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अब एक देश, एक आहार!

 Newsbaji  |  Apr 15, 2024 12:52 PM  | 
Last Updated : Apr 15, 2024 12:52 PM
पीएम मोदी ने कहा था कि सावन के मास में मांस खाना-पकाना बुरी बात है.
पीएम मोदी ने कहा था कि सावन के मास में मांस खाना-पकाना बुरी बात है.

(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
बेचारे मोदी जी ने बार-बार बताया है कि वह जो भी करते हैं, देश के लिए करते हैं. और देश में भी खासतौर पर उसकी एकता के लिए करते हैं. फिर भी विरोधी हैं कि विरोध करने से बाज नहीं आते हैं. ऊधमपुर में मोदी जी ने अपनी चुनाव सभा में क्या इतना ही नहीं कहा था कि सावन के मास में मांस खाना-पकाना बुरी बात है. नवरात्रि में मछली पकाना-खाना और भी खराब बात है, बल्कि पाप है. यह पाप छुपकर कोई करता है तो करे, पर मोदी जी के विरोधियों का वीडियो बनाकर सारी दुनिया को दिखा-दिखाकर, ऐसा पाप करना तो पाप का भी बाप यानी महापाप है. यह तो बाकी सभी पुण्यात्माओं को चिढ़ाना है, उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना है.

ये तो मुगलों वाले काम हैं. वे भी तो ऐसे ही पुण्यात्माओं को चिढ़ाने के लिए दिखा-दिखाकर मांस-मछली-अंडा खाया करते थे और राष्ट्रीय भावनाओं को आघात पहुंचाया करते थे. फिर भी मुगलों में चाहे हजार बुराइयां रही हों, पर एक काम उन्होंने कभी नहीं किया. उन्होंने मांस-मछली खाने का वीडियो कभी नहीं बनाया, कि सोशल मीडिया पर कोई वाइरल कर दे. वैसे मुगलों ने कभी तुष्टिकरण की राजनीति भी नहीं की, कि हिंदुओं को चिढ़ाया जाए और अपना वोट बैंक बढ़ाया जाए, वगैरह. तब ये इंडीवाले वोट के चक्कर में मुगलों से भी नीचे क्यों जा रहे हैं?

जाहिर है कि ऊधमपुर में जाकर मोदी जी ने यह सब इसीलिए कहा कि उन्हें देश की एकता की फिक्र है. उन्हें इसकी फिक्र है कि सावन में जब कुछ लोग मांस नहीं खाते हैं, तो कोई दूसरा भी मांस क्यों खाए? उन्हें इसकी चिंता है कि अगर नवरात्रि में कुछ लोग मछली-अंडा नहीं खाते, तो दूसरा भी कोई मछली वगैरह खाता नजर क्यों आए? जब खाएं तो सब खाएं, जब कोई खाए नहीं, तो कोई भी नहीं खाए. वर्ना राष्ट्र में विभाजन दिखाई देगा. उत्तर और दक्षिण, पूर्व और पश्चिम, हिंदी और गैर-हिंदी वगैरह के विभाजन तो पहले से ही हैं, अब मांसाहारी और शाकाहारी का विभाजन भी. यह एक और विभाजन मोदी जी के रहते हुए हो, यह मोदी जी को मंजूर नहीं है. कामनसेंस की बात है - एक और विभाजन आएगा, तो देश के दुश्मनों के ही काम आएगा.

पर क्योंकि मोदी जी कह रहे हैं, विरोधियों को इसमें भी खोट निकालना ही निकालना है. शोर मचा रहे हैं कि यह तो सब पर जबर्दस्ती शाकाहार थोपने की कोशिश है, वह भी ऐसे देश में जहां सत्तर फीसद से ज्यादा लोग किसी-न-किसी हद तक गैर-शाकाहारी हैं. यह तो एक देश, एक भाषा वगैरह के बाद, एक देश, एक आहार थोपने की कोशिश है. मोदी जी लोगों की रसोई में क्यों ताक-झांक कर रहे हैं कि कौन, कब, क्या खा रहा है, वगैरह, वगैरह!

पर हम पूछते हैं कि एक देश, एक आहार में बुराई ही क्या है? एकता धर्म की हो, एकता संस्कृति की हो, एकता भाषा की हो, एकता इतिहास की हो, एकता परंपरा की हो, एकता सुप्रीम नेता की हो, एकता राजगद्दी की हो या चाहे एकता परिधान की ही हो, एकता आखिरकार होती तो एकता ही है. फिर आहार की एकता में ही क्या बुराई है, जो इससे देश के बंट जाने का डर दिखाया जा रहा है.

सावन के एक महीने, दो नवरात्रों के बीस दिन और गांधी जयंती वगैरह को जोडक़र दस एक दिन और लगा लो; साल में दो, मुश्किल से दो महीने सिर्फ शाकाहारी रहने से कोई मर नहीं जाएगा. और हर चीज में नागरिक अधिकारों की दुहाई देने वाले तो इस मामले में अपना मुंह बंद ही रखें, तो बेहतर है. अधिकार क्या सिर्फ उन्हीं के हैं, जो दूसरे जानवरों को खाना चाहते हैं. क्या इस तरह खाए जाने वाले जानवरों के कोई अधिकार ही नहीं हैं?

कम-से-कम पवित्र दिनों-महीनों में जान-बख्शे जाने का अधिकार तो उनका भी बनता ही है. और मांसाहार नहीं करने वालों के अधिकारों का क्या? उनके किसी को मांसाहार करते हुए न देखने के अधिकार का क्या? अब प्लीज कोई यह न कहे कि न देखने के अधिकार के लिए आंखें बंद करने का अधिकार भी तो है! वीडियो के इस जमाने में, न देखने के लिए आंखें बंद करने लग जाएंगे, तो वो बेचारे तो कभी आंखें खोल ही नहीं पाएंगे. इससे आसान तो दूसरों को नहीं खाने देना ही पड़ेगा. पुण्य का पुण्य और एकता की एकता.

पर हम से लिखा के ले लीजिए, विरोधी जरूर इसका प्रचार करेंगे कि मोदी तो यह खाने के खिलाफ है, वह खाने नहीं देगा. विदेशी एजेंसियां भी आ जाएंगी, मांसाहारियों के अधिकारों के लिए मोदी के भारत में खतरा बताने के लिए. पर यह प्रचार ही झूठा है. कोई मांस खाए, मछली खाए या कुछ और खाए, मोदी जी को कोई दिक्कत नहीं है. उन्हें तो, कोई बीफ का कारोबार करे, तब भी कोई दिक्कत नहीं है. बीफ के व्यापारियों से चुनावी बांड में नवरात्र के टैम पर सैकड़ों करोड़ रुपए का चढ़ावा लेने में भी, मोदी जी को कोई दिक्कत नहीं है.

यहां तक कि खाने वाला गलत टैम पर भी खाए, तब भी चलेगा, बस छुप कर खाए. और वीडियो तो हर्गिज न बनाए. और वह भी इसलिए है कि गलत टैम पर खाया और उस पर वीडियो बनाया, तो जान-बूझकर राष्ट्र की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का, राष्ट्र को चिढ़ाने का इल्जाम तो आएगा ही आएगा. और अगर कोई विरोधी नेता ऐसा करता हुआ पकड़ा जाएगा, तो उसका गुनाह तुष्टीकरण का माना ही जाएगा. और मोदी जी और कुछ माफ कर भी दें, पर तुष्टीकरण कभी भी माफ नहीं किया जाएगा और उसे हर उस जगह चुनाव सभा में पीटा जाएगा, जहां शाकाहारी धार्मिक भावनाओं को सहलाने में फायदा नजर आएगा.

और विरोधियों का यह इल्जाम तो हास्यास्पद ही है कि मोदी जी मांस-मछली का मुद्दा तो इसीलिए उछाल रहे है जिससे उन्हें पब्लिक को महंगाई, बेरोजगारी जैसे सवालों पर जवाब नहीं देना पड़े. ये पब्लिक के मुद्दे नहीं, पब्लिक के मुद्दों से ध्यान बंटाने के बहाने हैं. ऐसा कुछ नहीं है. मोदी से जवाब लेने वाला आज तक कोई पैदा नहीं हुआ. जब दस साल में मीडिया वाले एक सवाल का जवाब नहीं ले पाए, तो पांच साल के चुनाव में पब्लिक ही क्या खाकर जवाब ले लेगी.

फिर ध्यान बंटाने को 2047 में विकसित भारत का सपना क्या कम है, जो मोदीजी मांस-मछली खाने वालों के पीछे पड़ेंगे. मोदी जी का मकसद तो एक देश, एक आहार ही लाना है. यहां से आगे एक कदम और - एक विचार. फिर तो एक गद्दी के पीछे एकता इतनी पक्की हो जाएगी, कि हिटलर के टैम की एकता उसके आगे छोटी पड़ जाएगी. क्या समझे!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)

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