(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
थैंक्यू मोदी जी, उपहास की अदृश्य ढाल से हमारी सनातन आस्थाओं को बचाने के लिए. वर्ना इन विपक्ष वालों ने तो इस बार सीधे हमारी आस्थाओं की जड़ पर ही कुल्हाड़ी चला दी थी. बताइए, राहुल गांधी ने तो हमारे राम पर, राम की कथा पर ही हमला बोल दिया. कहने लगे कि यह गलत है कि लंका को हनुमान ने जलाया था. लंका को तो किसी मिस्टर अहंकार ने जलाया था. बताइए, हमारे पुरखे जो सैकड़ों साल से लंका जलाने के लिए हनुमान जी की जय-जयकार करते आ रहे हैं, जो बार-बार लंका कांड का पाठ करते आ रहे हैं, क्या नासमझ थे? हजारों वर्षों से जो हिंदू, लंका-दहन करने के लिए हनुमान जी को बाकायदा भगवान मानते आ रहे थे, गलत थे? और अब ये राहुल बाबा हमें बताएंगे कि हमारे हनुमान जी ने क्या-क्या नहीं किया था?
मान लिया कि दक्षिण वालों के बाल की खाल निकालने में उलझने के चक्कर में, कर्नाटक में हमारे हनुमान जी पिछले चुनाव में ज्यादा नहीं चले. खुद मोदी जी ने पहले बजरंग बली का जैकारा, उसके बाद वोट ही करने का टास्क दिया; पर ज्यादातर पब्लिक ने न तो जैकारा लगाया और न हनुमान जी ने मोदी जी की पार्टी के निशान के आगे, वोटिंग मशीन का बटन दबाया. लेकिन, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि कोई भी हमारे हनुमान जी के बारे में कुछ भी कहकर निकल जाएगा और भारत सहन कर जाएगा. दक्षिण फिर भी दक्षिण है, असली भारत तो विंध्य से नीचे का भारत है, जहां महाभारत हुई थी और रामायण लिखी गयी थी. और यह असली भारत कभी स्वीकार नहीं करेगा कि रावण की लंका को जलाने का कारनामा, हमारे हनुमान जी से छीनकर, किसी और के नाम कर दिया जाए.
फिर भी, सिर्फ हनुमान जी की कथा में नया ट्विस्ट लाने की शरारत तक ही मामला रहता, तो शायद हम बर्दाश्त कर भी लेते. आखिर हम सनातन वाले, हैं तो बहुत सहिष्णु टाइप के लोग. कितनी ही बातें हम अनसुनी भी कर देते हैं. बल्कि हम तो कहते हैं कि जो हनुमान को भगवान माने उसका भी भला, नहीं माने उसका भी भला. पर राहुल बाबा तो हनुमान जी की कहानी झूठी बताने से भी आगे चले गए. कह दिया कि रावण को राम ने नहीं मारा था. उसे भी किसी अहंकार ने मारा था. यानी हनुमान तो हनुमान, राम की कहानी भी झूठी है. यानी बाल्मीकि से लेकर तुलसीदास तक, सब झूठ बोल रहे थे.
जो रामकथा घर-घर में गीता प्रेस ने सौ साल में छाप-छापकर पहुंचायी और जिसने उसे मोदी जी के कर कमलों से गांधी शांति पुरस्कार की प्रतिष्ठा दिलाई, वे सब झूठे हैं. और जो हर साल दशहरे पर मोदी जी, बुराई का पुतला बताकर, राम जी की तरफ से रावण के पुतले पर तीर चलाते हैं और रिमोट से तीन-तीन पुतले जलाते हैं, तो क्या वह भी नाटक-नौटंकी है. या कहीं यह कहने की कोशिश तो नहीं की जा रही है कि मोदी जी जब दशहरे के रावण पर तीर चलाते हैं, तो राम जी बनकर नहीं, अहंकार जी बनकर तीर चलाते हैं! मोदी जी को नीचा दिखाने के लिए, ये विपक्ष वाले कितने नीचे उतरेंगे!
खैर, मोदी जी ने साफ कह दिया कि सनातन आस्थाओं के साथ कोई छेड़-छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी. सत्तर साल में बर्दाश्त की गयी, तो की गयी. नेहरू-वेहरू के टैम में हो गयी, तो हो गयी. पर अब सनातन आस्थाओं से रत्ती भर छेड़-छाड़ बर्दाश्त नहीं होगी. उल्टे अगर किसी ने ऐसी कोशिश की तो, उसे ऐसा मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा, ऐसा मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा, कि हिंदी वाली नयी न्याय संहिता के लपेटे से जिंदगी भर निकल नहीं पाएगा.
बेशक, ऐसी जुर्रत करने वाले के घर पर बुलडोजर भी भेजा जा सकता है, बल्कि भेजा ही जाएगा. लेकिन, बुलडोजर ही कोई एकमात्र प्रतिकार नहीं है. एनएसए या यूएपीए में जेल में भी डाला जा सकता है. सुनते हैं, नयी संहिता में ऐसा मामला गोरक्षकों द्वारा भी संभाला जा सकता है. जो गो-माता की खातिर खुशी-खुशी लिंचिंग कर सकते हैं, पिता से बढक़र भगवान राम के सम्मान की रक्षा के लिए क्या-क्या कर सकते हैं, इसका तो सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है.
खैर, किस्सा मुख्तसर ये कि मोदी जी ने इशारों-इशारों में ही सही, पर खुल्ला बोल दिया कि किसी को भला लगे या बुरा, हम अपने पुराणों को नहीं बदलने देंगे. इतिहास थोड़े ही है कि सरकार बदलते ही अकबर हार जाये, राणा प्रताप लड़ाई के बाद पॉइंटों के स्कोर मैं जीत जाये. कोई अहंकार-फहंकार नहीं, लंका तो हमारे हनुमान जी ही जलाएंगे. यही आज है, यही कल होगा और यही हमेशा-हमेशा रहेगा, रहती दुनिया तक. और रावण को भी मारेंगे हमारे भगवान राम ही. चोर दरवाजे से रामकथा में किसी अहंकार नाम के नये करैक्टर की एंट्री कराने की कोशिश हर्गिज-हर्गिज स्वीकार नहीं की जाएगी. फिर ये कहानी में एक फालतू करैक्टर की एंट्री कराने भर का मामला थोड़े ही है.
रावण को राम मारेंगे नहीं, तो बुराई पर अच्छाई की जीत की प्रेरणा आगे कैसे चलेगी? मारेंगे नहीं, तो रावण पर राम की जीत कैसे होगी? क्या हृदय परिवर्तन से? देखा, कैसे बड़ी चतुराई से हिंदुओं के भगवानों को और भगवानों के बहाने एकतरफा मोनू मानेसरों को ही, निरस्त्र करने की कोशिश की जा रही है. जब शत्रु का संहार ही नहीं करना है, तो हाथ में शस्त्र लेने की क्या जरूरत है -- पुष्प या वीणा की तरह शोभा के लिए! हमारे राम, धनुष-बाण छोडक़र मुरली थामने वालों में से नहीं हैं. धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा ली है, अब हमारे राम से मर्यादा पुरुषोत्तम टाइप तो छोडि़ए, रामलला बनकर भी रहने की उम्मीद कोई नहीं करे. भगवा सैनिकों ने मुश्किल से सीताराम से, श्रीराम बनाया है, दोबारा सियाराम बनना चाहेंगे, तो भी अब नहीं बनने दिया जाएगा.
पर एक बात समझ में नहीं आयी. मोदी जी को राहुल गांधी के प्रति इतनी नरमी दिखाने की क्या जरूरत थी? राम ने रावण को नहीं मारा -- यह तो सीधे भगवान राम की बेअदबी का मामला है. साथ में हनुमान जी की बेअदबी भी. यानी सीरियल बेअदबी. फ्लाइंग किस ऊपर से. फिर, चुनाव भी अब बहुत ज्यादा दूर तो नहीं हैं. तब चार सौ से चालीस रह जाने के उपहास की हल्की-सी चपत लगाकर ही कैसे छोड़ दिया! अपनी बेअदबी को मोदी जी बर्दाश्त करते हैं, तो कर लें, पर भगवान राम की बेअदबी...! बेअदबी के लिए, कम-से-कम माफी की मांग तो बनती ही बनती थी.
और जाहिर है कि आगे-आगे चुनावी मुकद्दमा भी. मणिपुर वालों के क्रंदन से वाकई बहुत विचलित हो गए लगते हैं, अपने मोदी जी. जिगर के टुकड़े का मामला जो ठहरा. अब प्लीज कोई ये गणित मत लगाने लग जाना कि जिगर के टुकड़े को दो घंटा तेरह मिनट के भाषण में कुल चार मिनट, तो मणिपुर जिगर का टुकड़ा न होता, तो क्या होता? होता क्या, ये वाले चार मिनट भी नेहरू, इंदिरा, राजीव की गलतियों के बखान की भेंट चढ़ते. पर मोदी जी समापन भाषण की लंबाई का रिकार्ड बनाने का मौका, इस बार हाथ से हर्गिज नहीं जाने देते. आखिर अविश्वास का क्या विश्वास, अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देने का मौका फिर कभी मिले न मिले!
(इस व्यंग्य के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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