गैर-जरूरी!
कहना मुश्किल है, तोते ने हमसे रटना सीखा, हमने तोतों से सीखा! लेकिन इस समय दोनों बराबरी पर खड़े हैं. अगर ऐसी प्रतियोगिता हो सके जिसमें इस बात का पता लगाया जा सके कि दोनों में से कौन अधिक तेजी से रट सकता है, जीवन भर दोहरा सकता है तो संभव है, तोते को हम बड़े अंतर से हरा दें. इस रटने, दोहराने की कला में जब से सोशल मीडिया का छौंका लगा, तब से जीवन में गैर-ज़रूरी चीज़ों की मिलावट कहीं अधिक हो गई. एक दूसरे की स्वीकार्यता, प्रेम कम हो रहा है, खुद को सही साबित करने की ज़िद ज़ुनून में बदलती जा रही है. जुनून कैसा भी हो, अंततः हमारे लिए उपयोगी नहीं होगा. क्योंकि जुनून में अति, हर कीमत पर हासिल करने का भाव शामिल रहता है.
1993 में दूरदर्शन पर 'जुनून' धारावाहिक शुरू हुआ. लगभग पांच बरस चला. लोकप्रिय भी रहा. मुझे याद है, उसका नायक आरंभ तो न्याय की रोशनी से करता है, लेकिन जुनून में ऐसे बहता है कि जीवन की पटकथा ही उलट देता है. अति में रोमांच बहुत है. इसलिए, बाहुबली सरीखी अतिवादी फिल्म लुभाती हैं. लेकिन जीवन में 'अति' से पहले रुकना है. जीवन के चौराहे पर गति और अति साथ मिलते हैं. वहीं प्रेम का छोटा सा नोटिस बोर्ड है, जिस पर नज़र कम जाती है. उसी ओर जाना है!
'युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज़ है', जैसी गैर-जरूरी, हिंसा से भरे विचार का लोकप्रिय होना बताता है कि रटने की ओर हम कितनी तेजी से बढ़े. बुद्ध ने शिष्यों से कहा, 'जो ग़ैर-जरूरी हो वह मत करना. अति से बचना.' आनंद ने पूछा जो गैर-जरूरी है उस पर इतना महत्व क्यों दे रहे हैं, वह हम करेंगे ही क्यों? बुद्ध ने कहा, मैं लोगों को देखता हूं, सौ में निन्यानबे लोग गैर-जरूरी बातें करते हैं. आनंद ज़रा ख़्याल करना, चौबीस घंटे तुम जितनी बातें बोलते हो, उनमें कितनी जरूरी थीं. कितनी ही बातें तुम न बोलते तो काम चल जाता.'
जितने कम से कम में काम चल सके, यह बहुत कोमल, सुंदर बात है. हम अधिकतम शब्दों की ओर दौड़ते जा रहे हैं. जैसे हम गैर-जरूरी से मुक्त होंगे, पाएंगे, इससे हजार उलझनें पैदा हो रही हैं. इससे जीवन में शोर बढ़ता है, शांति कम होती है. शांति कम होने से जीवन की ऊर्जा, प्रेम और सहदयता कम होगी. इसलिए, कम की ओर बढ़ना जीवन की ओर जाना है. यह हमें जीवन को धैर्य, संतुलन के पड़ाव की ओर ले जाता है. आइए, मितव्ययता की सौम्यता की ओर चलें.
जीवन की शुभकामना सहित...
-दया शंकर मिश्र
(Disclaimer: लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेख डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध लेखक की किताब 'जीवन संवाद' से लिया गया है.)
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