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जीवन संवाद: गजब सीख दे गया सांवले रंग के बच्चे का गुब्बारे वाले से पूछ गया सवाल? पढ़ें एक प्रेरक कहानी

 Newsbaji  |  Apr 17, 2023 07:44 AM  | 
Last Updated : Apr 17, 2023 07:44 AM
सांकेतिक फोटो.
सांकेतिक फोटो.

भीतर के रंग!
हमारे भीतर बहुत कुछ उमड़ता-घुमड़ता रहता है. लहरों की तरह बात आई गई होती रहे तो ठीक है. लेकिन अगर काई की तरह मन पर जमने लगे तो संकट धीरे-धीरे बढ़ने लगता है. हम ऐसी दुनिया में हैं, जहां अंजान, अपरिचित भी दुनिया के किसी कोने से आकर हमें प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर कही बातों को हम इतनी इजाज़त देते हैं कि वह मन, सुकून में हलचल पैदा करें. सुखी-दुखी करने की उनकी क्षमता से अधिक यह मन के ज़िरह बख़्तर पर निर्भर है कि हम दूसरों का सामना कैसे करते हैं.

छोटा सा किस्सा कहता हूं. गुब्बारे वाला रंग-बिरंगे गुब्बारे बेच रहा था. ठीक वैसे ही गुब्बारे जैसे हम अपने आसपास देखते हैं. जिनको देखकर बच्चों का मन मचलने लगता है. गुब्बारे वाला बच्चों को अपनी ओर लुभाने के लिए बीच-बीच में एक दो गुब्बारे हवा में छोड़ दिया करता था. इस बीच एक सांवले रंग का बच्चा उसके पास आया, उसने कहा, 'आप काले रंग का गुब्बारा छोड़ेंगे तो क्या वह भी हवा में उतना ही ऊपर जाएगा, जितने रंगीन वाले जा रहे हैं!'

गुब्बारे वाले से इस तरह के सवाल कम पूछे जाते थे. उसने बच्चे के सिर पर दुलार से हाथ फेरते हुए कहा, हां, यह भी उतना ही ऊपर जाएगा. क्योंकि गुब्बारे रंग से नहीं बल्कि उसके भीतर जो हीलियम गैस है, उसके कारण आसमान की ओर जाते हैं. बच्चे को दूसरे बच्चों ने उसके रंग की वजह से इतना सताया था कि उसके मन में तरह-तरह के संदेह पैदा हो गए थे. गुब्बारे वाले ने बड़े प्यार से उसे समझाया. जीवन में हम सबको ऐसे गुब्बारे वाले की जरूरत पड़ती है.

उम्र बढ़ती जाती है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि मन के संदेह भी मिटते जाएं. भीतर के रंग भी पक्के होते जाएं. हमारा ध्यान बाहर की ओर इतना अधिक है कि हम अक्सर मन को कांच जैसा कमजोर करते जाते हैं. किसी की असहमति, नाराज़गी, साथ छूटा नहीं कि हम छन से टूट कर बिखर जाते हैं.

आपने महसूस किया होगा, जब कपड़े वाशिंग मशीन से नहीं धोए जाते थे, घर में मां इस बात का खास ख्याल रखतीं थी कि ऐसे कपड़ों को अलग से धोया जाए, जिनके रंग छूटने का अनुमान हो! ऐसा ना करने से वह रंग दूसरे कपड़ों को खराब कर सकता था. मन को ठीक इसी तरह दूसरों के छोड़े हुए रंग प्रभावित करते हैं.‌

इ‌‌स तरह की खबरें बढ़ती जा रही हैं, जहां छोटी-छोटी बात/विवाद से सताए जाने वाले जीवन को संकट में डाल रहे हैं. अलग-अलग कारणों से हमारे भीतर लोग संदेह पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं. इसलिए, अपने विश्वास का रंग पक्का रखें. उसमें किसी को मिलावट की कोशिश न करने दें. जिस तरह मां कपड़ों का ख्याल रखतीं थीं, वैसा ही अपने मन, जीवन का रखें. परिणाम से अधिक प्रक्रिया पर भरोसा रखें. मन की प्रक्रिया ठीक है तो जीवन सही दिशा में जाएगा.
जीवन की शुभकामना सहित...
-दया शंकर मिश्र
(Disclaimer: लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेख डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध लेखक की किताब 'जीवन संवाद' से लिया गया है.)

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