(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
कोई कुछ भी कहे, हमें तो इसमें षडयंत्र दिखाई देता है. षडयंत्र भी छोटा-मोटा नहीं, अंतरराष्ट्रीय लेवल का. दुनिया में मोदी जी के भारत महान का मान-सम्मान घटाने का षडयंत्र. जब से मोदी जी की तीसरी पारी शुरू हुई है, पेपर लीक पर पेपर लीक हुए जा रहे हैं. पहले नीट में पेपर लीक का हल्ला मचा. बेचारे शिक्षा मंत्री सब चंगा सी से, थोड़ी-बहुत गड़बड़ी हो सकती है, तक ठीक से पहुंच भी नहीं पाए थे, तब तक यूजीसी-नेट में लीक का हल्ला मच गया. बल्कि हल्ला मचने की नौबत भी नहीं आयी. हल्ले के डर से ही पर्चा होने के फौरन बाद, इम्तहान रद्द हो गया. और अब सीआईएसआर-नेट को तो लीक का सीजन चल रहा होने को देखकर, डर के मारे परीक्षा से पहले ही टाल दिया गया.
और केंद्र में एनडीए के खरबूजे देखकर बिहार में एनडीए के खरबूजों को तो रंग बदलना ही था. इधर सीआईएसआर-नेट की परीक्षा, लीक के डर से परीक्षा होने से पहले ही टाली गयी, तो उधर बिहार में टेट की परीक्षा, लीक के डर से टाल दी गयी. नीतीश बाबू अब तीसरी पारी वाले मोदी जी को फॉलो करने में सबसे आगे हैं कि कहीं किसी को उनके फिर से पल्टी मारने की सोच रहे होने का शक नहीं हो जाए. बेचारे दो कदम आगे-पीछे हुए नहीं कि लोग एक और पल्टी के कयास लगाने लगते हैं.
खैर, नीतीश कुमार को छोड़कर पेपर लीक पर लौटें. इस तरह लीक पर लीक और वह भी तीसरी पारी में सिर मुंडाते ही ओले पड़े के अंदाज में, यह सब षडयंत्र के बिना हो ही नहीं सकता है. और मोदी जी के राज के रहते हुए षडयंत्र होगा तो, कम से कम इंटरनेशनल लेवल का तो होना ही चाहिए. आखिर, मोदी जी डंका भी तो इंटरनेशन लेवल पर ही पिटवा रहे हैं.
बेशक, ऐसा नहीं है कि मोदी जी की तीसरी पारी में ही अचानक पेपर लीक होना शुरू हो गया है. सच पूछिए, तो पेपर लीक की भी हमारी परंपरा बहुत पुरानी है. बल्कि हमारी प्राचीन परंपरा में तो बात पेपर लीक से आगे तक जा चुकी थी. गुरु द्रोणाचार्य वाली परीक्षा का नहीं सुना है क्या -- उन्होंने तो शिक्षार्थी की जाति के हिसाब से, पेपर, परीक्षा, सब कुछ बदलवा दिया था, यहां तक की गुरु दक्षिणा कलैक्शन का तरीका भी. एकलव्य को धनुर्विद्या-प्रवीण का सर्टिफिकेट तो दिया, पर बंदे का अंगूठा अपने पास जमा करा लिया. बंदा तीर चलाए, तो उसी पर जिस पर ब्राह्मण देवता चलवाना चाहें. वर्ना, अंगूठा रिलीज ही नहीं हो.
इस तरह रूप बदलते रहे हैं, पर पेपर लीक की अपनी परंपरा को हमने हाथ से छूटने नहीं दिया है. यहां तक कि मोदी जी की पहली और दूसरी पारी में भी पेपर लीक की परंपरा खूब फली-फूली थी. सुनते हैं कि मोदी राज ने सात साल में, पूरे सत्तर पेपर लीक का विश्व रिकार्ड बनाया है. मोदी जी विनम्रता के मारे अपने मुंह से चाहे कभी नहीं कहेंगे, भारत पेपर लीक का विश्व गुरु तो उनकी दूसरी पारी में ही बन चुका था.
शिक्षक भर्ती, पुलिस भर्ती, रेल भर्ती आदि-आदि भर्ती सेवाओं की परीक्षा और पेपर लीक की ऐसी पक्की सैटिंग बनी है कि नौजवानों ने मुगले आजम फिल्म का अकबर और अनारकली वाला प्रसिद्ध डॉयलाग अपने लिए कुछ इस तरह एडॉप्ट कर लिया है -- नौजवानों, परीक्षा पर परीक्षा तुम्हें चैन से बैठने नहीं देगी और पेपर लीक तुम्हारी परीक्षा को नौकरी तक पहुंचने नहीं देगा!
फिर भी तीसरी पारी वाले पेपर लीक की बात ही कुछ और है. इस बार की नीट में एनटीए ने पेपर लीक के नये-नये कीर्तिमान कायम किए हैं. यह पेपर लीक बहुत ही लोकतांत्रिक है. इस पेपर लीक ने बड़े-बड़े शहरों को छोड़कर पहली बार, छोटी-छोटी जगहों के परीक्षा केंद्रों में प्रतिभा के महा-विस्फोट कराए हैं और वह भी अलग-अलग दिशाओं में. हरियाणा के झज्जर कस्बे मेें, तो बिहार के छोटे से शहर में और गुजरात में गोधरा में तो बाकायदा गांव में. देश के दूसरे कोनों में भी ऐसे ही और केंद्र भी होंगे, जिनका पता धीरे-धीरे चलेगा. देश के कोने-कोने से बच्चे इन केंद्रों में आ रहे थे और पेपर लीक की सान पर अपने प्रतिभा चमका रहे थे. क्षेत्रीय विविधता भी और सामाजिक आदि विविधता भी, बस एक आर्थिक विविधता को छोडक़र. वैसे सुनते हैं थोड़ी-बहुत विविधता तो रेट में रही है, कहीं तीस लाख, तो कहीं चालीस लाख, पर मेडिकल में दाखिले की गारंटी पक्की!
मोदी जी ने जब से पब्लिक को गारंटी पूरी होने की गारंटी की चाट लगायी है, तब से पक्की गारंटियों का फैशन ही चल पड़ा है. और नीट, नेट वगैरह, परीक्षाएं कराने वाली एनटीए की पेपरलीक की गारंटी का तो खैर मोदी जी वाली गारंटी से पारिवारिक रिश्ता ही जुड़ता है. पिछले साल एनटीए के अध्यक्ष बनाए गए डा. प्रदीप जोशी में, ऐसी लीकयुक्त परीक्षाएं कराने की कुछ खास ही योग्यता है. वह मध्य प्रदेश में और बाद में छत्तीसगढ़ में पीएससी चेयरमैनी का अनुभव लेकर एनटीए तक पहुंचे हैं. और भर्ती परीक्षा निकायों के संचालक के उनके कैरियर की शुरूआत, आरएसएस के एक प्रचारक की छोटी सी पुर्जी से हुई थी, जो इसकी गवाही देती थी कि ये खांटी नागपुर परिवारी हैं. इन क्रेडेंशियल्स के साथ, नये कीर्तिमान कायम होने ही थे.
मध्य प्रदेश का व्यापमं छोटा पड़ गया, जब नीट ने पेपर लीक की अपनी और बड़ी लकीर खींच दी. और नीट का मामला धमाकेदार होना ही था. आखिरकार, नीट का नतीजा उसी दिन निकाला गया, जिस दिन मोदी जी के तीसरे चुनाव कार्यकाल का नतीजा आया. तीसरा कार्यकाल ऐतिहासिक है, तो इस मौके पर नीट कैसे नहीं इतिहास बनाता!
खैर! नीट के बहाने विरोधी जो मोदी जी की ‘‘परीक्षा पर चर्चा’’ को पेपर लीक से जोडऩे की कोशिश कर हैं, वह बिल्कुल गलत है. मोदी जी ने बार-बार की है, लगातार की है, पर हर बार सिर्फ और सिर्फ ‘‘परीक्षा पर चर्चा’’ की है. उसमें ‘‘पेपर लीक पर चर्चा’’ जरा भी नहीं है. और तो और इसकी चर्चा तक नहीं कि इस पेपर लीक के जमाने में, परीक्षा के लिए क्या करें और क्या न करें? यहां तक कि यह दलील भी सही नहीं है कि ‘‘परीक्षा पर चर्चा’’ पर मोदी जी ने अब तक जो कई करोड़ का खर्चा किया है, उसका सही उपयोग कर के क्या पेपर लीक को कम नहीं किया जा सकता था? बिल्कुल नहीं. पेपर लीक का धंधा हजारों करोड़ का होगा, परीक्षा पर चर्चा का कुछेक करोड़ का खर्चा तो उसके लिए ऊंट के मुंह में जीरा होगा. फिर भी, हो सकता है कि मोदी जी इस बार ‘‘परीक्षा पर चर्चा’’ को ‘‘पेपर लीक पर चर्चा’’ तक ले आएं. चर्चा अगर पेपर लीक की चल रही है तो पेपर लीक पर चर्चा सही; परीक्षा पर हो या पेपर लीक पर, मकसद तो चर्चा करते हुए दीखना है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और 'लोक लहर' के संपादक हैं.)
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