सहज बोध!
हम जीवन के फैसले करते समय कई बार अनुभव और विश्लेषण को इतना अधिक महत्व दे देते हैं कि सहज बोध (इनट्यूशन) पीछे छूट जाता है. जीवन संवाद में हम जीवन के अलग-अलग पक्षों की चर्चा करते हुए सहज बोध को बनाए रखने और उसे अपनी निर्णय प्रक्रिया में शामिल करने का अनुरोध करते रहे हैं. 'हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू' ने अपने शोध में इस बात पर जोर दिया है कि हमारा दिमाग सबसे पहले सहज बोध के आधार पर किसी स्थिति को समझता है. हम किसी बात का अध्ययन करके सर्वश्रेष्ठ निर्णय ले सकते हैं. यह भी कहा गया है कि यदि सहज बोध और विश्लेषण दोनों का समन्वय हो जाए तो स्थितियों को जानने समझने की क्षमता कई गुना बढ़ सकती है.
यहां यह समझना जरूरी है कि सहज बोध का अर्थ केवल इतना नहीं होना चाहिए कि मन किस ओर ले जा रहा है. सहज बोध एक ऐसी स्थिति है, जहां हमारा नजरिया व्यापक होता है. हम बनी बनाई राय पर कायम नहीं रहते, दूसरों के छोटे इनपुट से अपनी राय नहीं बदलते. सलाह और बहकावे का इस पर बहुत अधिक असर नहीं होता. सहज बोध का संबंध इस बात से भी है कि हम वातावरण के कितने निकट हैं. उदाहरण के लिए ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले लोग आसमान देख कर बता देते हैं कि आज पानी बरसेगा कि नहीं. लेकिन मजेदार बात यह है कि जिस व्यक्ति के बादल के बारे में अनुमान गांव में कई गुना सटीक होते हैं, उसी के शहर में अनुमान बदल जाते हैं. जिस वातावरण में हम रहते हैं, उससे हमारे संकट, अनुकूलता और सहृदयता भी जुड़ी रहती है. सहज बोध यहीं से निर्मित होता है. यूट्यूब देख कर जानकारी तो जुटाई जा सकती है लेकिन सहज बोध वहां से कितना मिलेगा विश्वास पूर्वक नहीं कहा जा सकता.
ऐसे लोग जो दूसरों को माफ़ करके आगे बढ़ने में यकीन रखते हैं. किसी जगह अटकने की जगह, छलांग लगाकर आगे बढ़ जाते हैं, सामान्य तौर पर देखा गया है कि उनका सहज बोध दूसरे लोगों के मुकाबले बेहतर होता है. कहते हैं कि स्त्रियों का सहज बोध पुरुषों के मुकाबले बेहतर होता है. क्योंकि उनमें जीवन के प्रति करुणा, प्रेम, स्नेह और क्षमा अधिक होती है. इसलिए वह संकट को पहले समझ लेती हैं.
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि सहज बोध सरलता से आता है. सरलता को ओढ़ना मुश्किल, पहचानना आसान. सुकरात सरल थे. सरलता को कभी उन्हें साधना नहीं पड़ा. उन्हीं के समय के डायोजनीज सरलता को साधना के चक्कर में जटिल होते जा रहे थे. एक बार डायोजनीज ने कई लोगों की मौजूदगी में कहा, आप इतने सुंदर वस्त्र पहनते हैं. कैसे साधु हैं? कैसी आपकी सरलता. मैं तो हमेशा फटे वस्त्र पहनता हूं. बताइए आप सरल हैं कि मैं. सुकरात ने हंसते हुए कहा, जब तुम इतने विश्वासपूर्वक कह रहे हो तो संभव है कि मैं सरल न हूं. डायोजनीज सहज बोध को न समझ कर हां-ना के तथ्यों में उलझ गए. उन्होंने घोषणा कर दी आज से मैं सरल हूं, स्वयं सुकरात ने यह कह दिया. वहां से उठकर नगर में सबको बताने चल दिए तभी आगे प्लेटो मिल गए. प्लेटो ने खुशी का कारण पूछा तो उनको बताया. प्लेटो ने हंसते हुए कहा... 'तुम समझ ही नहीं पाए. यही तो सरल व्यक्ति का लक्षण है. तुम जो कहोगे वह उसी में राजी हो जाएगा. यह जो तुम्हारी घोषित सरलता है, यही सबसे बड़ी जटिलता है. जिस चीज़ को साधने का प्रयास करोगे वह अपने स्वभाव के उलट होती जाएगी. सरलता को भीतर उतरने देना है, उसे साबित करने की कोशिश नहीं करनी'.
सहज बोध संभव है किसी ऐसी स्थिति से निकल कर हमारे भीतर आए. अपने आसपास देखने पर हम पाएंगे कि कुछ लोग ऐसे हैं जिनके भीतर सहज बोध पर्याप्त है. हमें उनके निकट रहने और उस ओर बढ़ने की जरूरत है.
जीवन की शुभकामना सहित...
-दया शंकर मिश्र
(Disclaimer: लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेख डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध लेखक की किताब 'जीवन संवाद' से लिया गया है.)
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