(व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)
विपक्ष वालों की ये शिकायत ठीक नहीं है कि ये चुनाव का सीजन नहीं, भगवा पार्टी की विपक्षी नेताओं की खरीददारी का सीजन है. डबल इंजन वाले जब भी पार्टी दफ्तर से बाहर निकलते हैं, दूसरी पार्टियों के पूर्व और अभूतपूर्व नेताओं को अपने झोले में डालकर ही बाजार से लौटते हैं. बस फिर पट्टा दान, माइक दान या टिकट दान; जैसी जिसकी औकात हो!
पर विपक्ष वालों की गलती नहीं है कि उन्हें इस सब में सिर्फ खरीद-फरोख्त दीख रही है, दल-बदल दीख रहा है. उनकी सोच ही इतनी नेगेटिव है. वर्ना सारा देश देख रहा है कि देश में अभी ‘मैं भी परिवार’ का सीजन चल रहा है. लालू जी ने मोदी जी को उनके भूले हुए परिवार की जरा-सी याद क्या दिला दी, देश भर में खुद को मोदी का परिवार घोषित करने की होड़ लग गयी है.
आखिरकार, मोदी जी के कहने पर 140 करोड़ लोग उनका परिवार के बनने को भले खड़े न हों, कम से भक्त हजारों में तो खड़े हो ही सकते हैं. जब पिछले चुनाव से पहले खुशी-खुशी ‘मैं भी चौकीदार’ बोलकर हाजिरी देने के लिए खड़े हो गए थे, ‘मैं भी परिवार’ का एलान करना उससे तो बेहतर ही है. अब कहें लालू जी कि मोदी जी का परिवार नहीं बना या छोटा ही रह गया.
मोदी जी की पार्टी वाले दूसरी-दूसरी पार्टियों से नेताओं को इसीलिए पकड़-पकड़ कर ला रहे हैं; उनसे मैं भी परिवार का एलान करा रहे हैं; हर रोज मोदी जी का परिवार बढ़ा रहे हैं. और तो और, ईडी, सीबीआइ वगैरह को भी लगा रहे हैं ; भक्तों को तो छोड़ दो, एक-एक विपक्ष वाले से, मैं भी मोदी का परिवार कहलवा रहे हैं.
और कुछ परिवार वाले ऐसे हैं, जो खाली-पीली बोल ही नहीं रहे हैं, मैं भी परिवार बनकर दिखा रहे हैं. स्टेट बैंक का ही देख लो, सुप्रीम कोर्ट का हुकुम टाल दिया और की होल के पीछे बैनर लगा दिया- मैं भी मोदी परिवार! और कोलकाता हाई कोर्ट के एक जज साहब तो खुद को मोदी का परिवार साबित करने के लिए नौकरी ही छोडक़र आ गए. अब की बार, मैं भी मोदी परिवार!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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