हवामहल!
हमारा ध्यान सूचना पर टिका है. हम बोल रहे हैं कि हमसे कहीं अच्छी तरह से तोता चीज़ों को रख लेता है. सीखने और समझने से दूर हम रखने की ओर लगातार बढ़ते जा रहे हैं. आज हम एक छोटी सी यहूदी कहानी, बोध कथा से शुरू करते हैं. किसी समय एक आदमी के पास बहुत से पशु-पक्षी थे. वह उनके साथ प्रसन्नतापूर्वक जीवन यापन कर रहा था. इस बीच उसने सुना कि हजरत मूसा पशु-पक्षियों की भाषा समझते हैं. वह उनके पास गया और उनसे जिद करने लगा कि उसे भी यह कला सिखा दी जाए. मूसा ने बहुत समझाया लेकिन वह माना नहीं. अंततः उन्होंने वह कला उसे सिखा दी. तब से वह आदमी अपने पशु-पक्षियों की बातचीत सुनने लगा. जबकि उससे बहुत जरूरी होने पर ही ऐसा करने के लिए कहा गया था.
एक दिन मुर्गे ने कुत्ते से कहा कि घोड़ा जल्द ही मर जाएगा. यह सुनकर उस व्यक्ति ने घोड़े को बेच दिया, जिससे वह हानि से बच जाए. कुछ दिन बाद उसने उसी मुर्गे को कुत्ते से कहते सुना कि जल्द ही खच्चर मरने वाला है. उसने खच्चर को भी बेच दिया. फिर मुर्गे ने कहा कि अब गुलाम की मृत्यु होने वाली है. यह सुनते ही मालिक ने गुलाम को भी वैसे ही बेच दिया. वाह बहुत खुश हुआ कि उसे मुर्गे की ज्ञान का इतना फल प्राप्त हो रहा है. इसी खुशी के बीच एक दिन उसने मुर्गे को कुत्ते से कहते सुना कि यह आदमी खुद मरने वाला है! अब उसकी हालत खराब हुई. वह डर के मारे कांपने लगा. दौड़ता हुआ मूसा के पास पहुंचा और कहने लगा अब मैं क्या करूं? मूसा ने कहा,' जाओ और अपने को भी बेच डालो.'
यह बोध कथा है. इसे ठहरकर समझना होगा. हम बिना जाने समझे चीजों के पीछे पड़े रहते हैं. अगर हमारे भीतर भाव और बोध नहीं है तो जो चाहते हैं, वह मिल भी जाए तो उसका भी वही हाल होगा, जैसा कथा में उस व्यक्ति का हुआ. हम ज्ञान का उपयोग कैसे करते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है.
हमने अक्सर देखा है, बच्चे ताश के घर बनाते हैं. रेत के महल बनाते हैं. हवा के छोटे से झोंके इनको गिरा देते हैं. नींव के बिना महल कितनी देर टिकेंगे. कागज की नाव आंगन से आगे नहीं बढ़ सकती. हम बचपन में यह सब करते हैं, यहां तक तो ठीक लेकिन बड़े होने के बाद भी यही करते रहते हैं, यह आश्चर्यजनक है.
हम दूसरों को संकट में देखकर ऐसा ही बर्ताव करते हैं, जैसे बोधकथा के किरदार ने किया. दूसरों के साथ 'सुबह' किए गए बर्ताव दोपहर, शाम हमारी ओर लौट कर आएंगे. करुणा, स्नेह और प्रेम, जीवन के विलुप्त होते भाव हैं. शुगर और ब्लड प्रेशर की तरह इनकी भी नियमित जांच करनी चाहिए. शुगर और ब्लड प्रेशर की परेशानी को तो कुछ हद तक दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन जिनके भीतर करुणा स्नेह और प्रेम की कमी होती जाती है उनके भीतर के अकेलेपन, शून्यता को भरना संभव नहीं हो पाता.
दूसरों के संकट को देखकर, दूसरों को संकट में देखकर जो भी आपको प्रसन्न और सुखी दिखे उसके प्रति सतर्क हो जाइए. ऐसे व्यक्ति कभी भी आपके साथ खड़े नहीं हो सकते. जिनके भीतर करुणा और साथ खड़े होने का भाव, संवेदनशीलता नहीं है उनकी तुलना में ऐसे मनुष्य कहीं बेहतर हैं जो जीवन की भागदौड़ में भले पीछे छूट गए हैं. लेकिन उन्होंने अपने भीतर मनुष्यता को बचाए रखा है. यह कहानी बार-बार मुझे याद दिलाती है कि दूसरों के संकट पर आंखें मूंद लेने, प्रसन्नता, उसे अवसर के रूप में अपनाने से कभी जीवन का भला नहीं हो सकता. इसलिए मनुष्यता सबसे पहले है. यही जीवन का सबसे बड़ा गुण धर्म है.
जीवन की शुभकामना सहित...
-दया शंकर मिश्र
(Disclaimer: लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये लेख डिप्रेशन और आत्महत्या के विरुद्ध लेखक की किताब 'जीवन संवाद' से लिया गया है.)
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