(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
शुक्र है सुप्रीम कोर्ट का कि उसने बेचारे चुनाव आयोग की इज्जत बचा ली. मीनार पर चढ़कर एलान कर दिया कि चुनाव आयोग ने अगर डाले गए वोटों की गिनती नहीं बताने का एलान कर दिया है, तो कर दिया है. उसे हम गिनती बताने के लिए मजबूर नहीं करेंगे. और अदालत गिनती बताने के लिए मजबूर करे भी, तो क्यों करे? देश में डैमोक्रेसी है या नहीं? तो क्या डैमोक्रेसी में मोदी जी के विरोधियों की ही मर्जी चलेगी और किसी की मर्जी चलेगी ही नहीं? आखिर, चुनाव आयोग की भी मर्जी, मर्जी है. जाओ नहीं बताएगा, गिनती.
वैसे ये विपक्ष वाले घड़ी-घड़ी अदालत में क्यों पहुंच जाते हैं कि फलां जानकारी क्यों नहीं दी जा रही, ढिमकां जानकारी पब्लिक से क्यों छुपायी जा रही है, अधिकारियों से चिलां जानकारी दिलायी जाए, वगैरह, वगैरह. इन्हें जानकारी मांगने के सिवा और कोई काम नहीं है क्या?
अभी पिछले ही दिनों हाथ धोकर बेचारे स्टेट बैंक के पीछे पड़े हुए थे -- इलेक्टोरल बांड की जानकारी दो. असल में ये पीछे तो मोदी जी के पड़े थे, पर लपेटे में बेचारा स्टेट बैंक आ गया. लगे मांगने -- बांड खरीदने वाले की, बांड भुनाने वाले की, खरीदने वाले और भुनाने वाले के लेन-देन की, पूरी जानकारी दो. स्टेट बैंक के जरिए मोदी जी ने कितना समझाया कि राज को राज ही रहने दो, पर नहीं माने. पट्ठे हलक में हाथ डालकर, पूरी जानकारी उगलवा कर ही माने.
अब फिर उसी आला अदालत के सामने पहुंच गए, कुल डाले गए वोट की गिनती मांगने. अदालत की भी समझ में आ गया कि इन्हें ज्यादा बढ़ावा देना ठीक नहीं है ; एक बार मांगने की आदत पड़ जाएगी तो, भले ही जानकारी मांगने की ही आदत हो, ये तो हर रोज अदालत से जानकारी मांग-मांग के परेशान ही कर देंगे. साफ कह दिया -- हम गिनती तो नहीं खुलवाएंगे!
फिर चुनाव आयोग की बात में भी गलत क्या है? वह क्यों बताए, कुल पड़े वोटों की गिनती? और जो कह रहे हैं गिनती बताने के लिए, उनके कहने पर ही गिनती क्यों बताए? ये होते कौन हैं गिनती पूछने वाले! क्या कहा -- पब्लिक के प्रतिनिधि? ये पब्लिक के प्रतिनिधि हैं, तो फिर मोदी जी क्या हैं, जिन्हें वोट भले ही बीस-बाईस करोड़ लोगों ने दिया हो, आशीर्वाद पूरे एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों का मिला हुआ है. इसके बाद भी मोदी जी तीसरी बारी के लिए बाकायदा चुनाव लड़ रहे हैं. दस साल में तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं.
खुद बता चुके हैं कि चाहते, तो संविधान बदल सकते थे ; सब जोड़-बटोर कर, चार सौ पार जितना बहुमत पिछली बार भी संसद में था, उनके पास. पर इंडिया वालों पर तरस खाकर नहीं बदला. सत्तर क्रास कर गया, फिर भी संविधान नहीं बदला. और अब उसी संविधान के तुफैल से चुनाव लड़ रहे हैं. पर मजाल है, जो मोदी जी ने कभी चुनाव आयोग से डाले गए वोट की गिनती मांगी हो! फिर आयोग क्यों बता दे कुल वोटों की गिनती, पब्लिक की आवाज होने का दावा करने वाले इन नक्कालों को.
और कोई यह भी नहीं भूले कि ये कुल वोटों की गिनती बताने की मांग करने वाले हैं कौन? कोरोना से ठीक पहले का टैम याद है? नहीं, हम कोरोना की मौतों की गिनती की बात नहीं कर रहे हैं. वैसे भी मौतों की कुल गिनती पर भले ही कितना ही विवाद हो, विश्व स्वास्थ्य संगठन वाले कितना ही हमारी सरकारी गिनती से वास्तविक मौतें दस गुनी बताएं, पर एक गिनती उसमें भी पक्की थी. न आक्सीजन की कमी से कोई मरा था और न गंगा में कोई लाशें बहायी गयी थीं, न गंगा के किनारे रेती में कोई लाशें दफ्न की गयी थीं. और न कोई मजदूर-वजदूर पैदल-पैदल सैकड़ों मील दूर अपने घर-गांव घिसटते-घिसटते गए थे.
खैर, हम उस सब के नहीं होने से भी पहले की बात कर रहे हैं ; जब सीएए आया था, एनआरसी आया था, एनपीआर आया था. यही लोग जो अब चुनाव आयोग से गिनती बताने को कह रहे हैं, तब क्या कहते थे? हम कागज नहीं दिखाएंगे! मोदी जी ने कितना समझाया. अमित शाह जी ने समझाया. भागवत जी ने समझाया. पर नहीं माने, तो नहीं ही माने. अड़ गए कि कागज नहीं दिखाएंगे. सत्याग्रह करने पर उतर आए -- कागज नहीं दिखाएंगे. जगह-जगह शाहीन बाग बना दिए -- कागज नहीं दिखाएंगे.
बेचारी सरकार को जगह-जगह गोली चलानी पड़ी, पर कागज नहीं दिखाए, तो नहीं ही दिखाए. वह तो ऊपर वाले का शुक्र रहा कि कोरोना आ गया और कोरोना की पाबंदियों से सारे शाहीनबाग सिमट गए, वर्ना न जाने क्या होता? जो तब उछल-उछल कर कहते थे कि कागज नहीं दिखाएंगे, वही अब चुनाव आयोग से कह रहे हैं कि कुल पड़े हुए वोटों की गिनती बताओ. चुनाव आयोग ने भी अब जैसे को तैसा जवाब दे दिया है -- हम गिनती नहीं बताएंगे!
फिर चुनाव आयोग को भी पता है कि ये मामला सिर्फ पड़े हुए वोट की गिनती बताने पर नहीं रुकेगा. एक बार बताना शुरू कर दिया, तो फिर मांग दूर तक जाएगी. अभी कुल गिनती नहीं बतायी है और सिर्फ वोट का फीसद बताया है, तब तो भाई लोग इस पर हुज्जत कर रहे हैं कि वोटिंग की रात के आंकड़े और अंतिम आंकड़े के बीच, गिनती पांच-छ: फीसद तक कैसे बढ़ गयी? कुल एक करोड़ से ज्यादा वोट का अंतर कैसे पड़ गया? पूरी गिनती बता देते, तब तो भाई लोग एक-एक वोट बढऩे पर हुज्जत करते. और बात वहीं तक थोड़े ही रहती.
जब वोटों की गिनती होती, तो भाई लोग क्या इसकी जिद नहीं करते कि उतने ही वोट गिने जाएं, जितने कि गिनती के हिसाब से डाले गए थे! तब मोदी जी के गणित के एक्स्ट्रा 2एबी वाले फार्मूले वाले, एक्स्ट्रा वोटों का क्या होता? सोचिए, दुनिया में क्या इज्जत रह जाती मदर ऑफ डैमोक्रेसी की. और ये वोटों की गिनती मांगने वाले, वोटों के गिने जाने तक इंतजार करते क्या?
ये चुनाव आयोग के प्राण नहीं खा लेते कि मोदी जी और उनके भाई बंदों के चुनाव के नियम-कायदों को ठेंगा दिखाने पर कार्रवाई क्यों नहीं की, उसका जवाब दो! आयोग जी ने अच्छा किया कि शुरू में ही मना कर के टंटा ही काट दिया. जो पड़े हुए वोट की कत्तई शाकाहारी गिनती तक नहीं बताएंगे, मोदी जी के विरोधी भी उनसे कुछ भी मांगने कैसे जाएंगे! वैसे बताने को गिनती बता भी देंगे, मगर जब मन करेगा तब. जब सब मान लेंगे कि ये नहीं बताएंगे, तब गिनती भी बताएंगे, मगर उसके पहले नहीं. जो कोई कहेगा गिनती बताने को, तब तो गिनती हरगिज नहीं बताएंगे.
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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