छत्तीसगढ़. यदि आरोपी को मृत्युदंड दिया जाता है तो वह अपने कुकर्मो का प्रायश्चित नहीं कर पाएगा एवं अपने मानव जीवन से मुक्ति पा जाएगा। और वह इस मानव योनी से मुक्त भी हो जाएगा। इसके विपरित यदि आरोपी को शेष प्राकृतकाल के लिए आजीवन कारावास का दंड दिया जाता है तो वह अपने कुकर्मों का जीवनकाल तक सोच-सोच के घुटन में मानसिक रूप से मृत्यु को प्राप्त करता रहेगा तथा उसी प्रायश्चित में घुटता रहेगा। चूंकि मृत्युदंड आरोपी की पश्चाताप की अवधारणा को समाप्त कर देता है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि, दोषियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए। वे जीवनभर पश्चाताप के पात्र हैं।
इस प्रकरण में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है और वे समाज में दोबारा शामिल होने के लायक नहीं हैं। इस प्रकार प्रकरण की समस्त परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए एवं उभयपक्षों के तर्कों का गहराई से मनन करने के उपरांत आरोपी को मृत्युदंड न दिया जाकर शोष प्राकृत जीवनकाल के लिए आजीवन कारावास से एंव अर्थदंड से दंडित किया जाता है।
यह था प्रकरण
प्रकरण के मुताबिक 30 जनवरी 2021 को भिलाई के वैशाली नगर थाना क्षेत्र में रहने वाला 22 वर्षीय रजत भट्टाचार्य ने 7 साल की बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाया। बच्ची से रेप के अलावा आरोपी ने उसके साथ अप्राकृतिक कृत्य भी किया। बच्ची की मां का देहांत हो गया है और उसके पिता नौकरी के चक्कर में सुबह 10 से रात 9 बजे तक घर से बाहर रहते हैं। आरोपी ने इसी का फायदा उठाया और शाम करीब 7 बजे जब बच्ची घर में अकेली थी तो उसके साथ रेप की वारदात को अंजाम दिया था।
(Disclaimer: यह टिप्पणी दुर्ग स्पेशल कोर्ट के अपर सत्र न्यायाधीश अविनाश के त्रिपाठी ने रेप केस में फैसले के दौरान की। )
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