1. डैमोक्रेसी की कॉमेडी
ये लो कर लो बात. विपक्षियों के हिसाब से एक बार फिर डैमोक्रेसी का मर्डर हो गया. तमाचा-वमाचा भी नहीं, लात-घूंसा भी नहीं, लाठी-वाठी भी नहीं, सीधे मर्डर. और वह भी मोदी जी और महादेव की नगरी, काशी में. कब, कैसे? मोदी जी की नकल उतारने वाले कॉमेडियन श्याम रंगीला को, मोदी जी के खिलाफ चुनाव जो नहीं लडऩे दिया जा रहा. यानी डैमोक्रेसी तभी तक जिंदा रहेगी, जब तक कॉमेडियन को चुनाव लड़ने दिया जाएगा और वह भी मोदी जी के खिलाफ. क्या मजाक है -- वो ही अगर डैमोक्रेसी हुई, तो कॉमेडी शो क्या होगा!
फिर अगर श्याम रंगीला को चुनाव में खड़े नहीं होने दिया गया, तो इसमें मोदी जी कहां से आ गए. जो कुछ भी हुआ है, नियमानुसार हुआ है. नियमानुसार ही पर्चा दाखिल हुआ, तो नियमानुसार ही पर्चा बाद में खारिज भी हो गया. इसमें मोदी जी को तो छोड़ ही दो, डैमोक्रेसी भी कहां से आ गयी? या विरोधी यह कहना चाहते हैं कि कामेडियनों पर कोई नियम-कायदा लागू ही नहीं होना चाहिए? जो भी कॉमेडियन चाहे, मुंह उठाकर पीएम जी के खिलाफ चुनाव लडऩे के लिए चला आए;
तब तो चल ली डैमोक्रेसी -- पीएम के चुनाव क्षेत्र में कॉमेडियनों की लाइनें लग जाएंगी, लाइनें. माना कि मोदी जी भी अच्छी-खासी कॉमेडी कर लेते हैं, लेकिन रहेंगे तो पार्ट टाइम कॉमेडियन ही. चुनाव आयोग फुल टाइम वाले श्याम रंगीला का, पार्ट टाइम वाले मोदी जी से मुकाबला कैसे होने दे सकता था. आखिर, डैमोक्रेसी में जोड़ भी तो बराबर का होना चाहिए, यानी लेवल प्लेइंग फील्ड. मदर ऑफ डैमोक्रेसी वाला चुनाव है -- लाफ्टर चेलेंज थोड़े ही है.
मोदी जी कॉमेडी के खिलाफ बिल्कुल नहीं हैं. कॉमेडियनों के चुनाव लड़ने के खिलाफ भी नहीं हैं. उल्टे वह तो कॉमेडियनों की एकता चाहते हैं, ताकि देश-दुनिया में कॉमेडी खूब फले-फूले. कॉमेडी इतनी फले-फूले कि डैमोक्रेसी की पूरी कॉमेडी हो जाए. इसीलिए, मोदी जी नहीं चाहते हैं कि चुनाव में कॉमेडियन के खिलाफ कॉमेडियन खड़ा हो. कॉमेडियन को कॉमेडियन हराएगा, तब भी हार तो कॉमेडी की ही होगी. फिर श्याम रंगीला तो मोदी जी की नकल ही करता है. जब असली मौजूद है, तो पब्लिक को नकल दिखाकर कंफ्यूज क्यों करना? रही बात डैमोक्रेसी की तो रंगीला अब तक बाहर है, इतनी डैमोक्रेसी क्या कम है? अब चुनाव भी लड़ना है -- ये टू मच डैमोक्रेसी की मांग नहीं हो गयी क्या?
2. मोदी युग में स्वागत है!
आखिर, ये विरोधी चाहते क्या हैं? बताइए, मोदी जी ने अपने समय को जरा-सा मोदी युग क्या घोषित कर दिया, इनके पेट मेें उस पर भी मरोड़ें उठने लगीं. कहते हैं कि कोई ऐसे अपने मुंह से, अपने टैम को अपना युग घोषित करता है? बाकी छोड़ दो, क्या किसी ग्रंथ में या किस्से में, रामचंद्र जी तक के अपने टैम को अपना युग घोषित करने का जिक्र मिलता है क्या? या कृष्ण या शिव या विष्णु या दुर्गा के अपने युग का एलान करने का -- यह तो मोदी जी का ज्यादा ही अहंकार हो गया!
क्यों भाई, ये किस किताब में लिखा हुआ है कि मोदी जी वह कुछ कर ही नहीं सकते हैं, जो इन अवतार कहलाने वालों ने नहीं किया हो. इस लॉजिक से तो मोदी जी को अब तीसरी बार तो क्या, पिछली दो बार भी देश का चुनाव नहीं जीतना चाहिए था. और किसी अवतार ने पूर्ण बहुमत से ऐसे चुनाव जीता था क्या? पर मोदी जी ने जीता. ऐसे ही मोदी जी तो, मोदी युग की घोषणा कर रहे हैं, कोई रोक सकता हो तो रोक ले!
और मोदी जी ने मोदी युग की घोषणा कोई अचानक तो कर नहीं दी है. मोदी जी जिस दिन रामलला को उंगली पकडक़र उनके पक्के घर में वापस लाए थे, उन्होंने तो उसी दिन आगाह कर दिया था कि युग बदल रहा है, एक नया युग शुरू हो रहा है. बस तब उन्होंने नये युग के नाम की घोषणा नहीं की थी कि इसे मोदी युग के नाम से जाना जाएगा. मोदी जी को लगा होगा कि उन्होंने नये युुग के आने का एलान तो कर ही दिया है, उसके नाम का एलान दूसरे लोग करेंगे तो और अच्छा लगेगा.
खुद अपने मुंह से तो उन्होंने गांधी नगर के नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम के नामांतरण का एलान भी नहीं किया था. पर बेचारे कब तक इंतजार करते, दूसरों के नये युग का नामकरण करने का? आधा चुनाव भी निकल गया, तो उन्हें लगा कि अब और इंतजार करना ठीक नहीं होगा. ऐसा न हो कि 4 जून के बाद, नये युग का नामकरण करने का मौका ही नहीं रह जाए. सो झट से खुद ही एलान कर दिया -- ये मोदी युग है. इस युग में हम घर में घुसकर मारते हैं, पड़ौसियों के बम वाले हाथों में चूडिय़ां पहना देते हैं, कटोरा पकड़ा देते हैं, वगैरह यानी फुल फिल्मी डॉयलॉगबाजी का युग है!
अब जब मोदी युग चल ही पड़ा है, उसके सामने दूसरे देवी-देवताओं के किस्सों का उदाहरण देना बंद होना चाहिए. मोदी जी भी दूसरे देवी-देवताओं से कम थोड़े ही हैं. उन्होंने भी साफ-साफ कह दिया है कि न मैं अपने लिए जिया हूं, न अपने लिए पैदा हुआ हूं ; मुझे तो ईश्वर ने 140 करोड़ परिवारजनों की सेवा के लिए भेजा है. पैदा नहीं हुए हैं, ईश्वर ने भेजा है ; अपने अवतार होने की किसी की भी इससे बड़ी आत्म-स्वीकृति और क्या होगी? पर सुना है कि विपक्षी इसमें भी खामखां में टांग अड़ा रहे हैं.
कह रहे हैं कि पहले तो मोदी जी कहते थे कि न मुझे कोई लाया है, न मैं आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है! मोदी जी एक बार तय कर लें, उन्हें गंगा ने बुलाया है या ईश्वर ने भेजा है! लेकिन, यह विवाद झूठा है. गंगा ने बुलाया है और ईश्वर ने भेजा है ; दोनों बातें एक साथ भी तो सच हो सकती हैं. वैसे भी, वो अलग चुनाव की बात थी, ये अलग चुनाव की बात है. असली बात यह है कि मोदी युग चल रहा है. बस मोदी जी के अवतार घोषित होने की औपचारिकता बाकी है. 4 जून को वह भी सही.
3. देखत प्रभु लीला विचित्र अति...
ये विपक्ष वाले बिल्कुल ही पगला गए हैं क्या? बताइए, मोदी जी के बारे में ऐसे बातें कर रहे हैं, जैसे वह कोई आदमजात हों और वह भी मामूली. केजरीवाल ने जमानत पर जेल से बाहर आते ही सुर्रा छोड़ दिया. अगले साल जुलाई में मोदी जी पचहत्तर साल के हो जाएंगे. मोदी जी ने ही अपनी पार्टी में नियम बनाया था कि जो पचहत्तर का हो जाएगा, रिटायर कर के घर बैठा दिया जाएगा. यानी पब्लिक ने मोदी जी को एक बार फिर जिता भी दिया, तो भी उसके मत्थे पीएम के नाम पर अमित शाह मढ़ दिए जाएंगे ; मोदी जी घर जो बैठ जाएंगे! खामखां में बेचारे शाह साहब की गर्दन खतरे में डाल दी. बेचारे को हाथ के हाथ खंडन करना पड़ा -- यह बिल्कुल बकवास है.
मोदी जी की उम्र की बात से विरोधी खुश होने की गलती नहीं करें. मोदी जी, मोदी जी हैं ; कोई आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी नहीं, जो मार्गदर्शक मंडल में चले जाएंगे. मोदी जी तो खैर चले भी जाएं, पर उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेजेगा कौन? वैसे भी पचहत्तर साल पर रिटायरमेंट एक नियम ही तो है ; नियम इंसानों के लिए होते हैं, सुल्तानों के लिए नहीं. सुल्तान नियमों पर चलते नहीं, नियम बनाते हैं. और जो नियम बनाता है, उसके लिए नियम तोड़ना तो बाएं हाथ का खेल है. पब्लिक जिताए तो और नहीं जिताए तो, पीएम तो मोदी जी ही रहेंगे. पांच साल ही नहीं, उसके बाद भी, मोदी जी ही रहेंगे. पीएम का नाम बदलकर भले ही राष्ट्रपति रखवा दें, रहेंगे मोदी जी ही!
ऐसा ही एक और सुर्रा राहुल गांधी ने छोड़ दिया है. किसी सिविल सोसाइटी ग्रुप का सुझाव मानकर पट्ठे ने एलान कर दिया कि मैं तो तैयार हूं किसी भी स्वतंत्र मंच पर, देश के मुद्दों पर मोदी जी से बहस करने के लिए. पर सौ फीसद पक्का है कि मोदी जी तैयार नहीं होंगे! कोई इंसान होता, तो दुविधा में फंस जाता. ना करें तो भी मुसीबत, हां करें तो भी मुसीबत. पर मोदी जी को दुविधा छू भी नहीं सकती. खुद तो उन्होंने, ना या हां कहना तक गवारा नहीं किया. बस अपने पट्ठे से कहलवा दिया कि राहुल गांधी की हैसियत ही क्या है, पीएम मोदी से बहस करने की और वह भी देश के मुद्दों पर. बहस करने का इतना ही शौक है, तो कर लें हिंदू-मुसलमान पर बहस, राम मंदिर पर बहस. चाहें तो बिना टेलीप्राम्प्टर के बहस कर लें.
राहुल गांधी ही क्यों और कोई भी आ जाए और कर ले बहस. बहस से मोदी जी डरते थोड़े ही हैं! पर जब देश के मुद्दों पर सवाल किया जाएगा, दूसरी तरफ से पीएम का जवाब आएगा. पर पीएम से जवाब मांगने की, सवाल करने वाले की हैसियत भी तो होनी चाहिए. आखिर, देश की प्रतिष्ठा का सवाल है. राहुल गांधी हैं क्या, फकत एमपी! कोई भी एमपी मुंह उठाए चला आएगा और पीएम से बहस करने लग जाएगा ; संसद समझ रखा है क्या? और मोदी जी तो संसद तक में विपक्ष वालों को मुंह नहीं लगाते हैं और सिर्फ अपने मन की बात सुनाते हैं ; वह राष्ट्रीय चुनाव में किसी विपक्ष वाले के सवालों के जवाब देंगे?
मोदी जी मोदी जी हैं. मोदी जी की बराबरी कम से कम किसी मनुष्य से कोई नहीं करे. उन्हें इंसानों के लिए बने नियम-कायदों के बंधन में बांधने की कोशिश कोई नहीं करे. प्रभु लीला, आनंद लेने के लिए होती है, बहस के लिए नहीं. प्रभु लीला का आनंद लेना ही तो प्रजा का कर्तव्य है!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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