(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
देखा, मोदी जी के विरोधियों की कैसे फूंक सरक गई. पहले तो बड़ा शोर करते थे कि ये मदर ऑफ डेमोक्रेसी किस चिड़िया का नाम है! मोदी जी के राज में पब्लिक के लिए तो सिंपल डेमोक्रेसी के लाले पड़े हुए हैं और मोदी जी यह मनवाने पर और जो नहीं मानते हों, उनसे भी गला दबाकर कम-से-कम मुंह से यह कहलवाने पर तुले हुए हैं कि देश में डेमोक्रेसी की मम्मी जी आयी हुई हैं! आयी हुई हैं, यानी डेमोक्रेसी की मम्मी जी छाई हुई हैं. विरोधी दिन-रात ताने मारा करते थे कि डेमोक्रेसी की मदर में डेमोक्रेसी तो जरा भी नहीं है, बस मदर ही मदर नजर आती है. और मदर भी पुरानी फिल्मों की निरूपा राय वाली नहीं, बल्कि हूबहू ललिता पवार वाली मदर.
कश्मीर वालों को तो चार साल से सौतेली मदर दिखाई दे ही रही थी, मणिपुर वालों को भी पिछले करीब छह महीने से तो सौतेली मदर वाली फीलिंग आ ही रही है. हमदर्दी में कुछ-कुछ मिजोरम वालों को भी, जिसके चक्कर में नौ साल में पहली बार एक राज्य में चुनाव हो गया और मोदी जी को वीडियो संदेश पर ही गुजारा करना पड़ गया. दूसरे राज्यों में भी ऐसा हो जाए, तो मोदी जी तो बिल्कुल बेरोजगार ही हो जाएं.
मुसलमानों, ईसाइयों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और अब तो पिछड़ों को और हां, नौजवानों को भी, बाकायदा सौतेली मदर वाली ही फीलिंग आ रही है. मोदी जी डेमोक्रेसी की ये कैसी मदर जी लाए हैं कि बस अडानी जी-अंबानी जी वगैरह को ही, रीयल मदर वाली फील आ रही है; वगैरह, वगैरह. पर अब....
अब...विरोधी चुनाव आयोग से शिकायतें करते घूम रहे हैं कि मोदी जी ने तो डेमोक्रेसी की मदर जी को बहुत ही डेंजरस बना दिया है. वह तो लोगों से वोट भी ऐसे डलवाना चाहती है, जैसे मोदी के विरोधियों को फांसी दे रहे हों. जी हां, न एफआईआर, न मुकद्दमा, सीधे फांसी! मदर जी कह रही हैं कि इस बार मशीन का बटन ऐसे दबाना, जैसे मोदी जी के विरोधियों को फांसी दे रहे हो.
कहते हैं, यह तो नफरत फैलाना हो गया, जी! वैसे यह पहली बार नहीं है, जब वोटिंग मशीन के बटन से सीधे मारकाट कराने की बात हो रही है. इससे पहले, दिल्ली के चुनाव के टैम पर मोदी जी के नंबर टू ने, इतने कसकर बटन दबाने की मांग की थी कि उसका झटका शाहीनबाग में जाकर लगे. यह दूसरी बात है कि एक और नौजवान मंत्री जी, जिनका नंबर पता नहीं जाने कौन सा है, इस मामले में मिस्टर नंबर-टू से भी आगे निकल गए. वो वोटिंग मशीन के भरोसे भी नहीं रहे और सीधे ‘‘गोली मारो’’ की पुकार कर आए.
और ये तो सिर्फ चंद मिसालें हैं, जो फौरन ध्यान में आ रही हैं. याद आ रहा है कि 2014 के चुनाव से भी पहले, शाह साहब ने, जो तब तक नंबर टू भी नहीं हुए थे, शामली-मुजफ्फरनगर में ऐसे ही वोटिंग मशीन का बटन दबाकर, 2013 के दंगे के काम को आगे बढ़ाने की राह दिखाई थी. यानी जब से मोदी जी आए हैं और जब से सिंपल डेमोक्रेसी की जगह, उसकी मदर जी को लाए हैं, तब से वोटिंग मशीन यूं ही आग उगल रही है और कभी करेंट, तो कभी गोली और कभी फांसी के आदेश दे रही है.
पर इसमें प्राब्लम क्या है? वोटिंग मशीन सिंपल वोट तो सिंपल डेमोक्रेसी में भी डलवा ही लेती है. बटन दबाने से सिंपल वोट ही पड़ता रहे, तो इसमें मदर ऑफ डेमोक्रेसी वाली क्या बात हुई? सिंपल वोट तो डेमोक्रेसी के सन-डॉटर वगैरह भी डलवा ही लेते हैं. मदर ऑफ डेमोक्रेसी में वोटिंग मशीन का बटन दबाने से एस्क्ट्रा एबी की तरह, कुछ तो एक्स्ट्रा होना बनता ही है -- फांसी या गोली या वह भी नहीं, तो कम से कम करेंट.
बेचारा चुनाव आयोग चकराया घूम रहा है कि विरोधियों की शिकायत का करे तो, करे क्या? सिंपल वोटिंग मशीन का बटन दबाने से इतना कुछ एक्स्ट्रा कराने के लिए, मोदी जी और उनके संगी-साथी सजा के हकदार हैं या पुरस्कार के? खैर! सिर्फ विपक्ष वालों के कहने से, चुनाव आयोग डेमोक्रेसी में एक्स्ट्रा जोड़क़र दिखाने वालों का तिरस्कार तो नहीं ही करने जा रहा है. मोदी जी अगर डेमोक्रेसी को सिंपल से मदर बना रहे हैं, चुनाव आयोग का भी तो दर्जा उठा रहे हैं और उसे भी तो सिंपल चुनाव आयोग से, मदर ऑफ डेमोक्रेसी का चुनाव आयोग बना रहे हैं. उनके तिरस्कार की कृतघ्नता चुनाव आयोग हरगिज नहीं करेगा.
और सबसे बड़ी बात यह कि विपक्ष वालों का यह इल्जाम खुद दिखाता है कि मोदी जी और उनके संगियों की डेमोक्रेसी में निष्ठा कितनी गहरी है. इस जमाने में कौन है वोट की ताकत में ही इतना यकीन करने वाला, जो वोट की मशीन के बटन से ही फांसी, गोली, करेंट, सब का काम लेने की कल्पना करता हो. मोदी जी सचमुच बहुत बड़े भविष्यचेता हैं. और कितने अहिंसक भी -- सारे के सारे हिंसक काम, वोटिंग मशीन के पूरी तरह से अहिंसक बटन को दबाने से होने के आदर्श की कल्पना करने वाले.
कम से कम कोई साधारण मनुष्य तो ऐसी कल्पना नहीं ही कर सकता है. खैर! मोदी जी के देवत्व की बात अगर छोड़ भी दें तो भी, उनका डेमोक्रेसी को मदरत्व देना एक अटल सचाई है. यहां डेमोक्रेसी में फांसी दो है, यहां गोली मारो है, यहां करेंट लगाओ -- यही तो मदर ऑफ डेमोक्रेसी है, प्यारे!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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