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राम तेरे काम!

 Newsbaji  |  Jan 21, 2024 02:34 PM  | 
Last Updated : Jan 21, 2024 02:34 PM
कैमरे के लिए तो कैमरे के लिए, रामलला के लिए भी मुख्य तो मोदी जी ही रहेंगे.
कैमरे के लिए तो कैमरे के लिए, रामलला के लिए भी मुख्य तो मोदी जी ही रहेंगे.

(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
विरोधियों ने मार दी ना राम काज में भी भांजी. बताइए, बेचारे केंद्र सरकार से जुड़े कर्मचारियों को अब सिर्फ आधे दिन में प्राण प्रतिष्ठा की खुशी समेटनी पड़ेगी. यूपी वालों को पूरे दिन की छुट्टी. एमपी में पूरे दिन की छुट्टी. छत्तीसगढ़ में, उत्तराखंड में पूरे दिन की छुट्टी. राजस्थान में पूरे दिन की छुट्टी. बस सीधे मोदी जी की सरकार के हुकुम से चलने वालों के लिए आधे दिन की छुट्टी. राम काज की छुट्टी में से भी आधी कटवा दी. इन बेचारों की तपस्या में ही कुछ कमी रह गयी गयी होगी, जो उन्हें ही राम काज हड़बड़ी में निपटाना पड़ेगा. काश, उन्हें भी दफ्तर-वफ्तर भूलकर फुर्सत से रामलला को निहारते हुए मोदी जी को निहारने का मौका मिलता.

पर बेचारे कर्मचारियों के राम काज में ये भांजी मारना तो कुछ भी नहीं है. इन विरोधी भांजीमारों ने तो मोदी जी तक के राम काज में भांजी मार दी. इनकी कांय-कांय के चक्कर में ही तो बेचारे मोदी जी, मुख्य से प्रतीकात्मक यजमान हो गए. नहीं, नहीं, मुख्य तो रहेंगे. ईवेंट प्राण प्रतिष्ठा का सही, मुख्य तो मोदी जी रहेंगे.

कैमरे के लिए तो कैमरे के लिए, रामलला के लिए भी मुख्य तो मोदी जी ही रहेंगे. आंखें खुलते ही रामलला जब दर्पण में देखेंगे, तो खुद को देखते हुए, मोदी जी को ही तो देखेंगे. फिर भी प्राण प्रतिष्ठा के कक्ष में पांच में से मुख्य होंगे, पर मोदी जी यजमान नहीं होंगे. शंकराचार्यों ने विधि-विधान का जो झगड़ा डाल दिया, उससे बेचारे मोदी जी की यजमानी चली गयी. मंदिर-मंदिर भटके.

सात्विक भोजन किया. सिर्फ नारियल का जल ग्रहण किया. कंबल बिछाकर जमीन पर सोए. गा-बजाकर पूरे ग्यारह दिन का कठिन तप किया. तब भी यजमान का आसन चला गया. साथ में बैठने को जसोदा बेन जो नहीं थीं. माने थीं, पर साथ बैठ नहीं सकती थीं. सिर्फ सपत्नीकता के चक्कर में किन्हीं मिश्रा जी की लाटरी लग गयी. सब करते-कराते भी मोदी जी की तपस्या में ही कोई कमी रह गयी होगी, तभी तो रीयल मुख्य होकर भी ऑफीशियल यजमान नहीं बन पाएंगे.

कहीं ऐसा नहीं हो कि चुनाव के टैम पर ये विरोधी, अपने लाने वालों को रामलला के पहचानने के टैम पर भी भांजी मरवा दें और उनसे उंगली पकड़कर लाने वालों को भी, कंधे पर लादकर लाने से इंकार करा दें. आखिर, लला तो भोले लला ही रहेंगे.  

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)

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