छत्तीसगढ़ में 15 साल के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ. नवा छत्तीसगढ़ के नारे बुलंद हुए. राज्य के विकास के लिए तमाम घोषणाएं की गईं. गोबर बेचकर आमदनी से लेकर आदिवासी इलाकों के वनोत्पाद को अर्बन-मार्केट तक लाने की स्कीम पर काम शुरू करने का दावा किया गया. मगर कांग्रेस सरकार के 4 साल के शासन के बाद कौन-कौन सी स्कीम छत्तीसगढ़िया समाज के लिए फायदेमंद रही, इसकी गिनती करना कठिन होगा.
उदाहरण के तौर पर, डिजिटल पत्रकारिता के दौर में छत्तीसगढ़ की लाल चींटी की चटनी की जानकारी आपको विभिन्न अखबारों और चैनलों की वेबसाइट या टूरिज्म पोर्टलों पर तो मिल जाएगी, कई बार ट्रेड-फेयर या व्यापार मेले जैसे आयोजनों में इसकी झलक भी दिख जाएगी, लेकिन क्या सरकार ने कभी गंभीरता से राज्य की इस खासियत को देश के अन्य राज्यों तक पहुंचाने का काम किया? इसका जवाब शायद ना ही होगा.
आज देश से लेकर दुनियाभर में विभिन्न उत्पादों को GI टैग देने-दिलवाने का काम होता है, क्या राज्य सरकार अपने उन उत्पादों का नाम गिनवा सकती है जिन्हें पिछले 4 साल में ये टैग मिला हो. दुनिया लोकल से ग्लोबल हो रही है, यह पिछले दो दशकों से हम सुनते आ रहे हैं. मगर देश के मूल निवासी कितने ग्लोबल हो पाए हैं, उनके ऊपर से ‘लोकल’ होने का ठप्पा सरकारें कितना हटवा पाई हैं, इस पर सोचना तो चाहिए.
-अज्ञात
(Disclaimer: एक लेखक ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर छत्तीसगढ़ सरकार के नाम खुला खत भेजा है.)
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