टिप्पणी। मध्यप्रदेश में दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए पार्टी में फेरबदल का श्रीगणेश करते हुए डॉ गोविंद सिंह को प्रतिपक्ष का नेता बनाकर कांग्रेस गलत दांव खेल गई। कांग्रेस को इस समय संगठन में मजबूती की जरूरत थी, इसलिए प्रतिपक्ष का नया नेता बनाने के बजाय संगठन का नया नेता घोषित करना चाहिए था। डॉ गोविंद सिंह सात बार के विधायक हैं, उम्रदराज और अनुभवी नेता हैं। लेकिन अब उन्हें सदन के भीतर जौहर दिखने के मौके सीमित ही तो बचे हैं।
कठिन रास्ते पर कांग्रेस
70 साल के गोविंद सिंह मूलत: कांग्रेसी नहीं बल्कि जनता दल वाले नेता हैं। उनका डीएनए समाजवादी हैं कि उन्होंने अपने समाजवादी डीएनए को कांग्रेसी डीएनए बनाने की कोशिश बहुत की है। उनके पास संसदीय कार्य का लंबा अनुभव है। इस लिहाज से वे बेहतरीन नेता प्रतिपक्ष हो सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि उन्हें ये मौक़ा बहुत देर से मिला है। डॉ गोविंद सिंह को पता था कि वे कांग्रेस की सत्ता में वापसी पर कभी भी मुख्यमंत्री या कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनाए जा सकते। क्योंकि उनके प्रतिद्वंदी एक नहीं बल्कि दो-दो हैं। एक पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और दूसरे अजय सिंह दोनों के बीच किसी तीसरे के खिलाफ एकजुट रहने की पुरानी दुरभि संधि है।
कांग्रेस को नौजवान नेता पर लगाना था दांव
दिग्विजय और अजय नाथ के रहते डॉ गोविंद सिंह को पार्टी में उपाध्यक्ष से बड़ा की पद नहीं दिया गया। प्रदेश में 2018 के चुनाव में कमलनाथ का नेतृत्व में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के बाद उनके प्रतिद्वंदियों की संख्या तीन हो गई थी। अपने लिए तमाम रास्ते बंद दरखकर डॉ गोविंद सिंह अगला विधानसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया था। लेकिन अब वे फिर से पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं। कायदे से कांग्रेस हाईकमान को प्रतिपक्ष के लिए जीतू पटवारी जैसा नौजवान नेता का नाम तय करना था। लेकिन ये हो नहीं सका, क्योंकि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ऐसा नहीं चाहते थे।
गोविंद जनाधार वाले नेता नहीं
15 साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद सत्ता में वापसी के बाद प्रदेश में कांग्रेस का जो विस्तार होना था सो नहीं हो पाया। उलटे जनादेश से बनी कांग्रेस सरकार को 18 माह में ही चित हो जाना पड़ा था। कांग्रेस में बगावत हुई, 22 विधायकों सहित लोकसभा चुनाव हारे ज्योतिरादित्य सिंधिया और पार्टी से और हाथ धोना पड़ा था। यदि कोई समझता है कि डॉ गोविंद सिंह का विकल्प हो सकते हैं तो गलत सोचता है। डॉ गोविंद सिंह पुराने और मंजे नेता तो हैं लेकिन उनकी ऐसी अपील न जनता में है और न संगठन में कि कोई चमत्कार हो जाए। डॉ गोविंद सिंह अपने लहार के शेर हैं और रहेंगे। वे लोकसभा चुनाव लड़ने मुरैना आए थे, किंतु कोई चमत्कार नहीं कर पाए। उलटे उनके कैरियर में हार का दाग और लग गया।
कांग्रेस में पीढ़ी परिवर्तन की जरुरत
मध्यप्रदेश में कांग्रेस को इस समय पीढ़ी परिवर्तन की जरूरत है। लेकिन ये हो नहीं पा रहा। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह अपने पिता की तरह कोई चमत्कार नहीं कर पाए। अलबत्ता वे हार-जीत के अनुभवों के साथ पार्टी में अपने समर्थकों के साथ मौजूद जरूर हैं। पार्टी जोखिम उठाने से डर रही है इसलिए नए नेताओं को जिम्मेदारी देने से बच रही है। अगला विधानसभा चुनाव पूर्व मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में लड़ने के सिवाय उसके पास कोई विकल्प है ही नहीं।
मिशन 2023 में बड़ी मुश्किलें
अत्तीत में जिस तरह 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरा विधानसभा चुनाव 'महाराज बनाम शिवराज' कर लिया था। ऐसा करना डॉ गोविंद सिंह के बूते की बात नहीं है। डॉ गोविंद सिंह कठोर परिश्रमी हैं। किन्तु उनका परिश्रम पार्टी को बहुत ज्यादा लाभ दिलाने की स्थिति में नहीं है। वे ज्यादा से ज्यादा भिंड-दतिया जिले की कुछ सीटों पर अपना प्रभाव दिखा सकते हैं। कांग्रेस को सत्ताच्युत करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुखर विरोध करके भी अब डॉ गोविंद सिंह कांग्रेस की मदद नहीं कर सकते। क्योंकि लोकसभा चुनाव हारे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब न केवल राज्यसभा में हैं बल्कि केंद्र में मंत्री भी हैं। दो साल में उन्होंने भाजपा में भी अपना प्रभा मंडल स्थापित कर लिया है।
दिग्विजय सिंह है मिस्टर बंटाधार
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कायाकल्प के लिए एक युवा नेता के साथ ही एक मुखर वक्ता की भी जरूरत है। कमलनाथ की कमर झुक चली है और दिग्विजय सिंह अब तक अपनी छवि को मिस्टर बंटाधार की छवि से बाहर नहीं निकाल पाए हैं। दोनों नेता पुत्रमोह का शिकार भी है और उनमें इसी वजह से विकार भी है। डॉ गोविंद सिंह इन दोनों का भी विकल्प नहीं बन सकते। वे न भीड़ खींचने वाले नेता हैं और न उनकी पहचान प्रदेशव्यापी है। वे सदन के भीतर जरूर प्रभावी हो सकते हैं किन्तु चुनावी साल में सदन की कितनी बैठकें होंगी ये कोई नहीं जानता है।
शिवराज सिंह हो चुके है काठ की हांडी
मध्यप्रदेश में इस बार जनादेश हड़पने के लिए उत्तर प्रदेश की तर्ज पर भाजपा चुनाव लड़ेगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भरोसेमंद नहीं रहे। वे पिछले चुनाव में काठ की हांडी साबित हो चुके हैं। भाजपा के मुकाबले के लिए कांग्रेस की तैयारियों में डॉ गोविंद सिंह कितने प्राण फूंक सकते हैं ये भविष्य के गर्त में है। मैंने डॉ गोविंद सिंह को गोविंद सिंह बनते देखा है। इस आधार पर मैं कह सकता हूं कि डॉ गोविंद सिंह के सर पर नेता प्रतिपक्ष का सेहरा बांधने से पार्टी में कोई क्रांतकारी बदलाव नहीं आने वाला है।
नए नेताओं पर लगाए दांव
कांग्रेस आने वाले चुनाव में किसे क्या जिम्मेदारी देगी, ये कांग्रेस का आंतरिक मामला है। हम बाहर वाले सिर्फ अनुमान लगा सकते है और बता सकते हैं कि बिना आक्रामकता के कांग्रेस मध्यप्रदेश में भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती है। फिर यहां तो न प्रियंका गांधी का डेरा है और न सोनिया गांधी का निर्वाचन क्षेत्र। यहां कांग्रेस के पास न अशोक गहलोत और भूपेश बघेल जैसे 'शॉकप्रूफ 'नेता हैं। इसलिए अभी भी मौक़ा है कि कांग्रेस नए नेताओं को आगे लगाए, उन्हें दांव पर लगाए।
राकेश अचल, वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार (मध्यप्रदेश)
(Disclaimer: यह पोस्ट फेसबुक से ली गई है, लेखक जाने-माने पत्रकार व साहित्कार हैं. वे सोशल मीडिया पर बेबाकी से खुले खत व लेख लिखने के लिए भी जानें जाते हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह हैं। इसके लिए Newsbaji किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है।)
भिलाई की स्मृति नगर चौकी पर पथराव, पुलिस ने 14 लोगों पर दर्ज किया मामला
शबरी पार छत्तीसगढ़ दाखिल हो रहे नक्सली का एनकाउंटर, एक जवान भी घायल
Copyright © 2021 Newsbaji || Website Design by Ayodhya Webosoft