कसक!
लाख चाहने के बाद भी जो हो न सका, उसे भुलाना आसान नहीं होता. अधूरे ख्वाब, हम जो हो सकते थे, उसकी टीस आसानी से जाती नहीं. हमारी जीवनशैली, मन का स्वभाव 'जो मिल गया, वह मिट्टी, जो नहीं मिला वही हीरा', वाला होता गया. इसमें हीरे अंततः कोयला होते जाएंगे क्योंकि जो मिलता जाएगा, हम उसे मिट्टी में मिलाते जाएंगे.
मुझे एक फोन आया. जिन्होंने फोन किया अपने आसपास के परिवेश में वह बहुत सफल, मिलनसार, सुखी व्यक्ति हैं. उन्होंने लगभग पंद्रह मिनट की बातचीत में बताया,' सब कुछ होने के बाद भी मैं वहां नहीं पहुंच पा रहा हूं, जहां के लिए बना था. जहां हूं, वहां के योग्य नहीं हूं. मैं बेहतर अधिकारी हूं, लेकिन ऐसी जगह फंस गया, जहां से आगे कोई रास्ता नहीं जाता.'
यह व्यक्ति लगभग दो दशक पहले निजी जीवन में आए बदलाव से नाराज़, दुखी, असंतुष्ट है. उनकी सबसे अधिक नाराज़गी अपने प्रति है. जीवन के एक मोड़ पर अपने फैसले पर कायम नहीं रहने की कसक दिल में मैल की तरह जम गई. समय के साथ मैल धुल जाना चाहिए था, लेकिन उनके आसपास संवेदनशीलता की कमी से ऐसा संभव नहीं हुआ. जब जीवन में हम कोई फैसला करते हैं, तो चाहते हैं कि हमारे हाथ से कुछ फिसलने न पाए. अगर हम कोई नया रिश्ता चाहते हैं तो संभव है, उसका विरोध भी हमें सहना पड़े. लेकिन हम चाहते तो यही हैं कि हो हमारे मन का, विरोध न सहना पड़े. जबकि बिना विरोध के कुछ भी हासिल नहीं होता.
हम आज जो भी हैं, जहां भी हैं. उसमें सबसे बड़ी भूमिका हमारे विरोध सहने की क्षमता की है. संभव है, कुछ अपवाद हों लेकिन याद रखना होगा कि जीवन सामान्य नियमों से चलता है, अपवादों से नहीं. जीवन में किसी फैसले के लिए कभी देर नहीं होती. यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि हम चाहते क्या हैं? अगर हमारे चाहने में स्पष्टता है, तो हमारे फैसले में विरोध भले हों, लेकिन दुविधा नहीं होगी.
पुरानी चीज़ें, फैसले ऐसे जख्म हैं, जिनको जितना हम अपने मन के नजदीक रखेंगे, वह उतना ही मुस्कुराते रहेंगे. 'हंसते' ज़ख्म, दिल को बहलाने के लिए तो अच्छे हैं लेकिन जीवन के आगे बढ़ने की दिशा में गति अवरोधक की तरह हैं. दिल में जितनी कसक रहेगी, जिंदगी लाख कोशिशों के बावजूद पीछे की ओर लौटती जाएगी. अतीत के आंगन में बार-बार लौटने से जीवन में उत्साह की क्षमता कम होती है. खुद से भरोसा कमजोर होता है.
सुपरिचित कवि विनोद कुमार शुक्ल की कविता 'हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था' के साथ आपको छोड़े जाता हूं. जीवन में बहुत कुछ है जो केवल दृष्टिकोण से बदल जाता है.
'हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ
मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था
हम दोनों साथ चले
दोनों एक-दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे।'
जीवन की शुभकामना सहित...
-दया शंकर मिश्र
(Disclaimer: लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेख डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध लेखक की किताब 'जीवन संवाद' से लिया गया है.)
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