(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
देखा, आ गए ना पाकिस्तानी, रामलला के मंदिर के उद्घाटन में टांग अड़ाने के लिए. अब सीधे तो खैर रोकते क्या खाकर, पूरे हिंदुस्तान वाले सैकुलर मिलकर मंदिर वहीं बनना छोड़िए, पीएम का मंदिर का उद्घाटन करना तक नहीं रोक पाए. सो लगे ऐन मंदिर के उद्घाटन से पहले इंडिया उर्फ भारत को मुंह चिढ़ाने को. और मुंह भी कोई मोदी जी को नहीं, वह तो पक्के घड़े हैं; भारत के सुप्रीम कोर्ट को मुंह चिढ़ाने को. सोचते होंगे कि चंद्रचूड़ साहब ऐसी तिकड़मों से प्रभावित हो जाएंगे. अब यह मस्जिद गिराकर मंदिर वहीं बनाएंगे वाले देश को, खुशी के इस मौके पर मुंह चिढ़ाना नहीं तो और क्या है कि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने हुकुम दिया है कि खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में, करक जिले के केपी गांव में जिस हिंदू धार्मिक स्थल को तोड़ दिया गया था, उसे दोबारा बनवाया जाए!
और पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट इतने पर ही नहीं रुकी. जैसे हमारे हिंदू सुख का मजा किरकिरा करने के लिए ही, उसने यह हुकुम और जारी कर दिया कि मंदिर दोबारा बनाने का खर्चा, उस मौलवी और उसके अनुयाइयों से वसूल किया जाए, जिन्होंने हिंदू धार्मिक स्थल तोड़ा था. और पाकिस्तानी अदालत की जुर्रत देखिए, पट्ठे इसका प्रवचन भी कर रहे हैं कि परमहंसजी महाराज की समाधि तोड़े जाने से, पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी उठानी पड़ी है.
इशारा साफ है -- अयोध्या में जो हो रहा है, उसे हम भी राष्ट्रीय गर्व की चीज नहीं मान सकते. हमें भी ऐसी चीजों को राष्ट्रीय शर्म का मामला मानना चाहिए. मतलब यह कि एक धर्म-आधारित राज्य होकर पाकिस्तानी, हमें सेकुलर बनकर चिढ़ाना चाहते हैं! खैर! हम उनके चिढ़ाने से, उनकी नकल नहीं करने लग जाएंगे. हम अब और सेकुलर बनकर दिखाने के चक्कर में हर्गिज नहीं आएंगे. अयोध्या तो झांकी है, आगे-आगे मथुरा और काशी में भी, वहीं वाला मंदिर बनाएंगे! बल्कि और दूसरी बहुत सी जगहों पर भी!
और जब पाकिस्तान वाले वहींजी के मंदिर के श्रीगणेश में टांग अड़ाने आ गए, तो अपने यहां वाले तो कैसे चुप रह जाते. सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद के बारे में बोलने से मुंह बंद कर दिए, तो पट्ठे मंदिर में ही टांग अड़ाने लग गए. और बंदे क्या-क्या नहीं कह रहे हैं? मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में मोदी जी और भागवत जी का क्या काम है?
मंदिर तो पूरा बना नहीं, फिर अधूरे मंदिर में रामलला को बैठाने की जल्दी किसलिए -- चुनाव के लिए? मस्जिद में प्रकट होने के बाद से बेचारे रामलला एक पक्के ठिकाने का इंतजार ही कर रहे हैं. मस्जिद से निकले, तो तंबू में और अब तंबू से निकले, तब भी अधबनी इमारत में. और कब तक विस्थापन!
और यह भी कि जो रामलला मस्जिद में प्रकट हुए थे, उनका क्या हुआ? भव्य मंदिर, उन्हीं प्रकट भए लला का बनना था, पर अब उसमें रहेंगे कोई नये ही रामलला, जो सुना है कि कर्नाटक में बन रहे हैं. जिस लला ने चालीस साल से ज्यादा मस्जिद में काटे, तीस साल से ज्यादा तंबू में काटे, पक्के घर की बारी आयी तो उसे पीछे सरका दिया और नये को आसन पर बैठा दिया! और लॉजिक? सिर्फ इतना कि घर बड़ा है, तो रामलला भी बड़े चाहिए! बच्चा जानकर बेचारे रामलला को ही ठग लिया!
वैसे अगर ये ठगी है तो भी, इस ठगी में भी एक अच्छाई छुपी है. प्रकट वाले रामलला, मस्जिद में चुपके से प्रकट हो गए थे. चुनाव की छोड़िए, ठीक-ठाक बनाव-सिंगार के भी बिना. छियत्तर साल उन्हीं रामलला से काम चलाया, पर अब और नहीं. रामलला अब की बार फुर्सत से बनकर ही नहीं, बाकायदा इलैक्शन से चुनकर भी आ रहे हैं. तीन में से एक और वह भी वोटिंग से. और कहीं ऐसा हुआ है? डेमोक्रेसी की मम्मी हैं, भाई!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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