Saturday ,November 23, 2024
होमचिट्ठीबाजीजीवन संवाद: दिमाग को सबसे अधिक मजाक किसमें आता है, क्यों घर बन रहे जंग का मैदान? पढ़ें- मोटिवेशनल स्टोरी...

जीवन संवाद: दिमाग को सबसे अधिक मजाक किसमें आता है, क्यों घर बन रहे जंग का मैदान? पढ़ें- मोटिवेशनल स्टोरी

 Newsbaji  |  Apr 24, 2023 08:26 AM  | 
Last Updated : Apr 24, 2023 08:26 AM
सांकेतिक फोटो.
सांकेतिक फोटो.

विवाद के रस!
दिमाग को सबसे अधिक मज़ा किसमें आता है, उसकी प्रिय खुराक क्या है? विवाद! कुछ अपवाद हो सकते हैं लेकिन मोटे तौर पर मन विवादप्रिय है. दूसरे को हराना, सबसे प्रिय है. इस जीत में जीवन की पूरी ऊर्जा, शक्ति और स्नेह पीछे छूटते जाते हैं. विवाद के लिए हमेशा बाहर की जरूरत नहीं. इसीलिए, घर अक्सर ही जंग का मैदान बने रहते हैं. इस जीत में जीवन की पूरी ऊर्जा, शक्ति और स्नेह पीछे छूटते जाते हैं. दूसरे को हराकर हम भीतर से इतना जीत जाते हैं कि बाहर से कितना ही नुकसान हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

जिसको जीवन की ओर जाना है, वह अपना पक्ष रखेगा लेकिन मन में मैल नहीं जमने देगा. लेकिन हमारा ध्यान जीवन की ओर से अक्सर भटकता रहता है. स्वभाव से मनुष्य बंदर जितना ही नकलची है. यह बात और है कि यह नकल करने के लिए उसे बड़े-बड़े स्कूल कॉलेजों की जरूरत पड़ी और बंदर यह काम बड़ी आसानी से बिना स्कूल गए ही कर लेते हैं.

मन का साहस जितना कमजोर होता जाता है, हम नकल की ओर उतने अधिक बढ़ते जाते हैं. एक छोटी सी कहानी आपसे कहता हूं. संभव है, इस सूफी कहानी से मेरी बात अधिक स्पष्ट हो पाए. एक साधु लंबी यात्रा पर थे. मुश्किल वक्त था, खाने-पीने की चीज़ों का इंतज़ाम कर पाना सरल नहीं था. जिस गांव में वह ठहरे, उसने आगे बढ़कर श्रद्धा से उनका स्वागत किया. जब वह जाने लगे तो उन्होंने गांव वालों को चेतावनी देते हुए कहा कि एक खास तारीख के बाद दुनिया के सारे पानी का गुण बदल जाएग. पीने वाले पागल हो जाएंगे. केवल वही लोग सही सलामत बचेंगे जो थोड़ा पानी अलग बचा कर रख लेंगे, उसे ही पिएंगे.

सबने ध्यान से सुना लेकिन कुछ ही दिनों बाद भूल गए. केवल एक व्यक्ति ने साधु की चेतावनी पर ध्यान दिया उसने थोड़ा पानी बचा कर रख लिया. निश्चित तिथि के बाद वही हुआ, जो साधु महाराज ने कहा था. इस एक आदमी को छोड़कर गांव के सभी लोग पागल हो गए लेकिन जब उसने बाकी लोगों से बातचीत की तो उसे पता चला कि सभी उसे ही पागल समझते हैं. धीरे-धीरे उसके लिए पागलों के बीच अपना अकेलापन सहना मुश्किल हो गया और उसने भी नया पानी पी लिया. कुछ दिन बाद वह भी भूल गया कि उसने कुछ शुद्ध जल बचा कर रखा था. इससे गांव वालों को बड़ी राहत हुई. वह कहने लगे, वह जो एक पागल था, हमारे बीच अब वह भी स्वस्थ हो गया. कहानी का क्या निष्कर्ष निकाला जाए, यह आप पर छोड़ता हूं. बस इतना ही कहना है कि भीड़ में शामिल होकर कभी उसे नहीं पाया जा सकता जिसकी तलाश में हम निकले हैं!
जीवन की शुभकामना सहित...

-दया शंकर मिश्र
(Disclaimer: लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेख डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध लेखक की किताब 'जीवन संवाद' से लिया गया है.)

admin

Newsbaji

Copyright © 2021 Newsbaji || Website Design by Ayodhya Webosoft