड़ लगाने और बचाने को सरकार विकास क्यों नहीं मानती?

 Newsbaji  |  Apr 06, 2022 09:04 AM  | 
Last Updated : Jan 06, 2023 10:18 AM

छत्तीसगढ़. बेमौसम बारिश, बढ़ते तापमान की वजह से बर्फ का पिघलना, ओजान परत में बढ़ता छेद के साथ ही सेहत पर समय के साथ पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव के रूप में जो परिस्थितियां हम देख रहे हैं, इसके माध्यम से प्रकृति हमें सचेत करने का प्रयास कर रही है। कोरोना जैसी भयंकर महामारी के दौरान लोगों को ऑक्सीजन की आवश्यकता के साथ हमारे आसपास पेड़ पौधों के होने के महत्व को प्रकृति ने समझा दिया है। मगर हम हैं कि विकास कांक्रीट के जंगलों में अनुभव करने की भूल कर इन्हें (पेड़ पौधों की मौजूदगी को) नजरअंदाज कर रहे हैं। अगर यह सिलसिला निरंतर जारी रहा तो आने वाले समय में स्थितियां और भयावह हो जाएगी।

क्या भूल गए पूर्वजों के संदेश?
प्रकृति के महत्व को हमारे पूर्वजों ने बहुत अच्छे से समझा था। तभी उन्होंने जल, वायु, पेड़-पौधों सूरज आदि के पूजा की शुरुआत कर प्रकृति के संरक्षण का संदेश दिए मगर आज बरगद पीपल तुलसी नीम आदि की पूजा तो कर रहे हैं। लेकिन इसकी पूजा की शुरुआत कर हमारे पूर्वजों ने जो संदेश देने का प्रयास किए, उसके पीछे की मूल भावना को भूल गए हैं। विकास के नाम पर विशालकाय बरगद पीपल नीम जैसे पेड़ों की भी अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं। मैं तो कहता हूं कि जब हम अपने घरों में विभिन्न मांगलिक कार्यक्रमों के दौरान हवन पूजन आदि का आयोजन करते हैं तो इस दौरान उत्सव एवं हवन पूजन के साथ ही पौधरोपण को भी अनिवार्य रूप से शामिल करें और ऐसे मौके पर पौधे रोपित कर इसका संरक्षण करें यही सबसे निस्वार्थ पूजा होगी।

नदियां हो रही प्रदूषित
प्रकृति ने नदी नाले पहाड़ आदि का जब निर्माण किया तो कहीं ना कहीं इसमें मानव जाति सहित समस्त प्राणियों का हित निहित था। मगर जाने अनजाने में इसके साथ किए जा रहे छेड़छाड़ का परिणाम हम विभिन्न रूपों में देख रहे हैं जो मैंने स्वयं खारून नदी के उद्गम से लेकर संगम स्थल तक पदयात्रा एवं मंडला डिंडोरी के जंगल की पदयात्रा के दौरान देखा और महसूस किया है जो नदी, नदी तट के ग्रामीणों के लिए जीवन दायिनी मानी जा रही थी। उद्योग एवं सीवरेज की पानी सीधे नदियों में छोड़े जाने की वजह से इसके प्रदूषित हो जाने के कारण, वही जीवन दायिनी नदी अब नदी तट के अनेक गांव के लोगों के लिए प्रदूषण के चलते समस्या बन गई है।

ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएं
हम सब विकास के नाम पर अपने गांव व शहर में सांस्कृतिक मंच एवं विभिन्न समाजों की समुदायिक भवन सीमेंटीकरण आदि की मांग करते हैं। अपवाद स्वरूप स्थिति को छोड़ दिया जाए तो बहुत कम लोग ही वृक्षारोपण कर गांव में एक स्वस्थ वातावरण निर्मित करने की मांग करते होंगे। हमारे ग्रामों की पहचान पहले अमराई एवं मौहारी से हुआ करता था। जिन ग्रामों में जगह है वहां अगर इस तरह अमराई तैयार करने की ही मांग कर लिया जाए तो यह उत्पादक चीज में निवेश होगा पौध रोपण में फलदार वृक्षों की रोपनी तैयार कर इसे उत्पादक चीज में निवेश बनाया जा सकता है जो ग्राम पंचायतों एवं निकायों को उनके लिए फलोत्पादन के माध्यम से आय का जरिया भी बन सकता है। साथ ही इससे एक अच्छा प्राकृतिक वातावरण का भी हमारे आसपास निर्माण होगा।

समय रहते जागने की जरुरत
शासन प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों को भी चाहिए कि जिन गांव में पर्याप्त जगह है। वहां पर खानापूर्ति के बजाय योजनाबद्ध तरीके से पौध रोपण कर इसकी सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाए खासकर शहरी क्षेत्र के आसपास स्थित ग्रामों में यह और ज्यादा जरूरी है। क्योंकि शहरीकरण के साथ ही बेजा कब्जा एक आम समस्या है और आने वाले समय में ऐसे ग्रामों में पौधरोपण के लिए जगह खाली नहीं मिलेगा। साथ ही शहरी क्षेत्र में ग्रीन बेल्ट को अतिक्रमण से मुक्त रखकर आरक्षित भूमि के अनुरूप ऐसे स्थानों पर सघन वृक्षारोपण सुरक्षित रहें। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसको लेकर गंभीर नहीं होने पर आने वाले समय में हर शहर को दिल्ली जैसे प्रदूषण की मार झेलना पड़ सकता है।

छोटे छोटे मंच, शेड व सामुदायिक भवन बनाने की बजाय जहां पर्याप्त जगह उपलब्ध है। वहां सघन वृक्षारोपण के बीच एक बड़ा मंगल भवन बनाया जाना चाहिए। जिससे हर समाज के लोग एक बढ़िया प्राकृतिक वातावरण के बीच विभिन्न कार्यक्रम कर सकेंगे। साथ ही इससे पर्यावरण संरक्षण भी होगा। आखिर में यही कहना चाहूंगा कि विकास योजनाओं में पौधरोपण कर इसके संरक्षण को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए।

रोमशंकर यादव
पत्रकार व पर्यावरण कार्यकर्ता
( चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता राज्य अलंकरण से सम्मानित)

(Disclaimer: लेखक जाने-माने पत्रकार हैं. वे सोशल मीडिया पर बेबाकी से खुले खत लिखने के लिए भी जानें जाते हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह हैं। इसके लिए Newsbaji किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है।)

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