(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
ये ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल वालों ने क्या हद्द ही नहीं कर दी. बताइए, चुनाव से ठीक पहले रिपोर्ट निकाली है और उसमें मोदी जी के भारत को और उनके भी अमृतकाल वाले भारत को, भ्रष्टाचार के मामले में 93वें नंबर पर रख दिया है. तिरानवे यानी सात कम सौ. उनके हिसाब से तो एक दो नहीं, दस-बीस नहीं, पूरे बानवे देश हैं जो मोदी जी के भारत से ज्यादा ईमानदार हैं. और तो और ईमानदारी में चीन तक मोदी जी के अमृतकाल वाले भारत से बेहतर है.
पट्ठा 76वें स्थान पर बैठा इतरा रहा है और वहीं से हमें मुंह चिढ़ा रहा है. वह तो इस बात की तसल्ली है कि पड़ोस में श्रीलंका 115वें स्थान पर है, बांग्लादेश 149वें स्थान पर है. और सबसे असली बात यह कि पाकिस्तान, 133वें स्थान पर है और अफगानिस्तान तो सबसे नीचे, 162वें स्थान पर है. यानी नन्हे से भूटान को छोड़कर, जिसके भ्रष्ट होने न होने तो क्या, होने न होने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है, सारे पड़ोसी हमसे तो ज्यादा ही भ्रष्ट हैं.
खैर, कोई कुछ भी कहे, हम अब भी कम-से-कम पास-पड़ोस वालों को तो इसकी सीख दे ही सकते हैं कि ईमानदारी कितनी अच्छी चीज है और भ्रष्टाचार कितनी बड़ी बुराई है! हां! इसमें भी एक छोटी-सी प्राब्लम है. पिछले साल, अमृतकाल स्टार्ट होने के बाद भी भारत 85वें नंबर पर था. इस बार उससे भी आठ अंक नीचे खिसक गया है यानी अमृतकाल से पहले की बात तो छोड़ ही दें, अमृतकाल में भी मोदी जी का भारत भ्रष्ट से भ्रष्टतर ही होता जा रहा है. इसे अगर सच मान लिया जाए, तब तो यह भी मानना पड़ेगा कि भ्रष्टता के विकास की इस रफ्तार से भारत अमृतकाल के छोर तक विकसित देश बने न बने, पर दुनिया का भ्रष्टतम देश जरूर बन जाएगा.
मोदी जी ऐसे सूचकांक को सही मान ही कैसे सकते हैं. उस पर तुर्रा यह है कि ये तो भ्रष्टता से भी बढ़कर, भ्रष्टाचार धारणा या पर्सेप्शन सूचकांक है यानी भ्रष्टाचार को लेकर लोगों के ख्यालों का संकेतक. यानी ये पब्लिक की राय है कि मोदी जी के अमृतकाल में भारत भ्रष्ट से भ्रष्टतर होता जा रहा है! फिर मोदी जी जो दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, वह क्या है? इतने लोकप्रिय नेता के रहते हुए देश भ्रष्ट से भ्रष्टतर कैसे हो जाएगा?
सच पूछिए, तो मोदी जी इसीलिए, विदेशी सूचकांकों पर भरोसा ही नहीं करते हैं -- न भूख सूचकांक पर, न प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक पर, न जनतंत्र सूचकांक पर, न धार्मिक स्वतंत्रता सूचकांक पर. और तो और, कोविड में मौतों की गिनती के अनुमानों वगैरह पर भी नहीं ; बल्कि इन सभी सूचकांकों को भारत विरोधी अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र का टूलकिट मानते हैं. विदेशी इन सूचकांकों पर भारत को नीचे से नीचे लुढ़काते हैं, जिससे मोदी जी के राज में भारत के ऊपर चढ़ते जाने की सचाई को छुपा सकें.
वर्ना क्या ये ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल वालों को दिखाई नहीं देता कि मोदी जी भ्रष्टाचार के खिलाफ जबर्दस्त अभियान छेड़े हुए हैं. न खाऊंगा, न खाने दूंगा, सिर्फ जुम्ला नहीं है. मोदी जी खुद तो खैर खाते ही नहीं हैं, दूसरों को भी नहीं खाने दे रहे हैं. देखा नहीं, कैसे मोदी जी ने खाने से रोकने के लिए, इतिहास में पहली बार एक पदासीन मुख्यमंत्री को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया है. जी हां, हेमंत सोरेन की बात हो रही है. सुनते हैं, अगला नंबर केजरीवाल का है. फिर कोई और.
मोदी जी का संदेश स्पष्ट है. मुख्यमंत्री तक को नहीं खाने देंगे. इसके बाद तो पीएम ही बचता है और पीएम खुद मोदी जी हैं. और मोदी जी की नजर सिर्फ मुख्यमंत्रियों पर ही थोड़े ही है. ईडी और सीबीआई आला खिलाड़ियों की तरह, प्रदर्शन बढ़ाने वाली दवाओं की खुराक पर नेताओं के घरों, दफ्तरों, पार्टी कार्यालयों, नाते-रिश्तेदारों के ठिकानों वगैरह को यूं ही थोड़े ही खूंदती फिर रही हैं. दिल्ली से लेकर तमिलनाडु तक, मंत्रियों समेत बड़े-बड़े नेताओं को जेलों में यूं ही थोड़े ही ठूंसा जा रहा है. दर्जनों छापे यूं ही थोड़े ही पड़ रहे हैं.
मोदी जी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध छेड़ा हुआ है. हां! इतना जरूर है कि उन्होंने इस युद्ध की शुरुआत, अपने विरोधियों से की है. क्या करें, युद्ध की शुरुआत कहीं से तो करनी ही होती है. इतना लंबा-चौड़ा देश है. उसका उतना ही फैला हुआ भ्रष्टाचार है. हर जगह तो एक साथ युद्ध छेड़ नहीं ना सकते हैं.
बल्कि युद्ध की कार्यनीति के ही तहत, वह तो उन विरोधियों के खिलाफ युद्ध विराम करने में भी देर नहीं लगाते हैं, जो उनके हमले से भयभीत होकर उनकी शरण में आ जाते हैं. शरणागत की रक्षा करना तो वैसे भी प्राचीन भारतीय युद्ध आदर्श है. फिर युद्ध की कार्यनीति भी तो एक चीज होती है. हां! कोई पाला बदलकर विरोधियों से जा मिले, तो उसकी खैर नहीं. उसकी वही सजा, जो शत्रु भ्रष्टाचार की! आएगा, एक दिन अपनों के भ्रष्टाचार से युद्ध का भी नंबर आएगा. तब तक सब के लिए, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को मिटाने के भाषण तो हैं ही.
आखिर में दो शब्द, चुनावी बांड वगैरह में भ्रष्टाचार खोजने वालों के संबंध में. अगर ट्रांसपेरेंसी वालों की बात आधी भी सच है, तो देश में इतना भ्रष्टाचार फैला हुआ है कि छुपे हुए भ्रष्टाचार को खोजने की जरूरत ही क्या है? जो भ्रष्टाचार, पर्दे में है, उसे भ्रष्टाचार नहीं, शिष्टाचार मानना चाहिए. जो भ्रष्टाचार पर्दे में है, उसे पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ; पर्दा जो उठ गया तो भ्रष्टाचार सूचकांक में देश और नीचे फिसल जाएगा.
वैसे भी मोदी जी ने वादा न खाऊंगा, न खाने दूंगा का किया है; खिलाने नहीं दूंगा, का तो वादा भी नहीं किया है. और हां! अब अगर कोई मोदी जी की पार्टी वालों के साथ बरबस मुख लपटायो ही कर दे, तो किया ही क्या जा सकता है. हमारी परंपरा में ऐसी भ्रष्टता को भ्रष्टता नहीं कहते. पर इन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल वालों को ये बात कौन समझाएगा? हमारी संस्कृति को ये कैसे समझेंगे? ये तो जैसे-जैसे नापेंगे, भ्रष्टता में मोदी जी का भारत नीचे ही खिसकता जाएगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोक लहर' के संपादक हैं.)
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