(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
मोदी जी जो कुछ भी करते हैं या बहुत बार नहीं भी करते हैं, विरोधी षडयंत्रपूर्वक उसके खिलाफ दुष्प्रचार का मौका निकाल ही लेते हैं. अब मणिपुर के मुद्दे पर चुप रहने का ही मामला ले लीजिए. विपक्षियों ने कितना शोर मचा रखा था कि मोदी जी मुंह क्यों नहीं खोल रहे, कि मोदी जी मुंह कब खोलेंगे, कि मोदी जी और क्या-क्या हो जाने के बाद मुंह खोलेंगे. आखिरकार, मोदी जी ने संसद के दरवाजे पर मुंह खोला और मणिपुर तो मणिपुर और जगहों पर भी देश को शर्मिंदा करने वालों के खिलाफ जमकर हमला बोला. तब कहीं जाकर बात समझ में आयी कि मोदी जी ने मणिपुर पर पहले मुंह क्यों नहीं खोला. जब मणिपुर जलना शुरू हुआ, तब मुंह नहीं खोला.
कर्नाटक में वोट मांगने के लिए मुंह खोला, पर मणिपुर पर मुंह नहीं खोला. जब जलते-जलते एक महीना हो गया, तब भी मुंह नहीं खोला. महीने एक से दो हो गए, तब भी मुंह नहीं खोला. देश में तो देश में, विदेश तक में घूमते रहे, पर मुंह नहीं खोला. नीरो का भारतीय एडॉप्टेशन बनने के ताने सह लिए, पर मुंह नहीं खोला. मणिपुर के जलने के महीने दो से ढाई हो गए, तब भी मुंह नहीं खोला. और मुंह खोला तो पूरे एक कम अस्सी दिन के बाद, जबकि उन्यासी की संख्या तो शुभ भी नहीं होती है, दो ही दिन बाद आने वाली इक्यासी की संख्या की तरह. आखिर उन्यासी ही क्यों? क्लीअर है - संसद के सम्मान की खातिर.
विरोधी मोदी जी पर संसद का वक्तन घटाने के कितने ही इल्जाम लगाएं, पर यह सत्तर साल में पहली बार हुआ है कि किसी पीएम ने संसद की इज्जत की खातिर, पूरे उन्यासी दिन दिल पर पत्थर रखकर अपना मुंह सिए रखा है. और वह भी सिर्फ इस परंपरा का पालन करने के लिए कि जब संसद बैठने वाली है, तो पीएम को जो भी कहना है, इधर-उधर न कहकर, पहले संसद में कहे! पर संसद की इस इज्जत अफजाई का बेचारे को क्या सिला मिला? मोदी जी बदनाम हुए, संसदिया तेरे लिए!
पर विरोधी हैं कि अब भी दुष्प्रचार से बाज नहीं आ रहे हैं. जब तक मोदी जी मणिपुर पर कुछ नहीं बोल रहे थे, तब तक पट्ठे हर वक्त बोलो-बोलो की रट लगाए हुए थे. अब जब मोदी ने मुंह खोल दिया है और संसद की इज्जत बढ़ाने की खातिर, मानसून सत्र से ठीक पहले संसद के दरवाजे पर अपना मौनव्रत खोल दिया है, तो भाई लोग अपनी मूल बात से पलट गए हैं. कह रहे हैं कि मोदी जी ने इतनी देर से बोला, तब भी क्या बोला? फिर भी जो भी, जैसा भी बोला, संसद में भी कहां, संसद के दरवाजे पर बोला.
हम तो बोलना तभी मानेंगे, जब मोदी जी संसद के अंदर बोलकर दिखाएंगे. और अकेले-अकेले बोलकर दिखाने से काम नहीं चलेगा, पहले मणिपुर पर पूरी चर्चा कराएं और उस चर्चा के जवाब में बोलकर दिखाएं. साफ है कि इन्हें मोदी जी की मन की बात नहीं सुननी है, न संसद में, न संसद के बाहर. उल्टे ये तो मोदी जी को ही अपने मन की बात सुनाना चाहते हैं और दुनिया के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री को अपने मन की बात सुनाकर, सेंत-मेंत में नेम-फेम बटोरना चाहते हैं.
मोदी जी को एकदम फालतू समझा है क्या? दिन में अठारह-अठारह, बल्कि अब तो बीस-बीस घंटा काम करते हैं, तब कहीं जाकर सारी वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखा पा रहे हैं. सांसदों की बातें सुनते बैठेंगे, तब तो सारे शिलान्यास-उद्घाटन ऑनलाइन ही करने पड़ जाएंगे. फिर, संघ-सखा मोदी-मोदी कर के किसे सुनाएंगे! इसीलिए, मोदी जी ने मणिपुर पर मुंह तो खोला, पर जो भी बोला, संसद के दरवाजे पर ही बोला. न संसद में जाएंगे और न विरोधी उन्हें अपने मन की बात सुना पाएंगे. बहुत होगा तो बहस-बहस चिल्लाकर थक जाएंगे.
और जब मोदी जी ने मणिपुर शब्द बोल ही दिया है और अपना गम और गुस्सा जताने के लिए अपना मौनव्रत खोल दिया है, तो विरोधी किस मुंह से इस पर सवाल उठा रहे हैं कि मोदी जी ने बोला भी तो क्या बोला? पहले बोलो-बोलो कर रहे थे. अब बोल दिया, तो लगे उस पर नुक्ताचीनी करने कि वह क्यों नहीं बोला, यह क्यों बोल दिया, वगैरह, वगैरह! सच्ची बात तो यह है कि मोदी जी इन विरोधियों की नस-नस अच्छी तरह से पहचानते हैं.
इतनी बड़ी सरकार, इतनी सारी जासूसी और गैर-जासूसी वाली सरकारी एजेंसियां, सीबीआइ, ईडी, आइटी वगैरह-वगैरह किसलिए हैं. मोदी जी को तो पहले ही पता था कि वो जब भी, मुंह खोलेंगे तब भी नाशुक्रे विरोधी मुंह खोलने के लिए कौन से थैंक यू मोदी जी करेंगे! उल्टे जो मुंह खोलने के पीछे पड़े थे, मुंह खोलते ही, वह जो बोलेंगे, उसके पीछे पड़ जाएंगे. तब मुंह खोलकर गुनाह-बे-लज्ज़त क्यों करना? इससे तो अच्छा, एक चुप सौ बोलतों को हराए. बस नाम बदलकर मौन मोदी न कर दिया जाए.
फिर मोदी जी ने गलत क्या बोला है? क्या मणिपुर की कुकी औरतों की इज्जत ही इज्जत है, राजस्थान, छत्तीसगढ़ वगैरह की औरतों की इज्जत, इज्जत नहीं है? मणिपुर की दरिंदगी पर ही गुस्सा आए और एमपी, यूपी वगैरह की तरह, राजस्थान, छत्तीसगढ़ वगैरह की दरिंदगी पर गुस्सा ही नहीं आए, मोदी जी ऐसे भेदभाव करने वाले पीएम नहीं हैं. हाई लेवल के समदर्शी हैं: डबल इंजन की सरकार के राज में दरिंदगी पर उन्हें गुस्सा आता है, तो सिंगल इंजन वाली सरकारों के राज में दरिंदगी हो, तो भी उतना ही गुस्सा आता है. और दरिंदगी का वीडियो फौरन सामने आए तो और अठहत्तर दिन बाद सामने आए तो, उन्हें बराबर का गुस्सा आता है.
और क्यों न आए. डबल इंजन वाला मणिपुर हो तो और सिंगल इंजन वाला राजस्थान या कोई और राज्य हो, बदनामी तो मोदी जी के भारत देश की होती है और मोदी जी बाकी सब कुछ सहन कर सकते हैं, पर देश की बदनामी सहन नहीं कर सकते हैं. अब ट्विटर-विटर वालों की खैर नहीं. मोदी जी के मुंह खोलने के बाद, राज्य को बदनाम करने वालों के खिलाफ मणिपुर में प्रदर्शन वगैरह भी शुरू हो गए हैं. अब पब्लिक मैदान में आ रही है. अंदर की बात, अब बाहर नहीं आएगी. इंटरनेट पर पाबन्दी फिर -फिर बढ़ाई जाएगी. भीतर कुछ भी हो, भारत माता की बदनामी नहीं होने दी जाएगी.
इस व्यंग्य के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर 'के संपादक हैं.
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