(व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा)
भाई एक बात तो माननी पड़ेगी कि नरेश बंसल जी ने विपक्ष वालों की इंडिया पर दावेदारी के झगड़े का कतई तोड़ कर दिया है. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी – पट्ठे ने सीधे संविधान से इंडिया को निकाल बाहर करने की ही मांग कर दी है. इस बार के क्विट इंडिया दिवस पर‚ सचमुच का क्विट इंडिया हो जाए ––इंडिया‚ भारत छोड़ो! जब इंडिया से ही भारत छुड़वा लेंगे‚ तो खुद को इंडिया बताने वाले तो खुद ही भारत में चुनाव मैदान से बाहर हो जाएंगे.
अब प्लीज पुराने इतिहास का वही घिसा हुआ रिकार्ड कोई मत बजाने लगना कि जब ऑरीजनल वाला क्विट इंडिया हो रहा था‚ तब तो बंसलजी के विचार-परिवार वाले क्वाइट इंडिया‚ क्वाइट इंडिया करने में लगे हुए थे. अब जब अंगरेजों को गए पचहत्तर साल हो चुके हैं‚ तो इन्हें क्विट कराने की सूझ रही है और वह भी किन्हीं बचे हुए नए-पुराने अंगरेजों से नहीं‚ इंडिया नाम से. यह इतिहास की सरासर तोड़-मरोड़ है.
असल में बंसल जी के विचार-परिवार वालों ने पुराने वाले क्विट इंडिया का बहुत सोच–समझकर बहिष्कार किया था. वह क्योंॽ क्योंकि बंसलजी के विचार-परिवार के विरोधी विचार परिवार वाले‚ अंगरेजों से जाने के लिए तो कह रहे थे‚ पर सिर्फ अंगरेजों से ही जाने के लिए कह रहे थे‚ इंडिया से नहीं. उल्टे वे तो अंगरेजों से इंडिया को छोड़कर जाने के लिए कह रहे थे- क्विट इंडिया! ऐसा आधा–अधूरा भारत छोड़ो‚ बंसल जी के विचार परिवार को मंजूर नहीं था!
पर अब वे तब के अधूरे भारत छोड़ो को पूरा कर के रहेंगे. अंगरेजों के साथ‚ उनके दिए नाम से भी भारत छुड़वा कर रहेंगे. मोदी जी ने अमृतकाल में गुलामी के चिह्न मिटाने का वादा किया है और वह भी लाल किले से. अब तो वे इंडिया से क्विट इंडिया करा के रहेंगे. देश का गुलामी की याद दिलाने वाला नाम भी इस बार तो बदलवा कर रहेंगे.
पर शुक्र है कि विपक्ष वालों ने नाम रखा भी तो इंडिया ही रखा. अगर उन्होंनेे कुछ जोड़–तोड़ से अपना नाम भारत रख लिया होता‚ तो बंसल जी के विचार-परिवार वाले क्या करतेॽ भारत वालो‚ इंडिया छोड़ो! या भारत और इंडिया दोनों छोड़ो‚ बस आर्यावर्त की ओर दौड़ो!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं.)
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