एक बार फिर ये आंखें विध्वंस देख रही हैं. एक बार फिर त्रासदी की खबरें लिखी जा रही हैं. हर तरफ़ हमला… धमाका… मौत जैसे शब्दों ने डेरा जमा लिया है. जिन्हें प्रेम सीखना था वे अब सीख चुके हैं कि कैसे किसी जंग की कहानी लिखनी है.
मैं कि जैसे ख़ुद को यूक्रेन की सबसे ज़ियादा तबाह हुई जगह पर खड़ा पाता हूं, रूस से दागी गईं मिसाइलों में भरे बारूद की महक ने सांस लेना मुश्किल कर दिया है, आंखों में जलन है, अधखुली हैं.
चीख पुकार के बीच मैं सोच रहा हूं कि मुझे अभी प्रेम करना सीखना था, और लिखनी थी दुनिया की सबसे सुंदर प्रेम कहानी जिसे आने वाली पीढ़ी अपने दादा दादी से सुनते. मुझे लिखनी थी एक कहानी जिसमें मेरी प्रेमिका की आँखों को मैं दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत रास्तों का नाम देता जिनसे होकर प्रेम की दुनिया में ज़ाया जा सकता था.
लेकिन नहीं… यूँ हो न सका! और एक बार फिर मैं आज लिख रहा हूँ तबाही का गीत. कितना कुछ लिखने था, लेकिन ये मैं क्या लिख रहा हूँ. सोच रहा हूँ कि हर बार ये क्या लिखने लगता हूँ, सालों पहले मैंने अपने शोक को लिखा था, फिर दिल्ली की बारी आयी और अब यूक्रेन. शायद मुझे प्रेम कहानी नहीं शोकगीत लिखने हैं.
शायद यही सच है कि मुझे भ्रम में जीना होगा.
सीरिया की तबाही को हर किसी ने देखा होगा, लेकिन वहाँ तकलीफ़ और चीख़ों को सुनती एक दीवार पर अरबी में लिखा, ‘एक दिन जब युद्ध समाप्त हो जाएगा, मैं कविता में लौट जाऊँगा’ नहीं पढ़ा होगा. क्योंकि अगर यह पढ़ लिया गया होता तो दुनिया में सिर्फ़ कविता होती, एक ऐसी कविता जिसका नायक मैं होता और मेरी नायिका मेरी आँखों पर अपनी हथेलियाँ रख कर सवाल कर रही होती कि बताओ तो ज़रा मैं कौन हूँ? और मैं जवाब देता- मेरी कविता, जहां मैं एक भीषण युद्ध और त्रासदी के बाद लौट आया हूँ, हमेशा हमेशा के लिए.
-अस्तित्व
(Disclaimer: लेखक जाने-माने पत्रकार व बुक ऑथर हैं. वे सोशल मीडिया पर बेबाकी से खुले खत लिखने के लिए भी जानें जाते हैं. यह खत उनका का फेसबुक पोस्ट है. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह हैं. इसके लिए Newsbaji किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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