(आलेख: अशोक ढवले)
पिछले 10 वर्षों से, वर्ष 2014 से, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा-आरएसएस की सरकार का शासन, निष्पक्ष रूप से और निस्संदेह स्वतंत्र भारत के पिछले 77 वर्षों के इतिहास में अब तक का सबसे खराब शासन है. राष्ट्रीय जीवन के निम्नलिखित चार महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इसका प्रदर्शन इस बात को सिद्ध करता है. ये चार क्षेत्र हैं : 1. अर्थव्यवस्था, 2. भ्रष्टाचार, 3. लोकतंत्र और 4. धर्मनिरपेक्षता. आइए, इन सभी चारों क्षेत्रों पर एक नज़र डालते हैं.
आर्थिक दिवालियापन
भारत को 5 ट्रिलियन की जीडीपी के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की तमाम बड़ी-बड़ी बातों के बावजूद तथ्य यह है कि प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत 213 देशों में 147वें स्थान पर है. यह सबसे गरीब देशों के समूह में है और दुनिया की सबसे बड़ी गरीब आबादी का घर है.
विश्व में असमानता के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में, भारत की सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी के पास केवल 13 प्रतिशत हिस्सा है. ऑक्सफैम इंडिया ने वर्ष 2023 में अनुमान लगाया है कि शीर्ष 1 प्रतिशत भारतीयों के पास देश की 40 प्रतिशत संपत्ति है, शीर्ष 10 प्रतिशत के पास देश की 77 प्रतिशत संपत्ति है और निचले 50 प्रतिशत के पास राष्ट्र की संपत्ति का केवल 3 प्रतिशत हिस्सा ही है.
नीति आयोग की रिपोर्ट स्वयं यह स्वीकार करने के लिए मजबूर है कि भारत में 32 प्रतिशत लोगों को पोषण संबंधी अभाव का सामना करना पड़ता है, 44 प्रतिशत परिवारों के पास खाना पकाने का अच्छा ईंधन नहीं है, 30 प्रतिशत के पास उचित स्वच्छता का अभाव है और 41 प्रतिशत के पास पर्याप्त आवास नहीं है.
वर्ष 2016-17 में देश में लगभग 41.27 करोड़ लोग कार्यरत थे, जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कृषि से लेकर उद्योग और सेवाओं तक सभी प्रकार के रोजगार में शामिल थे. वर्ष 2022-23 में यह संख्या घटकर 40.57 करोड़ हो गई. यह 70 लाख से अधिक रोजगार का शुद्ध नुकसान है और यह केंद्र सरकार के वर्ष 2014 में प्रति वर्ष दो करोड़ नए रोजगार पैदा करने के आश्वासन के बावजूद है! मनरेगा के तहत 100 दिनों के काम की गारंटी के बावजूद, पिछले साल उपलब्ध किए गए औसत कार्य दिवस केवल 47 थे और मजदूरी मामूली थी -- लगभग 215 रुपये. यह सब मनरेगा पर व्यय में भारी सरकारी कटौती का परिणाम है.
सरकार की मूल्य वृद्धि की नीति से गरीबों को और अधिक लूटा गया है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जून 2014 और जनवरी 2024 के बीच, दूध और उसके उत्पादों की कीमतों में 53 प्रतिशत, अनाज और उसके उत्पादों में 54 प्रतिशत, दालों और उसके उत्पादों में 82 प्रतिशत, तेल और वसा में 48 प्रतिशत, सब्जियों में 48 प्रतिशत, मांस और मछली में 73 प्रतिशत, अंडे में 77 प्रतिशत और मसाले की कीमतों में 112 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
इसके अलावा, स्वास्थ्य देखभाल की लागत 71 प्रतिशत बढ़ गई है और शिक्षा 60 प्रतिशत महंगी हो गई है. कुल मिलाकर, इस अवधि में सामान्य मूल्य सूचकांक में लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कमजोर किया जा रहा है, जिससे लाखों लोगों को और अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
जानबूझकर कीमतें बढ़ाने में सरकार की सीधी भूमिका पेट्रोल और डीजल के मामले में देखी जा सकती है. हालांकि मई 2014 से फरवरी 2024 के बीच कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में 18 फीसदी की गिरावट आई है, लेकिन घरेलू स्तर पर पेट्रोल की कीमत 35 फीसदी और डीजल की कीमत 62 फीसदी बढ़ गई है. दोनों आज 100 रुपये प्रति लीटर के आसपास हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि मोदी सरकार ने भारी कर और शुल्क लगा दिए हैं. अनुमान है कि वर्ष 2014-15 और वर्ष 2023-24 की पहली छमाही के बीच पेट्रोलियम उत्पादों से वसूला गया कुल कर 28.33 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें से 82 प्रतिशत से अधिक केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए उत्पाद शुल्क के कारण था. रसोई गैस की कीमतें वर्ष 2014 में 400 रुपये से बढ़कर वर्ष 2024 में 1100 रुपये प्रति सिलेंडर हो गई हैं. गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय घरों की लाखों महिलाएं अपना सिलेंडर दोबारा भरवाने में सक्षम नहीं हैं.
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2014 से वर्ष 2022 तक आठ वर्षों में 1,00,474 किसानों और खेत मजदूरों ने आत्महत्या की है, जिनमें से बड़ी संख्या में आत्महत्या कर्ज के कारण थी. इस गंभीर त्रासदी के बावजूद, केंद्र सरकार ने कृषि ऋण का एक भी रुपया माफ नहीं किया, बल्कि इसके विपरीत अपने मुट्ठी भर पूंजीपति कॉरपोरेटों के 15 लाख करोड़ रुपये से अधिक के बैंक ऋण माफ कर दिए. यह कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती के अतिरिक्त है.
नवंबर 2016 में, मोदी सरकार ने काले धन को बाहर निकालने के लिए 86% मुद्रा का विमुद्रीकरण करके देश के साथ एक क्रूर धोखाधड़ी की है. इसके कारण अर्थव्यवस्था चरमरा गई, लाखों लोगों ने अपना रोजगार गंवा दिया और 99% नकदी बैंकों में वापस आ गई! वास्तव में, इस प्रक्रिया में कई लोगों ने अपनी नकदी के अवैध भंडार को आसानी से सफेद कर लिया. यह दिखावा तब पूरा हुआ, जब सरकार ने वर्ष 2023 में 2,000 रुपये के नए नोटों को प्रचलन से वापस ले लिया.
भारी-भरकम भ्रष्टाचार
चुनावी बांड के बारे में नवीनतम निंदनीय खुलासे -- भारतीय स्टेट बैंक और चुनाव आयोग की सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई आलोचना के बाद अनिच्छा से किए गए खुलासे -- से पता चलता है कि भाजपा को चुनावी बांड के माध्यम से 8,251.80 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि मिली है, जो अन्य पार्टियों को मिली सम्मिलित राशि से अधिक है. रिपोर्टों ने केंद्रीय एजेंसियों द्वारा छापे मारे जाने के कुछ दिनों बाद बांड खरीदने के लिए दौड़ने वाली कंपनियों के पैटर्न को भी स्थापित किया है. चुनावी बांड के माध्यम से दान देने वाली दर्जनों कंपनियां इस योजना के लागू होने के बाद ही अस्तित्व में आईं हैं और सबसे बड़े कई दानदाताओं ने अपने द्वारा अर्जित लाभ से कई गुना अधिक राशि का योगदान चुनावी बांड में दिया है. घाटे में चल रही कंपनियों द्वारा भी धन दान करने के मामले हैं! ऐसे भी मामले हैं कि कंपनियों को बांड में बड़ा दान देने के तुरंत बाद बड़े पैमाने पर आकर्षक ठेके मिल गए. इसलिए यह बदले की भावना और जबरन वसूली दोनों द्वारा चिह्नित भ्रष्टाचार के चरमोत्कर्ष को दर्शाता है.
अगर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला नहीं सुनाया होता कि पूरी योजना पारदर्शिता का उल्लंघन है और उसने एसबीआई और चुनाव आयोग को दानदाताओं और पार्टियों द्वारा प्राप्त राशि का विवरण प्रकट करने के लिए मजबूर नहीं किया होता, तो यह अभूतपूर्व घोटाला अब भी जारी रहता.
एक महत्वपूर्ण डायरी, जो जांच से बच गई, वह कथित तौर पर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा द्वारा लिखी गई है. प्रथम दृष्टया, इसमें भाजपा के वरिष्ठ राष्ट्रीय नेताओं को करोड़ों रुपयों के भुगतान का विवरण है. कुल रकम 1800 करोड़ रुपये बैठती है. शायद, इन प्रविष्टियों की सत्यता निर्धारित करने के लिए कोई जांच नहीं की गई है.
फिर टेम्पल एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड का दिलचस्प मामला है, जो अमित शाह के बेटे जय शाह की स्वामित्व वाली कंपनी है. इस अल्पज्ञात कंपनी का टर्नओवर वर्ष 2014-15 में मात्र 50,000 रुपये से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 80.5 करोड़ रुपये -- 16,000 गुना उछाल! -- हो गया. दिलचस्प बात यह है कि इसी अवधि में, रिलायंस इंडस्ट्रीज के वरिष्ठ अधिकारी परिमल नाथवानी के बहनोई राजेश खंडवाल के स्वामित्व वाली एक वित्तीय कंपनी ने शाह की कंपनी को 15.78 करोड़ रुपये का असुरक्षित ऋण दिया. क्या यह सरासर संयोग था? फिर भी इस मामले की कोई जांच नहीं होती.
यहां अमित शाह से जुड़ा एक और संयोग है. नोटबंदी के पांच दिनों के भीतर अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक में 745.59 करोड़ रुपये के पुराने नोट जमा हो गए. भारत के किसी अन्य जिला सहकारी बैंक को इतना धन नहीं मिला. इस बैंक में अमित शाह निदेशक थे.
सीधे तौर पर भाजपा नेताओं से जुड़े घोटालों के इन उदाहरणों के अलावा, भाई-भतीजावाद इस सरकार का मंत्र रहा है. मुकेश अंबानी के नियंत्रण वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) को फायदा पहुंचाने के लिए दूरसंचार क्षेत्र के नियमों में बार-बार बदलाव किया गया है. इससे भी अधिक गड़बड़झाला यह था कि मानव संसाधन मंत्रालय ने रिलायंस समूह द्वारा स्थापित किए जा रहे एक विश्वविद्यालय को "इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस" का टैग उस समय दिया, जब यह केवल कागजों में ही अस्तित्व में था.
अडानी समूह इस सरकार की उदारता का एक और प्रमुख लाभार्थी रहा है. एक के बाद एक घोटाले में इसका नाम बार-बार सामने आया है, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई. यहां तक कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा, जिसने यह खुलासा किया था कि किस तरह से अडानी समूह ने अपनी कंपनियों के शेयर की कीमतों में हेरफेर करने के लिए टैक्स हेवन में पंजीकृत मुखौटा कंपनियों का इस्तेमाल किया था. मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद से आज तक यह समूह फल-फूल रहा था. जांच एजेंसियों द्वारा जिन लोगों पर आरोप लगाए गए हैं, उनमें अडानी, एस्सार और अनिल अंबानी समूह भी शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग के बावजूद अभी तक कुछ नहीं हुआ है.
जिस तरह से विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और कई अन्य, ऋण चूक या सीधे-सीधे धोखाधड़ी के माध्यम से, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से हजारों करोड़ रुपये हड़पने के बाद विदेश भागने में कामयाब रहे, वह सर्वविदित है. जनता के आक्रोश ने सरकार को उन्हें न्याय के कठघरे में वापस लाने के लिए कदम उठाने के लिए मजबूर किया है, लेकिन परिणाम सबके सामने हैं.
हम राज्यों में भाजपा सरकारों के तहत हुए असंख्य घोटालों में नहीं जा रहे हैं. इसके लिए एक पोथी की आवश्यकता होगी. लेकिन भारत का हर भ्रष्ट राजनेता आज जानता है कि केंद्रीय एजेंसियों को अपनी पीठ से हटाने के लिए एक जादुई गोली है -- बस भाजपा में शामिल हो जाओ! भाजपा अब दुनिया की सबसे प्रभावशाली वॉशिंग मशीन बन गई है!
लोकतंत्र पर हमला
मोदी शासन में लोकतंत्र पर जितना व्यवस्थित हमला हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ. कई गंभीर टिप्पणीकारों ने कहा है कि आज हम भारत में अघोषित आपातकाल का सामना कर रहे हैं.
एक ज्वलंत उदाहरण गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) है, जिसे और अधिक कठोर बनाने के लिए वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था. वर्ष 2015-19 के बीच, यूएपीए के तहत गिरफ्तारियों में 72 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 98 प्रतिशत गिरफ्तार लोग बिना जमानत के जेल में रहे. वर्ष 2021 में यूएपीए के तहत 814 मामले दर्ज किए गए, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 1,005 हो गये.
8,947 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 6,503 को आरोप-पत्र में नामित किया गया. गिरफ्तार किए गए लोगों में राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, पत्रकार और असहमति व्यक्त करने वाले लोग शामिल हैं. यूएपीए के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार व्यक्तियों को जमानत मिलना व्यावहारिक रूप से असंभव है.
दूसरा हथियार रहा है राजद्रोह कानून. वर्ष 2018 से वर्ष 2022 तक राजद्रोह के 701 मामले दर्ज किए गए. सरकार की आलोचना करने वाले नागरिकों के खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामलों में से 96 फीसदी मामले वर्ष 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद दर्ज किए गए हैं. संसद में अपनाई गई नई आपराधिक संहिता में राजद्रोह की धारा को और अधिक कठोर सजा के साथ नये रूप में वापस लाया गया है.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा तैयार विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के अनुसार, भारत 180 देशों में 161वें स्थान पर आ गया है. मुख्यधारा के टेलीविजन और प्रिंट मीडिया को उनके कॉर्पोरेट मालिकों को प्रभावित करके नियंत्रित किया जा रहा है. हाल ही में पारित किए गए दूरसंचार अधिनियम, आईटी संशोधन नियम और प्रसारण विधेयक सभी सरकारी नियंत्रण और विनियमन को बढ़ाएंगे.
स्वतंत्र मीडिया और पत्रकारों को देशद्रोह की धारा और यहां तक कि यूएपीए के इस्तेमाल की धमकी दी जा रही है, जैसा कि न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ के साथ हुआ है और न्यूज़क्लिक के खातों को फ्रीज कर दिया गया है. पसंदीदा बड़े व्यापारिक घरानों द्वारा मीडिया पर संकेंद्रण और नियंत्रण के कारण मुकेश अंबानी 80 करोड़ की दर्शक संख्या वाले 72 टेलीविजन चैनलों के मालिक बन गए हैं. अडानी समूह ने मीडिया पर अपना स्वामित्व बढ़ाना भी शुरू कर दिया है.
मोदी और भाजपा का लक्ष्य संपूर्ण विपक्ष को दबाकर एकदलीय तानाशाही स्थापित करना है. इसके लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआई और आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्ष और विपक्षी दलों के नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है. वर्तमान में, विभिन्न विपक्षी दलों के कई नेताओं के खिलाफ ईडी/सीबीआई जांच और मामले चल रहे हैं.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे डाल दिया है. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया एक साल से अधिक समय से जेल में हैं. अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी सलाखों के पीछे डाल दिया गया है. केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांच और गिरफ्तारी के खतरे के कारण कई विपक्षी राजनेता भाजपा में शामिल हो गए हैं. भाजपा ने इन निंदनीय हथकंडों से शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों को विभाजित किया है.
विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के फोन में जिस प्रकार पेगासस स्पाइवेयर लगाया गया है, वह राज्य की सर्वव्यापी निगरानी को उजागर करता है. सरकार द्वारा निर्देशित इंटरनेट शटडाउन में भारत, दुनिया में सबसे आगे है. वर्ष 2022 में 84 ऐसे शटडाउन किए गए हैं. ये ब्लैकआउट आम तौर पर विरोध प्रदर्शन से पहले और उसके दौरान लगाए गए हैं.
धर्मनिरपेक्षता खतरे में
मोदी सरकार के दस वर्षों में धर्मनिरपेक्षता पर सबसे गंभीर हमले हुए हैं. 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन एक महत्वपूर्ण मोड़ था. राज्य प्रायोजित समारोह में प्रधानमंत्री ने यजमान की भूमिका निभाई. इस आयोजन में आरएसएस प्रमुख की उपस्थिति राज्य और धर्म के विलय का प्रतीक थी. इसने अन्य सभी धार्मिक आस्थाओं पर हिंदू धर्म को विशेषाधिकार देकर धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के बुनियादी उल्लंघन को भी चिह्नित किया है.
आरएसएस और हिंदुत्व की ताकतें अब काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में ईदगाह को मंदिर में बदलने का काम कर रही हैं. यह प्रशासनिक और न्यायिक मिलीभगत से और पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का उल्लंघन करके किया जा रहा है.
मोदी सरकार ने दिसंबर 2019 में संसद में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पारित कराया था. यह एक ऐसा अधिनियम है, जो नागरिकता को धार्मिक पहचान से जोड़कर नागरिकता की धर्मनिरपेक्ष अवधारणा का उल्लंघन करता है. इस कानून के तहत पड़ोसी देशों से बिना कानूनी दस्तावेज के प्रवास करने वाले अवैध लोगों को नागरिकता प्रदान की जाएगी, यदि वे हिंदू, सिख, बौद्ध या ईसाई धर्म के हैं, लेकिन मुस्लिम नहीं हैं. इस अधिनियम के तहत नियमों को लोकसभा चुनाव की अधिसूचना से कुछ दिन पहले 11 मार्च, 2024 को अधिसूचित किया गया है.
सीएए के साथ-साथ, मोदी सरकार जनगणना सर्वेक्षण में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अद्यतन करना चाहती है और नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर बनाना चाहती है, जिसमें नागरिकों के पूर्ववृत्त को सत्यापित करने के लिए अधिकारियों को अधिकार दिए जाएंगे, जहां फिर से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाएगा.
धारा-370 और धारा-35(ए) को निरस्त करना, जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा मनमाने ढंग से हटाना और वहां जारी राज्य दमन, धर्मनिरपेक्षता पर एक और गंभीर हमला है. उत्तराखंड विधानसभा ने एक समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को पारित किया है, जो अपनी प्रकृति में बहुसंख्यकवादी है और जो न तो कॉमन है और न ही सिविल. भाजपा की योजना अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी ऐसे कोड अपनाने की है.
मुस्लिमों की आजीविका के साधनों - पशु व्यापार और मांस की दुकानों - को निशाना बनाया जा रहा हैं और हिन्दू निगरानीकर्ता समूह उन पर गोहत्या या गोमांस बेचने का आरोप लगाते हैं. भाजपा शासित राज्यों में पारित कानूनों को मवेशी और मांस व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के लिए लागू किया जा रहा है. मॉब लिंचिंग में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. मुस्लिम विक्रेताओं या ऑटो-रिक्शा चालकों पर हमला किया गया है, इसलिए उन्हें अपने जीवन के साधनों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है. भाजपा शासित राज्यों में कथित अपराधों के आरोपी मुसलमानों के घरों पर बुलडोज़र चलाना एक नियमित घटना बन गई है. इस प्रकार, हाल ही में हरियाणा के नूंह में 1,208 इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया है.
यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) के मुताबिक, भारत में वर्ष 2023 में चर्चों और पादरियों पर 720 हमले हुए हैं. वर्ष 2014 में 147 हमलों की तुलना में वर्ष 2022 में ऐसे 509 हमले हुए हैं.
भाजपा शासन में दलितों, आदिवासियों और महिलाओं पर भयानक हमले हुए हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश में हाथरस और उन्नाव में दलित महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या और भाजपा सांसद द्वारा यौन उत्पीड़न के खिलाफ ओलंपिक विजेता महिला पहलवानों के आंदोलन ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. गुजरात की भाजपा राज्य सरकार द्वारा बिलकिस बानो के 11 हत्यारों और बलात्कारियों को छोड़ देना, भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ताओं द्वारा उनका बेशर्म स्वागत और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनकी पुनः गिरफ्तारी ने भाजपा को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है.
अब संसद के दोनों सदनों में भाजपा को दो-तिहाई बहुमत मिलने पर संविधान बदलने की स्पष्ट चर्चा है. यही मोदी के नारे "अब की बार, 400 पार" का असली कारण है.
संक्षेप में कहें तो, मोदी सरकार और भाजपा के सत्ता में बने रहने से गरीबों और मेहनतकश लोगों के सभी वर्गों पर और भी अधिक गंभीर हमले होंगे. इसका मतलब होगा कि घरेलू और विदेशी दोनों तरह के कॉरपोरेटों का और भी बड़े पैमाने पर विकास होगा. इसका मतलब होगा और भी अभूतपूर्व भ्रष्टाचार और घोटाले का होना. और, सबसे महत्वपूर्ण यह कि मोदी सरकार और भाजपा का सत्ता में बने रहना संप्रभुता, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और संविधान का अंत कर देगा. इसलिए आने वाले लोकसभा चुनाव में देश और देश की जनता के व्यापक हित में भाजपा-आरएसएस को हर हाल में हराना होगा!
(लेखक अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष हैं. संपर्क : 98694-01565)
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