लोकतंत्र को राजदंड मिला।
राजदंड के सामने लोकतंत्र साष्टांग लेट गया वैसे ही जैसे लोकतंत्र की सीढ़ियों पर माथा टेकते हुए उन्होंने शपथ ली थी कि तहस–नहस कर के छोडूंगा!
अब लेट कर उन्होंने अपने काम याद किए होंगे,अपना एजेंडा दोहराया होगा,अपनी शपथ दुहरायी ही होगी !
उनकी हर मुद्रा पर उनका प्रशंसक,उनकी भक्ति करने वाला ,खुद को ही देश मानने वाला हिस्सा खुश होता है।
दरअसल देश दो हिस्सों में बंट गया है।एक आत्ममुग्धता पर मुग्ध होता देश,दूसरा आत्ममुग्धता पर क्रुद्ध देश।
अभी तो मुग्ध देश ही इस देश की चेतना का प्रतिनिधि सा नजर आ रहा है।
महामना दिन कपड़े बदलते हुए निकाल देते हैं,ये वाला देश उनको निहारता रह जाता है।
वो रोते हैं,आंसू आत्ममुग्धता पर मुग्ध देश के निकलते हैं।
ये वाला देश अब फिर खुश हो गया है,क्योंकि संसदीय जनतंत्र को अब एक राजदंड भी मिल गया है!
मणिपुर जल रहा हो पर इस मुग्ध देश को महामना के राज्याभिषेक में ही दिलचस्पी होगी।
ये वाला देश नोटबंदी पर भी खुश था, लॉकडाउन में मजदूरों के पैरों के छाले देख कर भी खुश था,गंगा में लाशों ने भी इस देश की संवेदनाओं को झकझोरा नहीं था,बेहिसाब महंगाई और अभूतपूर्व बेरोजगारी भी इनके लिए देशभक्ति की परीक्षा है,अर्थव्यवस्था तबाह हो जाए पर नमो नशे में ये झूमते फिर रहे हैं!
नमस्ते ट्रंप और अबकी बार ट्रंप पर भी ये वाला देश फूले नहीं समा रहा था,विधायक सांसद बिक रहे थे ये मुग्ध देश ठहाके लगा रहा था,पंद्रह लाख खाते में नहीं आए,काला धन जहां था वहीं है पर इस वाले देश के चेहरे पर भरपूर मुस्कुराहट थी।
ये वाला देश हर त्रासदी को,अत्याचार को धर्म के नजरिए से देखता है!
ढूंढता है कि किस अत्याचार पर ,किस त्रासदी पर मुसलमान लिखा है और किस पर हिंदू!फिर ये अपनी प्रतिक्रिया तय करता है।
इस वाले देश को न संविधान समझता है,ना धर्मनिरपेक्षता ,ना स्वतंत्रता संग्राम के मूल्य ही समझते हैं।
गांधी,नेहरू,भगत सिंह तो छोड़िए,मोहब्बत की भी बात से इसे नफरत होने लगी है।
उन्माद इस मुग्ध देश का विचार और हिंसा इसकी भाषा हो गई है!
इस वाले देश को गरीबी परेशान नहीं करती बल्कि इसे अदानियों के अमीर बनने पर खुशी होती है और उनके घोटाले उजागर हों तो इसे राष्ट्र पर संकट दिखता है!
लगता है जैसे देश ने दुखों की,संकट की,खतरों के शिनाख्त और उससे मुकाबले की अपनी ऐतिहासिक क्षमताओं को ही विस्मृत कर दिया है।
इस वाले देश को विभाजन की त्रासदियों का न ज्ञान है ना एहसास है,देश का यह तबका एक और विभाजन के लिए ढोल नगाड़े लिए इंतजार कर रहा है। इसे लगता है कि आज पाकिस्तान कल अफगानिस्तान अब मुमकिन है क्योंकि मोदी जी प्रधानमंत्री हैं!
दरअसल इस वाले देश की विश्वदृष्टि ही मोदी जी तक पहुंचकर खत्म हो जाती है।
ऐसा लगता है जैसे इस वाले देश के लिए ज्ञान,विवेक जैसी चीजें अनुपयोगी हो गईं हैं और कूपमंडूकता, सांप्रदायिकता, तालिबानी प्रवृत्तियां जैसी प्रतिगामी चीज़ें गर्व का कारण हो गई हैं।
इसीलिए इस मुग्ध देश को रोजगार नहीं चाहिए गर्व करने को नया संसद भवन चाहिए!
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता इस मुग्ध देश की आकांक्षाओं में भी अब जिंदा नहीं रही।
इस मुग्ध देश ने सवाल करने की,तर्क करने की अपनी सारी जिम्मेदारियों से मानो मुक्ति पा ली है और विचारहीनता का चोला धारण कर लिया है।इसीलिए तो आज एक राजदंड संसदीय लोकतंत्र का प्रतीक बन गया है और वो भी कुछ सच्चे कुछ झूठे किस्सों को आधार बना कर।( कुछ सच्चे,कुछ झूठे– राजदंड की हकीकत बताती Ravish Kumar की रिपोर्ट से उधार लिए शब्द )
यह एक बड़े खतरे की आहट है।
दरअसल जब देश के एक बड़े तबके की राय एक अश्लील तरीके से बिकाऊ बेशर्म मीडिया बना रहा हो तो समझिए कि खतरा बड़ा है।
जब देश लोकतंत्र के मूल्यों की हिफाजत को जरूरी ना माने तो समझिए कि खतरा तानाशाही का है।
जब एक व्यक्ति को महान साबित करता हुआ बीस हजार करोड़ का सेंट्रल विस्टा और एक राजदंड हमारी चेतना में गर्व के तत्व भर दे तो समझिए कि 28 मई को हम लोकतंत्र को किसी सामंत के हवाले करने के उत्सव के साक्षी बने थे।
इस खतरे को न पहचान सके तो समझिए कि हमने खुद के लिए तानाशाही का राजदंड चुन लिया है।
सच्चे झूठे किस्सों का राजदंड जब संसदीय जनतंत्र के उच्च आसन के मार्गदर्शक की जगह बिराज जाए तो हे महादेश कुर्बानियों की अपनी बेमिसाल परंपराओं को विस्मृत कर दो और गुलामी के ढोल पीटने को तैयार रहो!ताली थाली पीट कर अपनी चेतना का ढोल तो पीट ही चुके हो !
ध्यान रहे,इतिहास बड़ा निर्मम होता है और लोकतंत्र अनमोल!
अपने विवेक पर हमने अगर राजदंड ही ठोकने का फैसला कर लिया हो तो तय जानिए कि इतिहास के मूल्यांकन में हमारी जगह सिर्फ कूड़ादान होगी !
हड़बड़ी में महान बनने को आतुर कोई आत्ममुग्ध शासक लोकतंत्र का रोल मॉडल नहीं हो सकता।
कोई राजदंड भी लोकतंत्र के सीने में घोंपा नहीं जा सकता।
लोकतंत्र के रोल मॉडल तो जनसंघर्षों की भट्ठियों में तप कर निकलते हैं,इवेंटशाही की चकाचौंध से नहीं !
(वरिष्ठ पत्रकार रुचिर गर्ग के फेसबुक वाल से साभार)
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