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आसाराम की सजा बहुत कम है

 Newsbaji  |  Feb 02, 2023 12:28 PM  | 
Last Updated : Feb 02, 2023 12:28 PM
आसाराम को सजा
आसाराम को सजा

टिप्पणी। आसाराम पिछले 10 साल से पहले ही जेल में बंद है। अब उसे उम्र कैद की सजा हो गई है। 81 वर्ष का आसाराम पता नहीं अभी कितने साल और जिंदा रहेगा? जितना व्यभिचार और बलात्कार उसने किया है, उस हिसाब से उसे काफी लंबी उम्र मिल गई है। 

साधु-संत और मौलवी-पादरियों का पाखंड रचाकर जो धूर्त लोग भक्तों को बेवकूफ बनाते हैं, वे इतने ऊंचे कलाकार होते हैं कि उन्हें जेल में भी सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं। शायद उनकी दैनंदिन दिनचर्या जेल में कहीं बेहतर होती है, क्योंकि वहां मजबूरन ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है, भोजन वगैरह काफी संतुलित होता है और डाक्टरी परीक्षा भी नियमित होती रहती है। पाखंड फैलाने से बाहर जो दिमागी तनाव पैदा होता है, जेल के अंदर उससे भी मुक्ति मिली रहती है। 

निराशाराम या झांसाराम
इस आसाराम जैसे जितने भी देश में निराशाराम या झांसाराम हैं, वे सब असाधारण अपराधी हैं लेकिन हमारी न्याय व्यवस्था इतनी अजीब है कि इन सामूहिक अपराध करने वाले धूर्तों को भी वही सजा मिलती है, जो साधारण अपराधियों को मिलती हैं। यदि आसाराम 10 साल और जिंदा रह गया तो आप जरा हिसाब लगाइए कि गरीब करदाताओं का कितना पैसा वह हजम कर जाएगा। आसाराम ही नहीं, उसकी तरह दर्जनों धूर्त साधु-संत इस समय जेल में बंद हैं। यदि ये साधु-संत अपने आप को महान आध्यात्मिक, पारलौकिक शक्ति संपन्न और जादू-टोना दिखाने वाले जादूगर मानते हैं तो ये अपनी रिहाई खुद ही क्यों नहीं कर लेते? 

चांदनी चौक के चौराहे पर फांसी क्यों नहीं दी जाती? 
यदि ये सचमुच असाधारण हैं तो इनकी सजा भी असाधारण क्यों नहीं होती? इन्हें किसी चांदनी चौक के चौराहे पर फांसी क्यों नहीं दी जाती? इनकी लाश को कुत्तों से घसिटवाकर सूअरों के झुंड के आगे क्यों नहीं फिकवा दिया जाता ताकि सारा देश उस दृश्य को देखे और सारे पाखंडी गुरू-घंटालों की हड्डियां कांप उठें। ऐसा नहीं है कि ये पाखंडी सिर्फ हिंदुओं के बीच ही होते हैं।

कोई मजहब इस तरह के धूर्त्तों से मुक्त नहीं 
यूरोप के ईसाई इतिहास का एक लंबा समय ‘अंधकार युग’ माना जाता है, क्योंकि पोप तक को इन काले धंधों में अपना मुंह काला करते पाया गया है। कोई मजहब इस तरह के धूर्त्तों से मुक्त नहीं है, क्योंकि सारे धर्म, संप्रदाय और मजहब अंधविश्वास पर आधारित हैं। दुनिया को ठगने का यह सर्वोत्तम उपाय है। जो साधु-संत-संन्यासी, मुनि, पादरी, मौलवी आदि पवित्र और सत्यनिष्ठ हैं, उनके दुख का अनुमान मैं लगा सकता हूं लेकिन उनसे मेरी शिकायत यह भी है कि ऐसे मामलों पर वे चुप्पी क्यों साधे रहते हैं? वे इन पाखंडियों के खिलाफ अपना मुंह क्यों नहीं खोलते? क्या वे अपने आप से डरे हुए हैं?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(Disclaimer: यह पोस्ट फेसबुक से ली गई है, लेखक जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे सोशल मीडिया पर बेबाकी से खुले खत व लेख लिखने के लिए भी जानें जाते हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह हैं। इसके लिए Newsbaji किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है।)

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