(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
आजमगढ़ वालों ने भी क्या नसीब पाया है! निरहुआ जी जैसी प्रतिभा को एक बार चुन ही नहीं चुके हैं, मोदी जी से ऐसी प्रतिभा को दोबारा चुनने का मौका भी झटक लाए हैं. हमें यकीन है कि वे 2019 वाली गलती हर्गिज नहीं दोहराएंगे और उन्हें चुनने का मौका हाथ से हर्गिज नहीं जाने देंगे. वैसे तो सब यूपीवाले ही बहुत खुशनसीब हैं. मोदी, योगी, दोनों उनके नसीब में हैं. पर आजमगढ़ वालों की बात ही कुछ और है. दिनेशलाल यादव उर्फ निरहुआ जी जैसा जीनियस बाकी यूपी वालों को भी कहां नसीब है.
पट्ठे ने न दिमाग पर जोर डालने की मुद्रा बनायी और न किसी तरह के आंकड़ों-वांकड़ों की जरूरत बतायी. नाचते-गाते ही चुटकियों में देश को बेरोजगारी की उस समस्या का परमानेंट समाधान बता दिया, जिसका समाधान राम जी झूठ न बुलाएं, महाराज मोदी जी भी नहीं खोज पाए थे. और समाधान भी एकदम सिंपल. मोदी जी, योगी जी का दिखाया रास्ता अपनाओ, राजा निरबंसिया बनकर दिखाओ. न होगी औलाद और न होगी रोजगार की जरूरत. नौकरी-वौकरी की मांग का सवाल ही नहीं उठेगा.
वैसे शायद यह कहना भी पूरी तरह से सही नहीं होगा कि मोदी जी बेरोजगारी का यह वाला समाधान खोज ही नहीं पाए थे, जो अब निरहुआ जी ने देश को दिखाया है. वर्ना मोदी जी, योगी जी वगैरह खुद यह समाधान क्यों अपनाते? आखिर, उन्होंने बेरोजगारी के समाधान का अपना वाला मॉडल कुछ सोच कर ही अपनाया होगा. फिर भी, जैसे न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज का क्रेडिट दिया जाता है, वैसे ही निरहुआ जी को बेरोजगारी के अपने बुनियादी समाधान की खोज का क्रेडिट तो देना ही होगा.
अब सेब को पेड़ से गिरते तो न्यूटन से पहले भी न जाने कितने लोगों ने देखा होगा. पेड़ से गिरते सेब को और ऊपर से गिरती चीजों को लपका भी बहुतों ने होगा. पर बिना सोचे-समझे किसी समाधान का व्यवहार करते रहना एक बात है, योगी जी, मोदी जी की तरह पहले भी बहुतों ने ऐसा किया होगा; पर समाधान का सिद्घांत खोजकर निकालना और ही बात है.
हां! यह दूसरी बात है कि यह मोदी जी के राज के दस साल का ही कमाल है कि निरहुआ जैसा जीनियस निकलकर सामने आ सका और बेरोजगारी जैसी असाध्य लगने वाली समस्या का, अपना परमानेंट समाधान पेश कर सका. कम-से-कम अब मोदी जी से कोई साल के दो करोड़ रोजगार मांगने नहीं जाएगा. जवाब सब को पहले ही पता है -- दो करोड़ रोजगार चाहिए, तो दो करोड़ बच्चे पैदा मत करो. रोजगार देेने और मांगने का तो लफड़ा ही मिट जाएगा.
और निरहुआ जी की महान खोज में सिर्फ बेरोजगारी ही नहीं, परिवारवाद, भ्रष्टाचार जैसी और कई समस्याओं का भी समाधान है. जब परिवार ही नहीं होगा, तो परिवारवाद कहां से आएगा. जब बांस ही नहीं होगा, तो बांसुरी कहां से बजेगी. और अगर परिवार ही नहीं होगा, तो बंदा भ्रष्टाचार करेगा भी, तो किस के लिए? आखिर में तो सब यहीं पड़ा रह जाएगा.
यूपी के ही महेशचंद्र शर्मा इसीलिए तो कह रहे हैं कि जो मोदी-योगी को अपना नहीं समझता, अपने बाप को भी अपना नहीं समझता. आखिर, असली पिता तो मोदी जी, योगी जी ही हैं. वल्दियत के खाने में नाम वाले पिता न सही, फिर भी पिता वही हैं. मामूली पिता नहीं, परमपिता! पिता नहीं हैं, ताकि बेरोजगारी वगैरह के परमानेंट समाधान का मॉडल पेश कर सकें, फिर भी वे ही असली पिता हैं. भाई वाह! व्हाट एन आइडिया सरजी!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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